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कामयाब हुई चाल, टला लोकपाल

vicharvinimay
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संसद के भीतर और बाहर कई दिनों तक चले नाटक के बाद आखिरकार लोकपाल ठंडे बस्ते में चला ही गया। भले ही इस मुद्दे पर सरकार और विपक्ष एक दूसरे को खरी-खोटी सुना रहे हों लेकिन हकीकत यह है कि लोकपाल की ऐसी दुर्दशा सभी राजनीतिक दलों की मिलीभगत से हुई है।

दरअसल, किसी भी पार्टी अथवा नेता को यह कतई मंजूर नहीं है कि किसी को उनके खिलाफ जांच करने या कार्रवाई करने का अधिकार मिले। नेताओं को लगा कि लोकपाल के रूप में उनके वर्चस्व को चुनौती देने वाला सामने आ जाएगा इसलिए उन्होंने इस मुद्दे को अपनी प्रतिष्ठा से जोड लिया। संसद में बहस के दौरान सांसदों ने जिस प्रकार लोकपाल को लेकर अपना दर्द बयां किया उससे यह स्पष्ट हो गया कि उन्हें किस बात का डर सता रहा है। सबसे ज्यादा भयभीत वे लोग दिखे जिनके दामन पर पहले से ही भ्रष्टाचार का दाग लगा हुआ है। लोकपाल बिल संसद में लाना सरकार की मजबूरी थी सो उसने कियाŸलेकिन क्या सरकार वास्तव में लोकपाल को अस्तित्व में लाना चाहती थी? इस सवाल का जबाव यदि सकारात्मक होता तो फिर संसद में अपने ही सहयोगी दलों का विरोध नहीं झेलना पडता। लोकसभा में लोकपाल बिलका पास होना सामूहिक रणनीति का हिस्सा था। इसी तरह लोकपाल को सांवैधानिक दर्जा दिए जाने से संबंधित संशोधन प्रस्ताव का गिरना भी पूर्वनिर्धारित था जिससे विपक्ष के साथ-साथ सरकार भी अवगत थी।

राज्यसभा में बिल पारित नहीं होने के बाद सभी राजनीतिक पार्टिया राहत महसूस कर रही है। सरकार यह सोच कर खुश है कि उसने लोकपाल लाना चाहा लेकिन विपक्ष ने टांग अडा दिया। दूसरी तरफ विपक्ष इसलिए संतुष्ट है कि उन्हें संसद में सरकार को परास्त करने का मौका मिला और इस बात से सभी पार्टियों के नेता खुश है कि वे खुद को लोकपाल के पहरे से बचाने में कामयाब रहे। हालांकि सरकार कह रही है कि वह बजट सत्र में फिर से लोकपाल बिल पेश करेगी। यानि इस नाटक का दूसरा दृश्य अभी बांकी है।

इधर संसद में लोकपाल गिरा और उधर मीडिया अन्ना के आंदोलन की हवा निकालने में जुट गई। मुंबई में शारिरिक अक्षमता के चलते अन्ना को अनशन तोडना इस बात का प्रमाण बन गया कि अब उनके आंदोलन में दम नहीं है। चलो मान लिया कि अन्ना अब प्रभावी नहीं रहे तो क्या यह भी मान लिया जाए कि भ्रष्टाचार के खिलाफ भारतीय जनता का आक्रोश खत्म हो गया? अगर ऐसा है तो यह भारत के भविष्य के लिए अशुभ संकेत है। भ्रष्टाचार जैसी इतनी बडी समस्या को लेकर हुआ इतना बडा आंदोलन इतनी आसानी से दम तोड देगा, यह बात गले नहीं उतरती। शोले भले ही मद्धिम पड गए हों लेकिन आग अभी बांकी है और इस आग को भडकने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।

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