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व्हाईटनर का साया, धांधली की छाया, उस्मानी कमेटी की हनक या फिर NON-TET के आने की भनक।।। Date 9feb 2013

PAHAL - An Initiative by Shyam Dev Mishra
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TET ….. TET ……TET …..

उन साथियों के लिए, जिनके मन में है….

व्हाईटनर का साया,

धांधली की छाया,

उस्मानी कमेटी की हनक या फिर

NON-TET के आने की भनक।।।

या वो, जो इन्ही के आधार पर रुकी पड़ी काउंसिलिंग दोबारा शुरू हो जाने की आशा कर रहे हैं ………

जस्टिस हरकौली का पिछला आदेश पढ़कर तो लगता है कि अगली 12 को इन सबके 12 ही बजेंगे, क्यूंकि सामान्यतया ऐसे मामले में, और हमारे मामलों में भी, सामान्य बात तो तब होती जब प्रथम दृष्टया हमारे पक्ष से सहमत होकर माननीय न्यायाधीश केवल वर्तमान प्रक्रिया पर स्टे लगाकर बाकी बिन्दुओं को सरकार का जवाब देखने और पक्ष सुनने बाद विचार के लिये रख छोड़ते, पर उन्होंने तो मानो सैद्धांतिक रूप से इस मामले का निस्तारण ही कर दिया। अब न्याय करते समय सामने वाले को भी अपना पक्ष रखने के लिए एक मौका तो देना बनता है न?? सो दे दिया। पर शायद इस से ज्यादा कुछ नहीं।।।

1. सरकार व्हाइटनर लगी 27,000 नहीं, 2,70,000 कापियाँ कोर्ट में पेश कर दे, उस से सिर्फ किसी सर्वेक्षण के लिए ये निष्कर्ष तो निकाला जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में (शायद भारत-भर में) परीक्षा-संस्था की ओर से परीक्षार्थियों द्वारा उत्तर-पुस्तिका में व्हाइटनर लगाये जाने पर सम्बंधित प्रश्न में कोई अंक न दिए जाने के नियम बनाये जाने के बावजूद आज भी तमाम परीक्षार्थी व्हाइटनर का प्रयोग करके अपना नुकसान करते हैं पर इस के आधार पर कोर्ट में कोई धांधली साबित नहीं हो सकती। आखिर ये कैसे साबित होगा कि किसी उत्तर-पुस्तिका में व्हाइटनर परीक्षा-भवन में परीक्षा-अवधि के दौरान लगाया गया है या बाद में कही बाहर, जबकि सरकार के इस उड़ानझल्ले को जमीन पर पटकने के लिए न सिर्फ मायावती सरकार द्वारा हर उत्तर पुस्तिका की परीक्षा केन्द्रों पर सीलबंद रखवाई गई द्वितीय-प्रतियाँ बल्कि परीक्षार्थियों के पास उपलब्ध उनकी उत्तर-पुस्तिका की तृतीय-प्रतियाँ आज भी अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रही हैं। मौजूदा व्यवस्था के अंतर्गत (लोकतंत्र है भाई, मुहम्मद शाह रंगीला की हुकूमत नहीं) व्हाइटनर लगाने पर सम्बंधित प्रश्न के अंक न देने से ज्यादा कोई सरकार या कोर्ट किसी अभ्यर्थी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। शायद भरी कचहरी में भी जज साहब इस बात से इनकार न कर पायें कि उन्होंने भी कई दफ़े खुद परीक्षाओं में अपनी कापियों में व्हाईटनर लगाया है। कोई गुनाह थोड़ी है भाई!!

2. सरकार TET-2011 में धांधली की बात किस मुँह से करेगी? 9700 बीटीसी और विबीटीसी अभ्यर्थियों को जावेद उस्मानी कमेटी की रिपोर्ट को अनदेखा करके क्या मायावती सरकार सहायक अध्यापक नियुक्त कर गई थी या उन अभ्यर्थियों की UPTET-2011 परीक्षा-मूल्यांकन-परिणाम का प्रकाशन सुप्रीम कोर्ट की संविधान-पीठ की निगरानी में हुआ था जो उनकी UPTET-2011 को पूर्णतया बेदाग मानकर उनकी नियुक्ति यह सरकार बेझिझक कर के बाकियों को धांधली के आधार पर ठेंगा दिखा देगी? क्या कोई ऐसा सोच सकता है की NET (राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा) में सबूतों के बिना केवल सुनी-सुनाई धांधली की शिकायत पर UGC यह निर्णय लेगी कि इस बार इसे क्वालीफाई करनेवाले लोग लेक्चरर के लिए आवेदन करने के पात्र तो होंगे पर इस बार इसके टापर्स में से किसी भी को JRF (कनिष्ठ अध्येता वृत्ति) नहीं दी जाएगी ऐसा दोहरा मापदंड ये छद्म समाजवादी अपने आचरण तक में आत्मसात क्यूँ न कर लें, पर भारतीय न्यायपालिका इसे सैद्धांतिक स्तर पर भी विचार-योग्य नहीं मान सकती, ऐसा कोई भी समझदार व्यक्ति समझ सकता है।

3. हाई पावर कमेटी के नाम से अपने ही मुलाजिम मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक समिति बनाकर सरकार आम जनता को तो बरगला सकती है या प्रभावित कर सकती है पर न्यायपालिका को नहीं। सरकार के दुर्भाग्य से हमारे देश की न्यायिक प्रणाली में एक सामान्य नागरिक तक द्वारा साक्ष्य और आधार के साथ प्रस्तुत किये गए विवरण को सही मान कर उसके आधार पर निर्णय करने की व्यवस्था है और हमारे सौभाग्य से सरकारों या उनके द्वारा गठित भारी-भरकम नामवाली कमेटियों द्वारा रंगे गए साक्ष्य-रहित और आधार-हीन पन्नों का पुलिंदा बाँध कर ताक पर रख देने की भी!! वैसे भी उसमानी कमेटी ने पहला विकल्प TET-मेरिट से चयन का ही दिया था। ऐसे में सरकार अपनी फजीहत कराने की ही व्यवस्था करती नज़र आ रही है।

4. सरकार फिर वही बेसुरा और पुराना राग अलापेगी कि हमने चयन का आधार इसलिए बदला क्यूंकि NCTE की मंशा के अनुरूप TET मात्र एक पात्रता परीक्षा है। फिर NCTE द्वारा जारी दिशानिर्देश में “”राज्य सरकार को अध्यापकों के चयन के समय TET के प्राप्तांकों को वेटेज देना चाहिए” या “किसी TET-उत्तीर्ण अभ्यर्थी को अपने TET-स्कोर को सुधरने के लिए फिर से TET में बैठने की अनुमति होगी” जैसे प्रावधान क्या मसखरी के तौर पर शामिल किये गए हैं? क्या कोर्ट ये नहीं देखेगा कि NCTE की मंशा के अनुरूप TET को वेटेज (हमारे मामले में 100%) देने को यह सरकार गलत बता रही है और खुद सिरे से NCTE की मंशा को नकार कर TET के प्राप्तांकों को इस प्रक्रिया में पूर्णतया अप्रासंगिक और महत्वहीन बना रही है। वैसे अभी मैंने कुछ राज्यों की भर्ती-नियमावली पढ़ी तो पता चला कि (1) उत्तराखंड में पूर्णतया TET के प्राप्तांको के आधार पर चयन की व्यवस्था है, (2) आंध्र प्रदेश में चयन में 20% वेटेज TET को है और 80% वेटेज TRT (अध्यापक भर्ती परीक्षा) को देने का प्रावधान है और (3) तमिलनाडु में TET के प्राप्तांको को 60% और अकादमिक प्रदर्शन को 40% वेटेज (सेकेंडरी ग्रेड टीचर के चयन के लिए निर्धारित पूर्णांक 100 में से हायर सेकेंडरी के प्राप्तांक प्रतिशत के लिए निर्धारित अधिकतम वेटेज 15 अंक, DTEd/DEEd के प्राप्तांक प्रतिशत का अधिकतम वेटेज 25 अंक और TET के प्राप्तांक प्रतिशत का अधिकतम वेटेज 60 अंक है जबकि स्नातक सहायक टीचेर के लिए चयन के लिए निर्धारित पूर्णांक 100 में से 10 अंक का वेटेज हायर सेकेंडरी के प्राप्तांक-प्रतिशत को, 15 अंक का वेटेज स्नातक-परीक्षा के प्राप्तांक-प्रतिशत को, 15 अंक का वेटेज BEd के प्राप्तांक प्रतिशत को और 60 अंक का वेटेज TET के प्राप्तांक प्रतिशत को) दिए जाने की व्यवस्था है। क्या ये कोर्ट की आँखों में भी धूल झोंक कर बच जायेंगे?

5. NON-TET वालों को अध्यापक-भर्ती में न तो सरकार शामिल करेगी (वैसे उत्तर प्रदेश में इस सरकार के रहते कुछ भी संभव है, भले कुछ दिनों के लिए ही सही!!) और ना ही अंतिम रूप से फैसला हो जाने की स्थिति में न्याय-पालिका इसकी इजाजत देने वाली है। पहली सूरत तो यह हो सकती है कि खंडपीठ ने प्रभाकर सिंह व अन्य की TET से छूट दिए जाने सम्बन्धी याचिका पर सुनवाई करते समय NCTE के 23.08.2010 व 29.07.2011 की न्यूनतम अर्हता सम्बन्धी अधिसूचनाओं को समग्र रूप से देखने, यानि अध्यापक के रूप में नियुक्ति के लिए मौलिक योग्यता के रूप में 2-वर्षीय बीटीसी के साथ TET की अनिवार्यता के प्रावधान के साथ-साथ, तदनुसार योग्यता-धारी अभ्यर्थियों की कमी को दृष्टिगत रखते हुए अध्यापकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए विशेष छूट के तौर पर एक समय-सीमा के साथ एक-वर्षीय बी.एड. डिग्री-धारकों को नियुक्ति-उपरांत 6-माह के प्रशिक्षण की शर्त के साथ दी गई अनुमति के साथ ऐसे अभ्यर्थियों के लिए TET की अनिवार्यता का स्पष्ट उल्लेख न होते हुए भी इसे विहित और निहित मान लेने, के बजाय मात्र तत्संबंधी अनुच्छेद में स्पष्ट उल्लेख न होने के आधार पर यह फैसला दिया है। ध्यान देने योग्य है कि स्वयं NCTE ने 11.02.2011 को जारी TET के आयोजन-सम्बन्धी अपने दिशानिर्देश के पहले अनुच्छेद में स्पष्ट किया है कि “23.08.2010 की अधिसूचना में अन्य प्रावधानों के साथ इस बात का भी प्रावधान है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अंतर्गत आनेवाले विद्यालयों में अध्यापक के तौर पर नियुक्ति हेतु पात्र होने के लिए आवश्यक योग्यताओं में से एक होगी कि उसे NCTE द्वारा बनाये गए दिशानिर्देशों के अनुसार समुचित सरकार (सम्बंधित राज्य सरकार) द्वारा आयोजित अध्यापक पात्रता परीक्षा में उत्तीर्ण होना चाहिए।” इसका सीधा अर्थ है कि NCTE के अनुसार बी.एड. अभ्यर्थियों के लिए TET की अनिवार्यता को स्पष्ट रूप से सिर्फ लिखा नहीं गया बल्कि उसे विहित / निहित शर्त के रूप में रखा गया है। हर राज्य में इस अनिवार्यता का अनुपालन करने वाली सरकारें, इसका अनुपालन करवाने वाले न्यायालय और इसका अनुमोदन करती NCTE, इसी बात को मान्यता देते दीखते हैं। आखिर किसी पद के लिए आवश्यक और उसी पद के कर्तव्यों के सम्यक निर्वहन के लिए विशेष रूप से बनाये गए 2-वर्षीय बीटीसी प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति को TET न होने के आधार पर बाहर रखना और किसी अन्य पद के लिए बने 1-वर्षीय प्रशिक्षण के प्रमाणपत्र-धारक (इसके साथ नियुक्ति-उपरांत 6-महीने के प्रशिक्षण की शर्त के कारण स्पष्टतया दीखता है कि 6-महीने के प्रशिक्षण के पूर्व यह 1-वर्षीय प्रशिक्षण उस पद के लिए आवश्यक योग्यता कतई नहीं है।) को तुलनात्मक रूप से कम योग्य होने पर भी उस मानक से भी छूट देना, जो किसी पूर्ण योग्यता-धारक तक के लिए बाध्यकारी है, किस आधार पर सही माना जा जा सकता है? और यदि NCTE की अधिसूचना का यही आशय न्यायालय में अंतिम रूप से निकलता है जो खंडपीठ ने शाब्दिक आधार पर निकाला है तो विश्वास जानिए, 23.08.2010 की अधिसूचना का पैरा 3, जिसमे बी.एड.-धारक अभ्यर्थी को नियुक्ति-उपरांत 6-महीने के NCTE-अनुमोदित प्रशिक्षण की शर्त के साथ एक समय-सीमा तक कक्षा 1 – 5 तक के अध्यापक के तौर पर नियुक्ति के लिए अर्ह बताया गया है, उस सीमा तक भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 में वर्णित समानता के अधिकार के विरुद्ध होने, कम योग्य को अधिक योग्य पर वरीयता देने के कारण स्पष्टतया भेदभावकारी होने और इस आधार पर विधि-विरुद्ध और असंवैधानिक घोषित कर संशोधित या रद्द किया जा सकता है, जहां तक यह उन्हें TET से छूट प्रदान करता या करता नजर आता है।

वैसे चौथा बिंदु अभी अपने मामले से पूर्णतया जुड़ा नहीं है, अतः इसपर फिलहाल ध्यान न दिया जाये और यह हमसे न जुड़े तो ही ठीक रहेगा।।।।

अब चला मैं सोने, साढ़े नौ के पहले डिस्टर्ब न करना भाई लोगो!! जरुरत पड़े तो बात अलग है!!

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