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Procrastinating …..

Sincerely yours..
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बच्चों को अच्छी शिक्षा, अच्छे संस्कार दे कर बाहरी दुनिया में स्वयं को स्थापित कर सकने योग्य बना देना ही बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं है और न ही यहीं पर माता पिता के कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है. आपके बेटे या बेटी बुद्धि में कितने भी प्रखर क्यूँ न हो, या कितनी भी अच्छे पैकेज वाली जॉब क्यूँ न कर रहे हों, आपने अभी तक उनके लिए किया ही क्या है.

ये एहसास आप को तब होगा जब आपको उनके लिए उन्ही के स्तर का अच्छा रिश्ता ढूंढने में पसीने छूटेंगे.

खुशकिस्मत हैं वो माँ बाप, जिनके बच्चे कॉलेज या ऑफिस में वर वधू ढूंढ लेते हैं, और उन्हें खामखा की भाग दौड़ और मगजपच्ची से बचा लेते हैं. लेकिन जहाँ माँ बाप को रिश्ता ढूंढना पड़ता है, वहां अच्छी जोड़ी मिल जाने तक जीवन नरक हो जाता है.

हाँ तो ये जीवन नरक हो जाने वाली कहानी मेरी है.

मैं आजकल अपनी सुघर, सुशील, रोजगारशुदा इंजिनियर बिटिया के लिए वर ढूंढ रही हूँ.. मेरी बदकिस्मती से उसे कॉलेज और ऑफिस में कोई मनमाफिक वर नहीं मिला . हालाँकि इंटरमीडिएट के बाद जब वो पढाई के लिए बाहर गयी तो मेरे जानने वालों में कई लोग इस ताक में बैठे थे कि जल्द ही उसका कोई बॉयफ्रेंड बने और वो मेरी छीछालेदर करने का कोई मौका हाथ से न जाने दें.

हालाँकि, मेरी तरफ से कोई ऐसी ताकीद नहीं थी, क्योंकि बच्चों को रिमोट कण्ट्रोल से संचालित करने का कांसेप्ट मुझे पसंद नहीं. बस जाते समय इतना ही कहा कि “देखो बेटा, बचपन से आज तक मैं तुम्हारी प्रोग्रामिंग करती आयी हूँ. अब सॉफ्टवेयर को रन करना और आउटपुट देना तुम्हारा काम है. बस इतना ध्यान रखना कि मेरे बनाये हुए सॉफ्टवेयर पर कोई वायरस न अटैक करने पाए , वर्ना एक बार हार्ड डिस्क क्रेश हो जाती है तो फिर मदर बोर्ड भी चुक जाता है. फिर बाद में कितना भी रिपेयर करवाओ , लेकिन पहले जैसी बात नहीं आ सकती….. “

वैसे ये इत्तेफाक ही रहा कि उसको कोई “मीत न मिला रे मन का..”अब ले दे कर ये ज़िम्मेदारी हम बेचारे माता पिता पर आ गयी कि उचित उम्र पर उसका विवाह भी कर दें. हमसे ज्यादा तो दुनिया वालों को चिंता सवार है ..इतनी , कि जबसे वह विवाह योग्य हुई है तबसे हमें उसकी उम्र याद रखने की ज़रूरत नहीं पड़ती. गाहे बगाहे लोग याद दिला ही दिया करते हैं..

“बिटिया 24 साल 6 महीने 7 दिन की हो गयी है, कब शादी कर रहे हैं उसकी..”

बस जी, जल्दी ही करेंगे, लड़का न मिला तो आम के पल्लव से ही कर देंगे ….

” उम्र बढती जा रही है लड़की की…जितनी कम उम्र में दुल्हन बनेगी उतनी चेहरे पर रौनक चढ़ेगी ..”

हांजी, जितनी जल्दी रौनक चढ़ेगी उतनी जल्दी उतर भी जाएगी..

“लड़की की शादी कर दो जल्दी..कहीं जात कुजात में लड़का पसंद कर लिया तो इज्ज़त मिटटी में मिल जायगी.. “

अच्छा भाई..वो आपकी जात वाला पिछली गली का शोहदा है न..उससे अपनी बिटिया की पहले करा दीजिये , फिर हम अपनी वाली को भी कहीं झोंक देंगे ..

यानि कि कोई यह नहीं कहता कि बच्ची को अच्छी तरह से स्टैबलिश कर दीजिये, अपने पैरों पर इतनी मजबूती से खड़ी हो जाये कि फिर जीवन में कोई आंधी तूफान उसको डिगा न सके. उसने क्या पढ़ा, कितनी मेहनत से कम्पटीशन निकाले, कॉलेज और ऑफिस में कितने मैडल पाए,करियर में आगे क्या सोचा है…. ये तो कोई कभी ध्यान में ही नहीं लाता.. बस शादी शादी शादी..

खैर, शादी भी ज़रूरी है और हमें भी फ़िक्र है. लेकिन जब तक बच्चों का मानसिक स्तर, अकेडमिक लेवल, आपसी पसंद, सब कुछ मैच नहीं करता तब तक किसको कहाँ धकेल दिया जाये.

हाँ तो मैं सुयोग्य वर ढूंढ रही हूँ. जब तक वो बच्ची थी, तब तक मुझे लगता था कि मेरी बच्ची पढने में इतनी तेज़ होने के साथ साथ पाठ्येतर गतिविधियों में भी आगे रहती है, साथ ही गृह कार्य दक्ष ,सुघर, सलीकेदार , होशियार है . और फिर हमारा परिवार भी समाज में अच्छा खासा प्रतिष्ठित है.सभी लोग उच्च शिक्षा प्राप्त, अच्छे अच्छे पदों पर हैं,तो इसके लिए तो दूल्हों की लाइन लग जाएगी. लेकिन, मुझे पता न था, और आज तक पता नहीं चला कि दूल्हे को और उसके माता पिता को आखिर चाहिए क्या..

पहले तो जान पहचान के लोगों से योग्य वर ढूँढने की बात कही गयी और कुछ दिन इंतज़ार किया. जब कहीं कोई बात न बनी तो कुछ लोगों ने सलाह दी कि ऑनलाइन मैट्रिमोनिअल साइट्स पर बेटी का प्रोफाइल डाल दीजिये, रिश्तों की लाइन लग जाएगी. पहले तो मुझे बहुत बुरा लगा. अब ये दिन आ गए मेरी बच्ची के..एक अजीब सी धारणा थी कि जो दुनिया में एकदम ही गए गुज़रे होते हैं, उन्ही का रिश्ता नेट पर ढूँढा जाता है.

फिर धीरे धीरे समझ में आया कि दुनिया में लोगो को आपके बच्चो के लिए रिश्ता ढूँढने से भी ज्यादा ज़रूरी काम हैं. और फिर अब नाऊ, ठाकुर के बताये रिश्तों पर शादी करने का ज़माना भी नहीं रहा. बच्चे आपके हैं तो उनका भविष्य सुनिश्चित करना आप ही की ज़िम्मेदारी है.

सो मैं ने ऑनलाइन मैट्रिमोनिअल साइट पर बेटी का प्रोफाइल बनाया और ग्रूम हंट शुरू किया . शाम के लगभग दो -तीन घंटे खपा कर , पहले ही दिन मैं ने लगभग पचास लड़कों के प्रोफाइल खंगाल डाले, और दसेक प्रस्ताव भी भेज डाले..

आपको बेहद ईमानदारी से एक बात बताना चाहती हूँ. उस दिन , रात को जब मैं सोने चली तो नींद आने में बड़ी मुश्किल हुई. आँखें बंद करती तो आँखों के आगे जवान जवान लड़कों के फोटो नाचने लगते. दिमाग ख़राब हो गया बिलकुल. आखिरकार मैं चादर वादर फेंक कर उठ बैठी . आंख, नाक, कान, माथे और कान के अन्दर तक झंडू बाम लगाया , पतिदेव को मन ही मन हज़ार बातें सुनायीं कि कहाँ फंसा दिया…तब जाकर रात के दूसरे पहर नींद आई.

अगले दिन से मेरे पास फोन आने लगे. वर पार्टी के नहीं बल्कि मैट्रिमोनिअल साइट्स के प्रतिनिधियों के . उन्होंने मुझे बताया कि मुझे कुछ हज़ार रुपये फीस जमा करनी होगी ताकि मैं मनचाही पार्टी का कांटेक्ट नंबर देख कर उनसे बात कर के आगे की कारवाई कर सकूँ वर्ना साईट पर मेरी उपस्थिति सिर्फ ऐसी ही होगी जैसी चिड़ियाघर में दर्शक. अगर संपर्क बनाना है तो पैसे दीजिये. ये बात मुझे पहले से पता नहीं थी .खैर पैसे भरे और सिर्फ तीन महीनों के लिए मेरे हाथों में खजाने की चाभी आ गयी. अब तीन महीने तक जिसका चाहिए फोन नंबर देख लीजिये और ख़ुशी से पागल हो जाइये. हाँ ख़ुशी से पागल ही क्यूंकि मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास था की ये तीन महीने बीतते न बीतते , मेरी सुघर सलोनी बिटिया का सुयोग्य वर मेरे दरवाजे पर बारात लेकर खड़ा होगा.

ये दो साल पहले की बात है.

फिर शुरू हुआ एक अंतहीन सिलसिला दिमाग के ऑमलेट बनने का. लड़का ढूंढना इतना आसान काम नहीं था जितना मैं ने सोचा था. बिलकुल सांप सीढ़ी का खेल.सबसे पहले तो शकल सूरत की सीढ़ी चढ़ कर ऊपर पहुंचे, फिर हाइट, फिर जॉब और फिर सैलरी. इन चार सीढियों को चढ़ कर काफी ऊपर आ गए तो अचानक नज़र पड़ती है कि लड़का मांगलिक है. … लो जी अब यहाँ पर सांप ने काट लिया और आप फिर से नीचे आ गए. अगर मांगलिक वाले सांप से बच गए तो कम सैलरी, माता-पिता और परिवार की छोटी पदवी और कमतर स्थिति, या फिर बहुत दूर देश के निवासी होने जैसे जाने कितने सांप मुंह फाड़े तैयार रहते हैं और कहीं न कहीं काट कर फिर से खेल के निचले लेवल पर पहुंचा देते हैं.

रिश्तों के ऑफ़र मेरे पास भी आते हैं. जिनमे से शायद ही कोई काम का होता हो. ईश्वर की बनायी रचना को कोई चुनौती नहीं, लेकिन पहली नज़र तो सूरत पर ही जाती और फिर मन भर आता. सोचती कि मैं किसी चेहरे को बुरा कहने वाली कौन होती हूँ, आखिर उनके माता पिता भी तो उनको चूमते पुचकारते और वैसे ही दुलार करते होंगे जैसे मैं अपने बच्चों को करती हूँ. फिर भी ,मैच भी तो कोई चीज़ होती है. दुखी मन से अच्छी जॉब, सैलरी और परिवार होने के बावजूद मैं ने सिर्फ सूरत के कारण न जाने कितने रिश्तों को इनकार किया है.

और इंकार किया है अच्छे अच्छे, एक से बढ़ कर एक, लाजवाब, मनमोहक, अंतरजातीय विवाह के प्रस्तावों को. ढपोरशंख, रुढ़िवादी बिलकुल नहीं होते हुए भी परिवार के बुजुर्गों की भावनाओं को सम्मान देने के लिए मुझे यह काम अत्यंत ही दुखी हो कर करना पड़ता है. हालाँकि वैदिक , पौराणिक , मनुस्मृति से ले कर भारतीय विवाह अधिनियम तक किसी भी जगह यह नहीं लिखा है कि “विवाह सजातीयों में होगा तभी मान्य होगा “. लेकिन सामाजिक मान्यता इसके बिलकुल उलट है , जिसके अनुसार “विवाह दो आत्माओं का पवित्र बंधन है . शर्त यह है कि दोनों आत्माओं को एक ही जाति का होना चाहिए.”

कभी कभी तो बिटिया से कम हाइट वाले वर का प्रोपोज़ल भी आ जाता है तो सर पीट लेने का मन होता है. एक दो प्रोपोज़ल्स तो हाई स्कूल पास लड़कों के भी आये हैं. सच कह रही हूँ उनके घर वालों से शिद्दत से मिलने का मन होता है.

कई बार ऐसे प्रस्ताव आते है जो हर तरह से मनमाफिक होते हैं. मैं ख़ुशी ख़ुशी फोन करती हूँ तो उत्तर मिलता है कि पहले कुंडली मिल जाने दीजिये. कहने को जी चाहता है कि “खुशकिस्मत हैं आप कि आप का बेटा कुंडली मिलवाने का मौका दे रहा है, वर्ना आजकल के चलन के हिसाब से अगर गले में माला पहन कर सीधे घर ला कर ही किसी को मिलवाता कि ये रही आपकी बहू , तो आप उसे दरवाजे पर रोक कर कुंडली मिलवाने कहाँ दौड़ते..” लेकिन , अभी तक कह नहीं पाई हूँ.

मेरी बिटिया का कहना है कि दरअसल कुंडली मिलाने के लिए मांगे जाने वाले टाइम में कुंडली नहीं बल्कि आये हुए विभिन्न प्रस्तावों में से कौन पार्टी कितना खर्च कर सकेगी, ये मिलाया जाता है.

रिकॉर्ड रहा है कि कुंडली आज तक मिली भी नहीं है.

यहाँ पर , ये कुंडली वाली बात मेरी समझ में आती भी नहीं है. पहले होता होगा, जब ब्रह्माण्ड में केवल प्राकृतिक ग्रह नक्षत्र होते थे. उनकी चुम्बकीय शक्तियां और मानव की चुम्बकीय शक्तियां आपस में कुछ रिएक्शन अवश्य करती होंगी, ऐसा मुझे लगता है. लेकिन अब तो मानव द्वारा बनाये गए न जाने कितने उपग्रह, यान और चुम्बकीय उपकरणों से युक्त स्टेशन अंतरिक्ष में घूम रहे हैं तो क्या मानव की कुंडली पर इनकी परिक्रमा से उत्पन्न उर्जा का प्रभाव नहीं पड़ता होगा…??

अब ,जब तक इन बीजकों को लेकर की गयी गणना से कुंडली नहीं बनायी जाती, तब तक मैं तो कुंडली मिलान पर विश्वास करने से रही. लेकिन जो करता है उसको मजबूर तो नहीं कर सकती न..

दो तीन जगह ऐसा भी हुआ कि बात काफी आगे बढ़ गयी. दोनों पक्षों के माता पिता सब कुछ पूछ कर, जाँच पड़ताल कर संतुष्ट हुए तो बच्चों के बीच बात करवाना तय हुआ. फिर अचानक से एक दिन उधर से फोन आया…”माफ़ कीजियेगा , मेरा लड़का कहीं और इंटरेस्टेड है. हमें पता नहीं था, अभी अभी उसने बताया. आपको इतना इंतज़ार करवाने के लिए माफ़ी चाहते हैं…”

ये अनुभव तो ऐसा रहा जैसे 99 के खाने में मौजूद सांप ने काट खाया हो. फिर से पहुँच गए पहले लेवल पर. फिर से वही भिन्न भिन्न प्रोफाइल्स खोल कर शकल, सूरत, हाइट, जॉब, सैलरी, परिवार, ये, वो…….सर खपाना शुरू…

जब कभी मैं किसी ऐसी जगह प्रस्ताव भेजती हूँ जहाँ मुझे लगता है कि सा कुछ बहुत ही सही सही मैच हो रहा है और लड़के वाले बस झट से हाँ करके आगे की बात शुरू करेंगे, वहां से जब कारण रहित इंकार आ जाता है तो ऐसा दिल टूटता है कि क्या बताऊँ. मुझे बिलकुल भी समझ नहीं आता कि आखिर ऐसा क्या चाहिए उन लोगों को . मैं जब कहीं इंकार करती हूँ तो कम से कम माफ़ी मांगते हुए इंकार का कारण अवश्य लिख देती हूँ .

आजकल मेरी दिनचर्या यही हो रही है. जल्दी जल्दी घर के काम निपटा कर बाकी समय लैपटॉप लेकर बैठी रहती हूँ. हजारों प्रोफाइल्स खंगाले होंगे. सैकड़ों लोगों को फोन किया होगा. अखबारी मैट्रिमोनिअल में भी घुसी रहती हूँ. पर अभी तक कुछ परिणाम हाथ नहीं लगा है. हालत ये है कि मैं अब लोगों से बात करने से बचती हूँ कहीं कोई ये न पूछ ले…”कब कर रही हैं बेटी की शादी.”

बेटी मज़े लेती है. “लगी रहो मम्मा …अच्छा है ना , मैं तब तक आराम से हूँ..”

इस बीच मेरी बेटी ने अपने व्हाट्सएप पर स्टेटस लिखा है ..”Procrastinating”..

ईमानदारी की बात तो ये है कि मुझे इसका मतलब नहीं पता था . पहले मुझे लगा कि शायद “गेम ऑफ़ थ्रोंस ” का कोई डायलॉग होगा. लेकिन मैं ने उससे पूछा नहीं. इससे पहले एक बार “HODOR” का मतलब पूछा था तो वो बताते बताते रोने लगी थी. इसीलिए मैं ने सोचा की डिक्शनरी में देख लेती हूँ..

आप भी जान लीजिये. “Procrastinating” का अर्थ है ..”act of postponing or delaying endlessly to achieve the best …”

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