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टेट की अनिवार्यता : शिक्षा के अधिकार की ओर एक बडा कदम-डेट ०२/०६/2013

PAHAL - An Initiative by Shyam Dev Mishra
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टेट की अनिवार्यता : शिक्षा के अधिकार की ओर एक बडा कदम-

पूर्णपीठ ( संविधान पीठ नही) के बहुप्रतीक्षित और बावन पृष्ठों के विशाल ,सारगर्भित और व्यापक प्रभाव वाले निर्णय के आने के तुरन्त बाद ही जहाँ इसके कुछ अंशो का आंशिक विश्लेषण शुरू कर दिया गया वही कुछ महानुभावों ने निर्नय की मनमानी व्याख्या कई मामलों मे तो पोस्टमार्टम और छीछालेदर करने में भी कसर नही छोडी.

सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने ग्रुप के सदस्यों के अवलोकनार्थ अपनी अल्प बुद्धि के अनुसार निर्णय की मुख्य – मुख्य बातें रखने का प्रयास कर रहा हूँ -इसके संबन्ध में आप अपनी महत्वपूर्ण राय रखे तथा कोई त्रुटि होने पर इंगित करें . कुछ अप्रासंगिक अंशों को जानबूझ कर छोड दिया गया है.

पूर्ण पीठ का गठन एकल पीठ द्वारा प्रभाकर सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले मे खण्डपीठ के निर्णय के सही होने पर उठाये गये संशय से उपजे विवाद के समाधान के लिये किया गया है . इस सम्बन्ध में जिन सवालों का निस्तारण होना है वो इस प्रकार है..

अ. शिक्षा का अधिकार अधिनियम २००९ की धारा २३ (१) में उल्लिखित वाक्याँश “न्यूनतम योग्यता” का आशय क्या है-क्या अध्यापक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण होना तदानुसार एक योग्यता है और क्या एन.सी.टी.ई द्वारा इस पर २३/०८/२०१० की अधिसूचना द्वारा इसे लागू करना अधिनियम की धारा २३(१)के अनुरूप है?

ब. २३/०८/२०१० और २९/०७/२०११ की अधिसूचना का क्लाज ३(ए) ५०% अंको के साथ स्नातक एवं बी.एड डिग्री धारक को कक्षा १-५ तक के अध्यापक के लिये नियुक्ति के लिये अर्ह होने के पूर्व अध्यापक पात्रता परीक्षा न उत्तीर्ण किये जाने की छूट देता है “ऐसे व्यक्ति भी १ जनवरी २०१२ तक के लिये अध्यापक नियुक्त होने के पात्र होगें बशर्ते वे परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त प्रारम्भिक शिक्षा में छ: माह का विशेष प्रशिक्षण नियुक्ति के उपरांत प्राप्त करते हैं ” शब्दों का क्या महत्व है ?

स. प्रभाकर सिंह के मामले में खण्डपीठ द्वारा दे गयी राय क्या कानूनी तौर पर सही है?

इसके बावजूद परिषद द्वारा प्रारम्भिक शिक्षा के अध्यापक पद के अभ्यर्थियों के होने न्यूनतम स्तर का प्रावधान करते हुये जारी उक्त अधिसूचनाओं के बाध्यकारी प्रभाव का निर्धारण करना भी एक मुद्दा है .

उक्त अधिसूचना के क्लाज ३(ए) के अन्तर्गत आने वाले अभ्यर्थियों जिन्होनें अध्यापक पात्रता परीक्षा से छूट का दावा किया था , की ओर से पेश हुये अधिवक्ता श्री राहुल अग्रवाल नें खण्डपीठ के निर्णय का बचाव किया . उनके अनुसार टेट न कोई न्यूनतम योग्यता नही बल्कि मात्र एक परीक्षण है जो कि क्लाज ३ के अन्तर्गत आने वाले व्यक्तियों के लिये न्यूनतम या आवश्यक योग्यता नही है क्योंकि क्लाज ३ में योग्यता के तौर पर इस परीक्षण का कोई उल्लेख नही है .उनके अनुसार एन.सी.टी.ई सिर्फ़ न्यूनतम योग्यता निर्धारित कर सकती है टेट नही और एक कदम आगे बढाते हुये एन.सी.टी.ई द्वारा योग्यता के तौर पर टेट के निर्धारण करने के अधिकार को ही चुनौती दे डाली .

एकल पीठ के समक्ष प्रस्तुत मामले रवि प्रकाश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मूल याचियों के ओर से प्रस्तुत होते हुये श्री अशोक खरे ने दलील दी कि २३ अगस्त २०१० के पूर्व प्रशिक्षण पूरा कर लेने वाले और १९८१ नियमावली के अन्तर्गत अर्ह हो जाने वाले अभ्यर्थियों के मामले में टेट लागू नही होगी . उनका कहना था कि राज्य सरकार पुरानी परम्परा का पालन करते हुये , नियम १४ के अन्तर्गत बिना किसी औपचारिकता के या नियम १६ के अन्तर्गत बिना कोई चयन प्रक्रिया शुरू किये , प्रशिक्षण पूर्ण होने पर अविलम्ब ऐसे अभ्यर्थियों की नियुक्ति करने को बाध्य है . इसके समर्थन में उन्होनें मूल मामले में एकल पीठ के समक्ष रखे गये अपने तर्क दोहराये .

२३ अगस्त २०१० के पूर्व राज्य के बाहर से प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों की ओर से प्रस्तुत हो कर अधिक्वक्ता अरविन्द श्रीवास्तव ने भी उनको नियुक्ति देने की माँग की . उनके अनुसार १३ अगस्त २०१० के पूर्व परिषद के नियम २००१ लागू थे और चूँकि रिक्तियाँ २३ अगस्त २०१० के पूर्व की हैं इन पर चयन पुरानी योग्यताओं के अनुसार होना चाहिये .

राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिक्वक्ता सी.बी.यादव ने उपस्थित हो कर कहा कि परिषद द्वारा टेट अनिवार्य कियी जाने पर राज्य नें इसे नियमावली १९८१ मे समाहित कर लिया है और राज्य केन्द्र सरकार द्वारा बनाये गये कानून से बध्ह हो कर परिषद द्वारा निर्धारित शर्तों के अनुसार अध्यापक पात्रता परीक्षा का आयोजन कर चुका है.

भारत सरकार की ओर से सहायक महान्यावादी श्री आर.बी.सिंहल नें खण्डपीठ के निर्णय के उस अंश , जिसमें यह क्लाज ३ के अन्तर्गत आने वाले अभ्यर्थियों को टेट से छूट देता है वो बदलने की प्रार्थना की .

परिषद की ओर से श्री आर.ए.अख्तर नें टेट को एक योग्यता ठहराये जाने को पूर्णतय: परिषद क्षेत्राधिकार में बताते हुये परिषद के अधिकारों का व्यौरा रखा .

पूर्णपीठ द्वारा इन दावों और दलीलों की पडताल करते हुये दिये गये निश्कर्षों के मुख्य अंश इस प्रकार हैं-

अध्यापक पात्रता परीक्षा शैक्षिक प्राधिकारी द्वारा शिक्षक के तौर पर नियुक्ति के लिये आवश्यक शैक्षणिक योग्यता और प्रशिक्षण योग्यता के अलावा एक अन्य शर्त है जिसे एक अतिरिक्त योग्यता के तौर पर नकारा नही जा सकता है .पूर्णपीठ ने टेट को नेट की तरह का एक टेस्ट बताते हुये इसकी वैधता पर खडे किये गये सवाल को दिल्ली विश्वविद्यालय बनाम राज सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये निर्णय के आलोक में पूर्णतय: नकार दिया.

पूर्णपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा “योग्यता” शब्द की समीक्षा के उपराँत दिये गये निष्कर्ष का हवाला देते हुये दोहराया कि अलग – अलग स्रोतों से शिक्षा और प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले सभी अभ्यर्थियों की एकरूप जाँच (यूनीफ़ार्म स्क्रूटनी) को आवश्यक बताया और कहा कि अलग-अलग स्रोतों से विभिन्न शैक्षणिक और प्रशिक्षण योग्यतायें प्राप्त करने वले अभ्यर्थियों के एकरूप मूल्याँकन के लिये पात्रता परीक्षा का प्रावधान किया गया है ताकि सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले व्यक्तियों का अध्यापक के तौर पर नियुक्त होने के लिये चयन हो सके .वर्तमान मामले में एक समानता आधारित चयन सुनिश्चित करने के लिये पात्रता परीक्षा एक आवश्यक तत्व है. यही कारण है कि परिषद नें पूरे देश में लागू किये जाने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर अध्यापक पात्रता परीक्षा की पाठ्यचर्या का निर्धारण किया है जो अध्यापन के लिये सर्वोत्तम उपलब्ध अभ्यर्थियों को प्राप्त करने के लिये ही नही बल्कि प्रारम्भिक स्तर पर गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान करने वाले अध्यापकों की नियुक्ति के लिये पूरे राष्ट्र मे एक समान पद्धति सुनिश्चित करने के लिये है (अतिमहत्वपूर्ण )

पूर्णपीठ के अनुसार ११ फ़रवरी २०११ को परिषद द्वारा जारी टेट दिशा-निर्देश ,जिसे पर खण्डपीठ नें पूरी तरह अनदेखा किया , टेट की महत्ता पर अवश्यकता को रेखांकित करते हुये न केवल स्पष्ट करती है कि कक्षा १ से ८ तक अध्यापक के तौर पर नियुक्त होने वाले किसी भी व्यक्ति के लिये जिसमें अधिसूचना के क्लाज ३ में उल्लिखित व्यक्ति भी शामिल हैं , टेट अनिवार्य है बल्कि अध्यापक प्रशिक्षण संस्थानों को उनका प्रदर्शन व स्तर सुधारने के साथ – साथ गुणवत्ता परक शिक्षा पर विशेष बल दिया है.

ऐसी स्थित में जब प्रदेश न केवल संख्या बल्कि प्राईमरी स्तर पर योग्य और प्रशिक्षित अध्यापकों की भारी कमी से जूझ रहा है ,सामाजिक वातावरण की पृष्ठभूमि में बाल विकास एवं अध्यापन विद्या पर विशेष ध्यान देना जरूरी है .हमारा न्यायालय प्रारम्भिक शिक्षा की इस शाखा के सामने शिक्षा मित्र और प्रेरक जैसे शिक्षकों के ज़रिये निर्देशन ( अध्यापन) के कामचलाऊ तरीकों के प्रचलन में आने से उत्त्पन्न बाधाओं से पूर्णतय: अवगत है इस पृष्ठभूमि में योग्य शिक्षकों की महत्ता पर जोर देना ज्यादा महत्तवपूर्ण हो जाता है .यह कहना अनुचित न होगा कि हमारे प्राँत में राज्य या परिषद द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में प्रवेश लेने वाले छात्रों की संख्या में चिन्ताजनक गिरावट किस वजह से है कि प्राईमरी स्कूल के अध्यापक का अब कोई स्तर नही रह गया है .अविभावकों की अरुचि व असहयोगी रवैया मुख्यत: ऐसे विद्यालयों में बच्चों की अप्रभावी तरीके से हो रही देख-रेख ही है .

२३अगस्त२०१० की अधिसूचना, भारत सरकार द्वारा न्यूनतम योग्यताओं में छूट संबन्धी ०८/११/२०१० के दिशा निर्देश, परिषद द्वारा ११ फ़रवरी २०११ को जारी टेट दिशा निर्देश , उत्तर प्रदेश राज्य में बी.एड डिग्री धारकों को अनुमति संबन्धी परिषद की १०/०९/२०१२ की अधिसूचना, अध्यापक के लिये आवश्यक योग्यतायें और अध्यापक पात्रता परीक्षा के ढाचें, रूप – रेखा तथा विषय वस्तु के आधार पर इस बात में कोई संशय नही रह जाता कि कक्षा १ से ८ तक के अध्यापक के रूप में नियुक्ति के लिये सभी को टेट उत्तीर्ण होना आवश्यक है .

कानून का मकसद साफ़ है कि कोई भी व्यक्ति इन आर्हताओं के बिना शिक्षक नही बन सकता .हम यहाँ स्पष्ट करना चाहते हैं कि इन अधिसूचनाओं और दिशा निर्देशों का बाध्यकारी प्रभाव ऐसा है कि वेटेज , जो ११ फ़रवरी २०११ की दिशा निर्देशों के अनुसार परिलक्षित है , की अनदेखी नही की जा सकती है किसी अभ्यर्थी के लिये अध्यापक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण होने के लिये आवश्यक न्यूनतम प्राप्तांक ६०% है .शारीरिक विकलाँगो सहित आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों के लिये ५ % की छूट दे गयी है जिसे छोडा नही जा सकता है . इसके अलावा राज्य सरकार को इस तथ्य पर ध्यान देना होगा कि चयन प्रक्रिया में वेटेज भी दिया जाना है. यह राज्य सरकार पर है कि वह इन दिशा निर्देशों को उपयुक्त तरीके से अपनाये और हम इसमे कुछ आगे इस स्तर पर आगे कुछ और नही जोडना चाहते क्योंकि यह पीठ शिक्षक के रूप में नियुक्त होनें के इक्षुक अभ्यर्थियों द्वारा टेचा ट उत्तीर्ण होने की योग्यता की अनिवार्यता पर विचार करने के लिये बैठी है. ( अतिमहत्त्वपूर्ण पेज नं० ४३ ) यहाँ पीठ नें टेट के दोहरे उपयोग की अनिवार्यता स्पष्ट की गयी है (१) आर्हता परीक्षा के रूप केवल उपयुक्त अभ्यर्थियों को चयन का अवसर देना (२) चयन प्रक्रिया में टेट स्कोर को वेटेज देना “ऐज़ वेल” का आशय न समझने वाले पहले किसी योग्य व्यक्ति से इसे समझ लें .
श्री अशोक खरे द्वारा अपनी बहस को नोटिफ़िकेशन के प्रभावी होने की तिथि के अनिश्चय के संबन्ध में विस्तार दिये जाने से पीठ प्रभावित नही है क्योंकि राज्य को त्वरित प्रभाव से स्वीकृत करने के अतिरिक्त कोई विकल्प उपलब्ध नही है . श्री खरे ने कुछ और मुद्दों पर अपनी दलीलें रखी जिनके संदर्भित मामले के दायरे से बाहर होने के कारण उनका उत्तर देना हम आवश्यक नही समझते हैं .

इस मामले में पीठ ने स्पष्ट किया कि २३/०८/२०१० के बाद भी जिन लोगों को बिना टेट उत्तीर्ण हुये शिक्षक के तौर पर नियुक्ति दी गयी थी , उनकी नियुक्ति को कोई चुनौती नही दी गयी है और राज्य भी न्यायालय से इसे एक समाप्त हो चुके अध्याय के रूप मे देखने का अनुरोध करता है . इसलिये हम इन नियुक्तियों की मेरिट पर चर्चा नही कर रहे हैं . पीठ ने इस मुद्दे पर आगे कुछ कहने से इन्कार कर इस मुद्दे को उचित मामलों में बहस और निर्णयों के लिये खुला छोड दिया है.

पीठ के निर्णय हेतु प्रस्तुत प्रश्नों के उत्तर इस प्रकार हैं –

१- २३ अगस्त २०१० की अधिसूचना के अनुसार कक्षा १ से ५ के अध्यापक के तौर पर नियुक्ति चाहने वालों के लिये अध्यापक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण होना एक अनिवार्य योग्यता है. यह नोटिफ़िकेशन अधिनियम २००९ के अनुसार पूर्णतय: एन.सी.टी.ई के प्राधिकार में है .
२- २३ अगस्त २०१० की अधिसूचना का क्लाज ३ (ए) अधिसूचना का एक अविभाज्य अंश है जिसे इस क्लाज में वर्णित लोगों को अध्यापक पात्रता परीक्षा से मुक्ति दिये जाने के लिये अलग से नही पढा जा सकता है .
३- प्रभाकर सिंह के मामले में डिवीजन बेंच के निर्णय के उस अंश को, जिसमें २३ अगस्त २०१० की अधिसूचना के क्लाज ५ के अन्तर्गत चयन प्रक्रिया की शुरूआत की व्याख्या की गयी है , उचित ठहराते हैं परन्तु उस अंश को जिसमें क्लाज ३ (ए) में उल्लिखित व्यक्तियों को अध्यापक पात्रता परीक्षा से छूट दी गयी है , गलत ठहराते हुये रद्द करते हैं और निर्णय देते हैं कि अध्यापक पात्रता परीक्षा क्लाज १ और क्लाज ३ (ए) में उल्लिखित सभी व्यक्तियों के लिये आवश्यक है.

निर्णय को संबन्धित पीठों के समक्ष समुचित आदेशों के लिये रखा जाये.

एकेडमिक आधार पर आने वाली किसी भी भर्ती के लिये समस्या खडी करने का काम तो इस निर्णय नें कर ही दिया है .

(फ़ान्ट अनुवाद के दौरान हुई वर्तनी त्रुटि के लिये मै क्षमा प्रार्थी हूँ – सारिका श्रीवास्तव)

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