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नकद पुरस्कार वाला लिफाफा !!… (लघु-कथा)

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कवितायेँ लिखने का उसे बहुत शौक था. पहले तो अपनी डायरी में लिखी, फिर अपनी सहेलियों को भेजे पत्रों में भी अवसर के अनुरूप लिख दिया करती थी. धीरे-२ उसका ये शौक एक पैसन में तब्दील होता चला गया. कुछ पत्रिकाओं में भी उसने लिखना शुरू किया. अच्छी रचना होने पर शुरू में तो शाबाशी मिल जाये, यही किसी पुरुस्कार से कम न था, उसकी नज़र में. आस-पास वाले तो इस सम्बन्ध में जिक्र करना भी गुनाह समझते थे. कहीं इसका हौसला न बढ़ जाये! पैसन में तब्दील कवितायेँ लिखने का उसका शौक धीरे-२ रंग ला रहा था. अपनी एक आंटी से उसने और अच्छी कवितायेँ लिखने के गुर भी जाने थे. एक पत्रिका द्वारा अच्छी रचनाएँ आमंत्रित की गयी, जिसमे शीर्ष की चंद रचनाओं को इनाम भी देने की बात थी. उसके उत्साह का ठिकाना न था. आंटी की मदद से उसने कुछ बहुत अच्छी रचनाएँ पत्रिका को भेज दीं. उसकी एक रचना के लिए पुरस्कार हेतु उसका भी चयन हो चुका था. उसकी ख़ुशी का ठिकाना न था. पुरस्कार स्थल पर बुलाकर समारोह के बीच खुद को सम्मानित होते देखना निश्चित ही ख़ुशी का ही पल होता है. एक स्मृति चिन्ह, प्रशश्ति-पत्र और नकद पुरस्कार के साथ उसकी वापसी हुयी. परिवार में ख़ुशी का माहौल था. एक स्थानीय समाचार-पत्र को कार्यक्रम की सूचना, समाचार लगाने की दृष्टि से भेजने के लिए उसने पूरी विस्तृत रिपोर्ट तैयार की. जिसमे नकद पुरस्कार का लिफाफा भी स्केन किया हुआ था और नीचे लिखा था- नकद पुरस्कार वाला लिफाफा !!… पत्र संपादक ने फाइल खोला और दृष्टिपात करते हुए वह एक जगह आकर रुक गया- वह था- नकद पुरस्कार वाला लिफाफा !!… समझाते हुए संपादक ने कहा- ख़ुशी ज़ाहीर है लेकिन कम से कम एक स्तर तो बना कर रखिये. थोड़ी मायूसी तो हुयी लेकिन थोड़े संपादन के बाद समाचार प्रकाशित कर दिया गया. आज भी उसके दिमाग में वह पल तरो-ताज़ा हो जाता है. उसे भी लग रहा था- अतिउत्साह में उसने अन्य फोटोज के साथ लिफाफा भी प्रकाशन के लिए स्केन कर दिया था. कभी-२ खुद ही सोच-सोच कर वह अपने आप पर हंसने लगती है- नकद पुरस्कार वाला लिफाफा !!…

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