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वृहदपीठ द्वारा केवल नान टेट मुद्दे पर (12908/2013) फ़ैसला आयेगा या 150/2013 व संबन्धित अपीलों पर भी , इसको ले कर कही शंका का मौहाल है तो कही जानबूझ कर अफ़वाहे उडाई जा रही हैं. तार्कित दृष्टि से संभावनाओं को तलाशने वालों को कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर ध्यान देना चाहिये.
3 अप्रैल 2013
न्यायमूर्ती अंबवानी-शाही-बघेल की पीठ ने 03/04/2013 को अपनी पहली सुनवाई के बाद ज़ारी आदेश में स्पष्ट किया कि–
1. यह पीठ मुख्य न्यायाधीश के आदेशानुसार संदर्भित मामले 12908/2013 के संबन्ध में निर्णय देने के लिये गठित की गयी है .
2. याचियों की ओर से राहुल अग्रवाल, अरविन्द श्रीवास्तव ,आलोक मिश्रा और अशोक खरे , राज्य सरकार की ओर से सी.बी.यादव व उनकी टीम, एन.सी.टी.ई की ओर से रिज़वान अख्तर व उनकी टीम और भारत सरकार की ओर से श्री आर.बी. सिंघल और तिवारी के तर्कों को सुना .ध्यान रहे कि अशोक खरे का नाम यहाँ 150/2013 के काउंसिल के रूप में नही बल्कि 12908/2013 में इन्टरवेंशन अप्लीकेशन दाखिल करने वाले अनिल भाई (बागपत)के वकील के तौर पर है .
3. इनकी बहस के आधार पर पीठ को यह तय करना है कि एन.सी.टी.ई द्वारा (ए)एन सी टी ई द्वारा 23अगस्त 2013 को ज़ारी अधिसूचना में उल्लिखित “न्यूनतम योग्यता” के दायेरे में क्या आता है? (बी) क्या एन सी टी ई द्वारा 23 अगस्त 2010 व 29 जुलाई 2011 को ज़ारी अधिसूचना में वर्णित न्यूनतम योग्यता क्या आर.टी.ई एक्ट की धारा 23 के अनुपालन में है? (सी) प्रभाकर सिंह व अन्य बनाम राज्य सरकार मामले में ( नान टेट बी.एड + 50% स्नातक को शामिल करने का खंडपीठ का निर्णय उचित और वैध है?
4. उपरोक्त पक्ष 12 अप्रैल 2013 तक अपनी बहस लिखित रूप में जमा करें मामले ,की सुनवाई 16 अप्रैल 2013 को होगी.
16 अप्रैल 2013
संबन्धित पक्षों को सुनने के बाद 17 को सुनवाई ज़ारी रखने का आदेश
17 अप्रैल 2013
याचियों की ओर से राहुल अग्रवाल, अरविन्द श्रीवास्तव ,आलोक मिश्रा और अशोक खरे , राज्य सरकार की ओर से सी.बी.यादव व उनकी टीम, एन.सी.टी.ई की ओर से रिज़वान अख्तर व उनकी टीम और भारत सरकार की ओर से श्री आर.बी. सिंघलऔर तिवारी के तर्कों को सुना .
निर्णय पारित करने संबन्धी नोटिफ़िकेशन में 12908/2012 के साथ साथ 150/2013 के प्रतिनिधित्व में कनेक्टेड अपीलों का उल्लेख किया गया है जिन पर (ए) निर्णय दिये जाने या (बी) संबन्धित पीठों को संदर्भित /प्रेषित किये जाने के कयास लगाये जा रहे हैं .
अपनी बात:
कम से मैने तो आज तक स्वतंत्र भारत में किसी न्यायालय को किसी ऐसे मामले में बिना मामले के वादियों को सुने ,बिना प्रतिवादियों से जवाब माँगे और मामले पर बिना किसी बहस के निर्णय देते नही देखा-सुना फ़िर भी किसी भी अनहोनी से हमेशा दो-चार होने को तैयार रहता हूँ और आप भी रह सकते हैं . गर्मी की छुट्टियों भर इन्तज़ार सबकी किस्मत में बदा है, कोई स्टे लगाने वाले अंतरिम आदेश के रद्द होने का इन्तज़ार करने वाला है तो कोई इस अंतरिम आदेश के अंतिम आदेश मे बदल जाने का ..भावी विजेयताओं को शुभकामानाये और बाकियों के लिये “और भी हैं राहें.
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