- 11 Posts
- 6 Comments
मृदुल अनमोल शब्दो की लड़ी जैसे हो रत्नों की
ह्रदय मनमोहिनी हिंदी ,ये मेरी मातृभाषा हिंदी
सरस सागर है भावों का , विचारो और सवालों का
जिसे प्रस्तुत सुगम करती ,ये मेरी मातृभाषा हिंदी
कहे रहीम उन्मुक्त दोहा ,कभी मीरा की है भक्ति
न जाने कितने कवियों की है आत्मभाषा हिंदी
लगे परिपूर्ण सी खुद में , बहे अद्भुत नदी सी ये
सुखद अनुराग की धारा ,सुगम अनुपाम है यह हिंदी
भरे उत्साह उत्सव सा , रहे उन्माद उद्गम सा
की जैसे सोंधी खुशबू हो , मेरी धरती की है हिंदी
देश प्रेम की प्रज्वल्लित ज्योत , कर दे हर जान को ओत प्रोत
पावन ,सावन की ये फुहार , करे अलंकार से ये श्रृंगार
करे दिशाहीन को ये प्रबल पढ़ ले कोई रामचरित मानस
भवसिंधु की नैया सी यह , है शक्ति युक्त और दे साहस
कर्तव्य पूर्ण करना हमे ,प्रयोग हिंदी व्यापक करें
प्रगति देश की निश्चित है जन जन जन को इससे करें
जय हिंदी
जय भारत
Read Comments