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मोदी की सुरक्षा पर राजनीति बंद हो

वैचारिकी
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भाजपा की और से प्रधानमंत्री पद के दावेदार और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्रभाई मोदी को आतंकी संगठनों के मार्फ़त मिली धमकियों के मद्देनज़र केंद्र से मिली सुरक्षा पर विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई है| वैसे मोदी का विवादों से गहरा नाता है, गोयाकि विवाद भी उनकी मौजूदा राजनीतिक स्थिति को अधिक मजबूत करने लगे हैं| ताज़ा मामला मोदी की पटना में आयोजित हुंकार रैली के ठीक पहले हुए बम विस्फोटों से जुड़ा है| भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा है कि पटना में मोदी की रैली के ठीक पहले हुए बम धमाके बीजेपी नेतृत्व को खत्म करने की साजिश थी। जावडेकर  का कहना है कि नीतीश कुमार ने इस रैली में हुए धमाकों के बाद न तो सुरक्षा के लिए अपनी चूक मानी और न ही गलती। वहीं भाजपा के संसदीय बोर्ड के प्रस्ताव में कहा गया है कि मोदी की रैली के लिए पटना में कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी। और चूंकि मोदी आतंकी संगठनों की हिट लिस्ट में शामिल हैं लिहाजा पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को भी प्रधानमंत्री के स्तर की एसपीजी सुरक्षा दी जाए| गौरतलब है कि फिलहाल मोदी को एनएसजी स्तर की सुरक्षा मिली हुई है| उनकी सुरक्षा में एनएसजी (राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड) के १०८ ब्लैक कैट कमांडो तैनात हैं। इन्हें तीन समूहों में बांटा गया है। एक समूह हमलावरों से निबटने के लिए है तो दूसरा मोदी को घेरे रखने के लिए और तीसरा समूह उन्हें ऐसी स्थिति में सुरक्षित बाहर निकालने के लिए है। हालांकि पटना रैली में हुए बम धमाकों के बाद मोदी की सुरक्षा और अधिक बढ़ा दी गई है तथा गुजरात पुलिस की एक महत्वपूर्ण टुकड़ी भी मोदी के प्रस्तावित रैली स्थल की जांच-पड़ताल करती है किन्तु वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह नाकाफी जान पड़ता है| गुरूवार को छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में मोदी की रैली के ठीक पहले भारी विस्फोटकों का पकड़ा जाना भी यह साबित करता है कि मोदी को अपनी लोकप्रियता की कीमत अपनी ज़िन्दगी दांव पर लगाकर चुकाना पड़ रही है| इसके पूर्व मोदी से इतर राहुल भी अपनी जान को खतरा बता चुके हैं जिससे सुरक्षा एजेंसियां अधिक दबाव में हैं| मोदी की ही बात की जाए तो पंजाब, दिल्ली, झारखण्ड, पूर्वोत्तर राज्य जैसे संवेदनशील स्थानों पर उनकी सुरक्षा को लेकर सर्वाधिक चिंता है| ऐसा भी सुनने में आया है कि पटना की रैली में हुए बम विस्फोटों से इतर अब आतंकी संगठन मोदी पर रॉकेट लॉन्चर से भी हमला कर सकते हैं| लिहाजा भाजपा संसदीय बोर्ड की केंद्र से मोदी के लिए एसपीजी सुरक्षा की मांग मात्र ढकोसला ही प्रतीत नहीं होती| आखिर मोदी की लोकप्रियता और देश के मुख्य विपक्षी दल के कद्दावर नेता को पर्याप्त सुरक्षा देना केंद्र का ही काम है| यूं तो भाजपा की मांग पर गृहमंत्री सुशिल कुमार शिंदे और गृहराज्य मंत्री आरपीएन सिंह ने स्पष्टीकरण दिया है किन्तु मोदी की सुरक्षा बढ़ाने बाबत कोई आश्वासन उनकी ऒर से नहीं आया है| अलबत्ता उन्होंने मोदी को प्राप्त सुरक्षा को पर्याप्त बताते हुए भाजपा की मांग को ही खारिज कर दिया है| सारा विवाद और राजनीति अब मोदी और उनकी सुरक्षा के मुद्दे पर केंद्रित हो गई है|
राजनीति का तकाजा देखिए कि राज्यमंत्री आरपीएन सिंह ने मोदी को एसपीजी सुरक्षा की मांग के मद्देनज़र पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी की हत्या को लेकर ही गलत बयानी कर डाली| उन्होंने कहा कि राजग सरकार पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को सुरक्षा मुहैया करवाने में विफल रही जिससे १९९१ में उनकी हत्या कर दी गई थी| उन्होंने कहा कि मैं राजग के लोगों से कहना चाहता हूं कि जब वे सत्ता में थे तो राजीव गांधी को उप निरीक्षक स्तर की भी सुरक्षा नहीं दी गई और उन्हें अपनी कुर्बानी देनी पड़ी| अब वे सुरक्षा के बारे में बात कर रहे हैं| राजीव गांधी की शहादत को याद करते हुए शायद आरपीएन सिंह इतने भावुक हो गए कि उन्हें इस तथ्य का भान ही नहीं रहा कि राजग के १९९८ में सत्ता में आने से सात वर्ष पहले ही राजीव गांधी १९९१ के लोकसभा चुनावों के दौरान आतंकवादी हमले में मारे गए थे| उस वक्त प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के नेतृत्व में कार्यवाहक सरकार केंद्र में सत्तारूढ़ थी और उनकी सरकार ने भी राजीव गांधी को प्राप्त सुरक्षा को पर्याप्त बताया था| नतीजा देश के सामने है| दरअसल दलगत राजनीति के चलते ही राजीव गांधी को सुरक्षा देने से इंकार किया गया था और अब वही कार्य केंद्र की संप्रग सरकार कर रही है| हालांकि राजीव गांधी और नरेंद्र मोदी में कोई तुलना नहीं की जा सकती और दोनों अलग-अलग कालखंडों में विपरीत परिस्थितियों से जूझे या जूझ रहे हैं; किन्तु समय और काल किसी का इंतज़ार नहीं करता| राजीव गांधी को लिट्टे से जितना खतरा था, उतना ही खतरा मोदी को इस्लामिक आतंकवाद और उससे जुड़े संगठनों से है| दोनों को ही बराबर धमिकयां मिलीं और अब राजीव गांधी के साथ हुई राजनीति का मोदी पर भी प्रयोग बदस्तूर ज़ारी है| वैसे भी अगले आम चुनाव को सुरक्षा एजेंसियां अपने लिए सबसे बड़ी चुनौती मान रही हैं। इस बार मतदान और उसकी तैयारियों से ज्यादा रैलियों की सुरक्षा व्यवस्था संभालना इनके लिए कठिन हो रहा है। खुफिया एजेंसियों का मानना है कि इस बार आतंकियों का ध्यान छोटे शहरों पर ज्यादा है। गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार इस बार मेट्रो शहरों के अलावा कई छोटे शहरों पर ज्यादा ध्यान देने को कहा गया है। खुफिया सूचना के मुताबिक आतंकी इन्हीं शहरों को अपना निशाना बनाने की तैयारी में हैं। इसी तरह स्थानीय पुलिस को खुफिया नेटवर्क से मिली सूचना के आधार पर तत्काल कार्रवाई करते हुए स्लीपर सेल पर भी शिकंजा कसने को कहा गया है। गृह मंत्रालय के अधिकारी यह स्वीकार करते हैं कि  इस बार रैलियों में उमड़ रही भीड़ सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का कारण है, लेकिन दावा करते हैं कि मोदी की व्यक्तिगत सुरक्षा में चूक होने की आशंका न्यूनतम है। पटना धमाकों के बाद विशेष तौर पर नई व्यवस्था की गई है, जिसमें किसी भी चूक की गुंजाइश न्यूनतम कर दी गई है। हालांकि इन रैलियों में आने वाली भीड़ की सुरक्षा को लेकर ये अब भी वैसी गारंटी देने को मुश्किल बताते हैं। सूत्रों के मुताबिक नरेंद्र मोदी आतंकियों की हिट लिस्ट में सबसे ऊपर हैं। इंडियन मुजाहिदीन के कैडर तो यहां तक कहते हैं कि असल में मोदी उनकी लिस्ट में पहले से दसवें नंबर तक हैं। बाकी का नंबर इसके बाद आता है। जब गृह मंत्रालय के अधिकारी ही मोदी की सुरक्षा को संदिग्ध मान रहे हैं तो अब इस मामले को गम्भीरता से लेना ही होगा| केंद्र सरकार से भी यही अपेक्षा होगी कि वह दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय स्तर के लोकप्रिय नेता को प्रयाप्त सुरक्षा के नाम पर आश्वासनों की टोकरी न पकड़ाए बल्कि उन्हें प्रधानमंत्री के समकक्ष सुरक्षा मुहैया करवाई जाए| आखिर मोदी भी प्रधानमंत्री बनने की कतार में सबसे आगे खड़े नज़र आ रहे हैं|

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