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भारतीय कला-संस्कृति और संस्कार भारती

vicharvinimay
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उत्कृष्ट कला-संस्कृति किसी भी राष्ट्र की वास्तविक शक्ति और समृद्धि का परिचायक होती हैं। मानव जीवन में कला और संस्कृति का वही स्थान है जैसा फूलों में सुगंध का अथवा संगीत में राग-रागिनी का होता है। हम भाग्यशाली हैं कि हमने भारत जैसे देश में जन्म लिया है जहां की कला-संस्कृति समूचे विश्व को आकृष्ट करती रही है। सदियों से हमारा सांस्कृतिक वैभव हमे गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान करता रहा है। लेकिन दूसरी तरफ इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि समय-समय पर हमारे सांस्कृतिक मूल्यों का ह्वास भी होता रहा है। खास तौर पर पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से भारतीय संस्कृति की छवि धुमिल हुई है। चूंकि संस्कृति से समाज और समाज से व्यक्ति का सीधा जुडाव होता है इसलिए यह व्यक्तिगत स्तर पर हर भारतीय के लिए qचता का विषय होना चाहिए। संतोष की बात यह है कि राष्ट्रवादी विचारधारा से जुडे लोगों ने खतरे के संकेत को भांप लिया और अपनी सांस्कृतिक गरिमा को सुरक्षित रखने के प्रभावी उपाय तलाशने में जुट गए।

भारतीय कला-संस्कृति के गौरवशाली इतिहास को अक्षुण्ण रखने के लिए एक ऐसी संस्था की आवश्यकता महसूस हुई जो अखिल भारतीय स्तर पर कार्य करे। और इस तरह सन् १९८१ में ‘संस्कार भारती‘ का आविर्भाव हुआ। विगत ३० वर्षों से यह संस्था भारत की कला और संस्कृति के लिए पूरी तरह समर्पित होकर कार्य कर रही है। संस्कार भारती की दृष्टि में संस्कृति मानवीय अस्तित्व का निगेहवान है। संस्कृति के अभाव में समाज विघटित होने लगता है, परिवार बिखर जाते हैं, खुशियां गुम होने लगती है, जीवन में मिठास के स्त्रोत सूखने लगते हैं तथा मानवीयता की भावना लुप्त होने लगती है।

भारत में कला को पवित्र माना जाता है तथा कलाकार अत्यधिक सम्मान की दृष्टि से देखे जाते हैं। हम यह मान कर चलते हैं कि कला और संस्कृति के बगैर राष्ट्र और मानव का सार्वभौम विकास संभव नहीं है। ऐसे में संस्कार भारती जैसी संस्था द्वारा किए जा रहे कार्य निःसंदेह सराहनीय व प्रशंसनीय है। यह हर्ष का विषय है कि विगत तीन दशकों के अपने सफर में संस्कार भारती देश के लगभग सभी क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है। गांवों से लेकर शहरों व तटीय इलाकों से लेकर पवर्तीय क्षेत्रों तक कला व संस्कृति की गूंज सुनाई पडने लगी है।

कला-संस्कृति राष्ट्र की अस्मिता से जुडा विषय है। जिस प्रकार पर समाज में व्यक्ति की पहचान उसके संस्कारों के आधार पर होती है उसी तरह किसी राष्ट्र की प्रतिष्ठा में संस्कृति की बहुत बडी भूमिका होती है। भारत पूरे विश्व में अपनी आध्यात्मिक संस्कृति व उत्कृष्ट कलाओं के लिए जाना जाता है। हमारे समक्ष देश की सांस्कृतिक छवि को धुमिल होने से बचाने की चुनौती है। संस्कार भारती ने इस चुनौती को न सिर्फ स्वीकार किया है बल्कि राष्ट्र के सांस्कृतिक उत्थान का संकल्प लेकर निरंतर आगे बढ रही है। संस्कार भारती के प्रयासों से तकरीबन लुप्त हो चुकी लोक कलाओं को पुनर्जीवित करने में सफलता मिली है। इतना ही नहीं, वर्षों तक एक क्षेत्र विशेष तक सीमित रही इन कलाओं को नई पहचान भी मिल रही है।

किसी नेक व बडे उद्देश्य को लेकर शुरू किया गया कार्य सदैव कठिनाईयों से भरा होता है। समाजहित के कार्यों मे विभिन्न प्रकार की बाधाओं व कठिनाईयों से सामना होना स्वाभाविक है। लेकिन, यह भी सच है कि ऐसे कार्यों से जुडे लोगों पर हमेशा इश्वर की अनुकंपा बनी रहती है जिसके सहारे वे तमाम तरह की बाधाओं को पार कर लक्ष्य तक पहुंच ही जाते हैं। विशेष रूप से जिस कार्य का उद्देश्य राष्ट्रहित से जुडा हो वह कभी असफल नहीं हो सकता। सुसंस्कृत और सुंदर भारत के निर्माण का लक्ष्य लेकर आगे बढ रही संस्कार भारती को अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जनसहयोग की आवश्यकता है। अपनी कला व संस्कृति से आत्मिक जुडाव रखने वाले अधिक से अधिक लोग यदि संस्कार भारती के हमसफर बनें तो यह कारवां मंजिल तक जरूर पहंचेगा।

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