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श्रीकृष्ण की छवि धूमिल करते लोग

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इन्सान अगर धर्म की लाठी से न हांका गया होता तो उसमे और जानवरों में कोई फर्क न होता। दुनिया के अलग अलग हिस्सों में जब जब किसी महापुरुष को मनुष्य के अन्दर व्याप्त पशुत्व दिखाई पड़ा तो समाज को उस पशुत्व की हानि से बचाने के लिए उन्होंने धर्म पर चलने के रास्ते सुझाये। आम इन्सान को ये बातें आसानी से समझ में आ सकें इसके लिए धर्म को परालौकिक शक्तियों और चमत्कारों से जोड़ा गया। देवी- देवताओं और अवतारों की महानता के किस्से सुना सुना कर पथभ्रमित मनुष्य को सही राह दिखाने का प्रयास किया गया।

 

देश, काल और परिस्थिति के अनुसार ज्ञानियों ने किसी एक अलौकिक शक्ति को आराध्य माना और अपनी अपनी प्रेम भावना और श्रद्धा के अनुसार उसको ईश्वर, अल्लाह, गॉड जैसे नाम दिये, लेकिन दुनिया के किसी भी कोने में पाए जाने वाले हर धर्म में निहित परब्रह्म का तत्वज्ञान, समाज-कल्याण का उद्देश्य और आध्यात्मिक मीमांसा बिलकुल एक जैसी होती है। वर्ना क्या बात थी कि सदियांं बीत जाने के बाद इस घनघोर कलयुग में भी धर्म जीवित है। यह अलग बात है कि समय बीतने के साथ ही धर्म का मूल भाव कहीं खो गया और प्रचलित कहानियों में लोग अपने हिसाब से हेर-फेर करते चले गए। हम बात कर रहे हैं अवतारों के बारे में प्रचलित जनश्रुतियों और उनसे छेड़-छाड़ की। और इसके सबसे बड़े शिकार हैं भगवान श्री कृष्ण। 

 

श्री कृष्ण को अगर कुछ नास्तिक भगवान कहने से इंकार करते हैं तो भी इतिहास साक्षी है कि वे एक युगपुरुष थे। उनके राज्य द्वारिका के भग्नावशेष अभी भी समुद्र की तलहटी में पाए जाते हैं। इसलिए इतना तो मानना ही पड़ेगा कि “भगवद्गीता” के माध्यम से उन्होंने संसार को जो जीवन जीने का सन्मार्ग दिखाया है, वह किसी अन्य साहित्य में दुर्लभ है। 

 

दुख की बात है कि कलयुग में अज्ञानियों ने श्री कृष्ण के चरित्र के साथ जो खिलवाड़ किया है उसका उन्हें न तो कोई पछतावा है और न ही इसके खिलाफ कोई आवाज़ ही उठाता है। श्री कृष्ण अगर बचपन में गोकुल में रहे और यशोदा माता सहित समस्त ब्रजवासियों का दुलार उन्हें मिला तो इसका यह मतलब तो नहीं कि श्रीकृष्ण ब्रज की स्त्रियों (गोपियों ) से अनैतिक व्यवहार करते थे। हालांंकि, संसार भर में फैले कृष्ण के अनुयायियों ने गोपियों के संग कृष्ण की रासलीला के वर्णन को यह कह कर न्यायोचित ठहराया है कि जब विष्णु भगवान, रामचंद्र के रूप में पृथ्वी पर अवतरित थे तब उस समय के महान सन्तों ने कृष्ण अवतार के समय गोपियांं बन कर उनके साथ लीला के रूप में सत्संग करने का वचन लिया था। फिर भी यह जनश्रुतियां ही हैं। 

 

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार देश में मुस्लिम शासकों के काल में कुछ देव मंदिर गिराए गए। तब लोग कुछ नहीं कर सके और उनके पास भगवान की शरण में जाने के अलावा दूसरा मार्ग ही क्या था? भक्ति काल की शुरुआत ऐसे ही हुई, लेकिन कर्मयोगी कृष्ण की छवि को कवियों ने एक क्षुद्र, कामातुर, रसिक प्रेमी से बदल डाला। सबसे पहली बार संस्कृत के कवी “जयदेव”  ने सन 1200 में अपनी कृति “गीत-गोविन्द” में किया था।

 

इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए राधा और कृष्ण के सम्बन्ध को सीमा से कहीं आगे ले जाना उन कवियों की कोरी कल्पना है, जिन्होंने कृष्ण के बारे में केवल जनश्रुतियों से जाना है और कभी कोई ग्रन्थ पढ़ने का कष्ट नहीं उठाया। आज कल तो फ़िल्में व टीवी सीरियल ही लोगों के ज्ञान का स्रोत बने हुए हैं। दुख की बात है की फिल्मों और सीरियलों में कृष्ण जी का इतना गन्दा रूप दिखाया जाता है जो किसी आम इन्सान के लिए दिखाया जाये तो समाज उसे कभी भी स्वीकार न करे।

 

इसका हालिया उदाहरण एक दिग्‍गज महिला निर्माता का सीरियल है। इस सीरियल में भगवत गीता के उपदेशों को अगर बताया भी गया है तो तोड़मरोड़ कर, जिनका वास्तविक गीता के उपदेशों से कोई मिलान ही नहीं है। 

 

अगर कृष्ण के बारे में जानना है तो यह जानिए कि विश्व में योग, अध्यात्म, लम्बी दूरी तक मार करने वाले अस्त्र (सुदर्शन), और मार्शल आर्ट (कलारिपट्टू) की नींव भी श्री कृष्ण ने ही रखी है। हिन्दू धर्म में सर्वशक्तिमान मांं दुर्गा की उत्पत्ति कृष्ण ने ही योगमाया द्वारा की है। कृष्ण ने ही असम में बाणासुर से युद्ध में भगवान शिव से युद्ध के समय माहेश्वर ज्वर के विरुद्ध वैष्णव ज्वर का प्रयोग कर विश्व का प्रथम जीवाणु युद्ध किया था। लेकिन नहीं, इन्हें जानने में चरम आनंद की प्राप्ति नहीं होती इसीलिए आज कृष्ण को लोग छलिया, रसिया आदि नामों से ही अधिक पहचानते हैं।

 

यजुर्वेद में कहा गया है कि- जब धरती पर ऋषि व सन्त जन शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् भक्त समाज का गलत मार्ग दर्शन कर रहे होते हैं, तब अपने तत्वज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं पूर्ण परमात्मा ही कविर्देव बन कर (कबीरपंथी इन्हें कबीर प्रभु मानते हैं) ही आते हैं। यह पूर्ण परमात्मा या कबीर और कोई नहीं बल्कि हमारी अपनी चेतना की पुकार है। तो आइये हम अपने अन्दर के कबीर को जगाएं और समाज को गलत मार्ग पर ले जाने से रोकें। 

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