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फिल्म, साहित्य और समाज…

A Step Towards...
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एतिहासिक साहित्य हमारी अनमोल धरोहर है। उसको सही रुप मै सुरक्षित रखना सभी की जिम्मेदारी है। इन गौरव गाथाओ का कोई कुछ नही बिगाड़ सकता ।
पद्मावती फिल्म को लेकर लोग सड़क पर उतर आए है। प्रसन्नता होती है कि एक स्त्री की आन-बान-शान की रक्षा के लिये लोगो का सैलाब सामने आया है। रानी पद्मावती के किस्से एतिहासिक ही नही बल्कि उनकी शौर्य की गाथा कहते है। अलाउद्दीन खिलजी ने उनकी परछाई तक को छू नही पाया था। इस गाथा को बचपन से सुनते आ रहे है। आश्चर्य तब होता है कि जिस देश मै एक नारी की एतिहासिक कहानी को मात्र फेर-बदल करने भर से इतना विरोध हो रहा है, फिर यही जन समूह जो नारी सम्मान की बात करता है उसने आज तक कभी उन जीती जागती नारियो के साथ हो रहे कुक्रत्यो की बात क्यो नही की, जो आये दिन समाज में हो रहे है। उनके विरोध में कोई कदम क्यो नही लिया। जितना विरोध इस फिल्म का कर रहे है ,यदि इसी तरह सब मिलकर समाज मै घूम रहे अलाउद्दीनो से नारी शक्ति को बचाने के लिए आगे आते तो अच्छा होता।

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