Where have we lost the happiness?
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आज फिर उठेगा कलम
करने को बयान मन की
लगा था यूँ की जैसे अब न लिख सकेंगे कभी
दिशा बदल सी गयी है अब मेरे जीवन की
मगर में चाहती हूँ की फिर वहीँ पहुँच जाऊं
जहाँ न रवि पहुँचते हैं न ही कवि
थोडा कुछ हट के लिखूं डट के लिखूं
पिरो के शब्दों की एक अद्भुत माला
जो भूली हुई गलियां थी उनमे फिर से फिरूं
नहीं भाते पहले की तरह पहाड़ नदिया
ये हवा ये फिजा और ये सावन की घटा
कभी लगता है जैसे बीत गया वो मौसम ख़ुशी का
इस उदासी भरी भारी ज़िन्दगी में
कुछ हलके लम्हों की तरह हो ये मेरी कविता
मुझे अग्रसर करे लिखने को कुछ उम्दा उम्दा
इस कोशिश में पाठकों से है बस एक कामना
पढ़े पहली इ -कविता देके शुभकामना
सधन्यवाद ………….
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