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“नव परिवर्तनों के दौर में हिन्दी ब्लॉगिंग” – Contest

Proud To Be An Indian
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हिन्दी ब्लागिंग को आज निश्चित ही हिंदी भाषा के लिए एक सहयोगी की तरह देखा जा रहा है. जब हिंदी के उत्थान की बात हो तो कोई भी जरिया महत्त्वपूर्ण हो जाता है. आज हम साइबर युग के दौर से गुजर रहे हैं और हिन्दी ब्लागिंग की बात कर रहे है, तो सबसे पहले ब्लॉग को समझ लेना ठीक होगा.
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ब्लॉग वेब-लोग का संक्षिप्त रूप है, जो अम्रीका में १९९७ के दौरान इंटरनेट में प्रचलन में आया. शुरुआत में कुछ ऑनलाइन जर्नल्स के लाग प्रकाशित किये गए थे, तथा लाग लिखने वालों की संक्षिप्त टिप्पणिया भी उनमे होती थीं. इन्हें ही ब्लॉग कहा जाने लगा और ब्लॉग लिखने वालों को ब्लोगर. एक ही विषय से सम्बंधित आंकड़ों और सूचनाओं का यह संकलन ब्लॉग तेजी से लोकप्रिय होता गया. १९९७-९८ के केवल दर्जन भर ब्लोग्स को बढ़कर १० लाख से अधिक का आंकड़ा पार करने में करीब ४ साल का वक्त लगा. फिर ब्लॉग, दुनिया की हर भाषा में, हर कल्पनीय विषय में लिखे जाने लगे.

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ब्लॉग के फायदे पर मजेदार ढंग से चुटकियाँ लेते हुए, हिंदी साहित्य संसार के प्राय सभी नए-पुराने समकालीन लेखकों-कवियों के बारे में हंस, जुलाई २००४ के सम्पादकीय में राजेंद्र यादव ने टिप्पणिया की है कि किस प्रकार लोग अपनी छपास पीड़ा को तमाम तरह के हथकंडों से कम करने की नाकाम कोशिशों में लगे रहते हैं. वे आगे कहते हैं कि दिल्ली जैसे जगह से ही हंस जैसे कम से कम १० पत्रिकाएं निकालनी चाहिए. जाहिर है, लेखिकाओं-लेखकों की लम्बी कतारें है और उन्हें अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का कोई मद्ध्यम ही नहीं मिल रहा है. ऐसे में इंटरनेट के व्यक्तिगत वेब पेज और ब्लॉग के अलावा दूसरा रास्ता और कोई नहीं है. इससे यह तो साफ़ होता है कि ब्लॉग्गिंग के कितने फायदे हैं. अब बात करते हैं हिंदी ब्लॉग्गिंग की.

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हिंदी इस देश की राष्ट्रभाषा है. हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है, जो इस पूरे देश में सर्वमान्य है. लेकिन फिर भी उसे उसका स्थान, मान-सम्मान दिलाने के लिए हमें हर वर्ष हिंदी-दिवस, हिंदी-सप्ताह व् हिंदी-पखवाडा मनाना पड़ता है. हिंदी को और अधिक प्रचलित करने के लिए सरकारी-गैर सरकारी स्तर पर उसके अधिक इस्तेमाल की बात की जाती है. आज़ादी के बाद केवल १० वर्ष तथा बाद में केवल १५ वर्षों के लिए अंग्रेजी की वैकल्पिक व्यवस्था की गयी थी, लेकिन आज अंग्रेजी हमारे सर पर चढ़कर बोल रही है. आज हम हिंदी में सिद्धहस्थ हों न हों लेकिन अंग्रेजी में अवश्य होने चाहिए, अन्यथा हमारा सामाजिक स्तर क्या होगा- बताने की आवश्यकता नहीं है. दोहरी शिक्षा-प्रणाली जोकि हिंदी और अंग्रेजी माद्ध्यम से हमारे देश में चल रही है, वह समझ से परे है. देश एक है, लेकीन भाषाएँ दो हैं. वर्ग भिन्न हैं आदि !

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ब्लॉग्गिंग अभिव्यक्ति का एक ऐसा साधन है, जो व्यक्ति को अधिक स्वतंत्रता प्रदान करता है. अंग्रेजी के हावी होने तथा राजकाज की भाषा होने के बाद भी आज भी इस देश में हिंदी भाषियों की संख्या बहुत ज्यादा है. ब्लोगिंग ने व्यव्क्ति को अधिक स्वतंत्र और अभिव्यक्ति के लिए आत्मनिर्भर बनाया है. जिस कारण ज्यादातर लोग आज हिंदी ब्लोगिंग के माध्यम से खुद को अभिव्यक्त कर रहे हैं. निजी ब्लोगों के साथ ही हिंदी में ये साधन उपलब्ध करने वाले मंचों पर हिंदी ब्लोगर्स की बढती संख्या हिंदी ब्लोगींग के लगातार अग्रसर होने की बात को पुख्ता करती है. हिंदी में ब्लोगिंग के कारण अधिक लोगों तक अधिक आसानी से पहुँच हो जाती है, प्रचार-प्रसार ज्यादा और आसन हो जाता है. पाठकों के अधिक विचार आते हैं. आज हिंदी ब्लोगिंग नित नए आयाम गढ़ रहा है. सामान्य विषयों से लेकर राष्ट्रिय, अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर तथा किस्से-कहानियों, कविताओं की अनेकों विधाओं को हिंदी ब्लोगिंग ने मानो पंख लगा दिए हों. अब रचनाकारों को अपने छपास रोग के उपचार के लिए किसी पत्र-पत्रिका का मोहताज नहीं होना पड़ता है. अपने ब्लोग्स के जरिये हिंदी में आप जितना चाहे लिखें.

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यह बताने की जरुरत नहीं है की आज अनेकों रचनाकारों को उनके ब्लोग्स के कारण ही न केवल पहचान मिली है अपितु तमाम पत्र-पत्रिकायों ने उन्हें सहर्ष स्वीकार किया है और स्वयं ही उनसे रचनाएँ आमंत्रित करती रहती हैं. आखिर ये सब कैसे संभव हुआ. हिंदी ब्लोगिंग के कारण. इसलिए कहा जाना चाहिए की आज हिंदी ब्लोगिंग बुलंदियों पर है और एक दिन हमारी हिंदी, हिंदी ब्लोगिंग के रास्ते ही सही पुनः एक बार अपने मान-सम्मान को प्राप्त करेगी.

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