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अव्वल सद साल मुश्किल (पहले सौ साल मुश्किल )ईरान

Vichar Manthan
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इस्लामिक सरकार आने के बाद ईरान की जनता को इतना त्रस्त किया गया था वह निराशा में कहते थे अव्वल सद साल मुश्किल अर्थात पहले सौ साल मुश्किल से गुजरते हैं लेकिन आने वाली जेनरेशन को जैसा निजाम है वैसी आदत पड़ जाती है| 1979, ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी , पहलवी डायनेस्टी के आखिरी शाह  उन्होंने आर्य मिहिर की उपाधि धारण की थी उनके खिलाफ हुई व्यापक क्रन्ति को वहाँ के लोग आजादी की लड़ाई कहते थे क्रान्ति प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए की गयी थी सत्ता पर मुल्ला सवार हो गये |शाह के समय में क्रूड आयल से आई सम्पन्नता का स्वाद जनता ने चखा था ईरान के बड़े  शहरों की तरक्की हुई उनकी तस्वीर बदल गयी लेकिन गावों की तरह ध्यान नहीं दिया गया उनके खिलाफ असंतोष बढ़ रहा था अंत में उन्हें वतन को अलविदा कहना पड़ा| सत्ता पर काबिज इस्लामिक सरकार पर लोग टिप्पणी करते थे दीनी सियासत का कोई तोड़ नहीं है जैसे ही उन पर सवाल दागा जाता शुमा जद्दे इस्लाम अर्थात इस्लाम के विरुद्ध हो जुबान बंद हो जाती है |ईरान के हवाई अड्डे मेहराबाद से बाहर निकलते ही एक बहुत बड़ा बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था “वी एक्सपोर्ट रिवोल्यूशन” एक और बोर्ड था एक महिला बैठी  शहीदों को जन्म दे रही है वह शहादत देने जा रहे हैं न जाने कितने मुजाहिद्दीन शाह के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे अब मार दिए गये रात को पासगाहों में गोली की आवाजे आती थीं हर गोली इंसानी जान लेती थी फांसी का कोई हिसाब नहीं था इन आजादी के दीवानों को काफिराबाद के नाम के कब्रिस्तानों में दफन हैं उनकी कब्र पर रोने वाला निजाम की नजर में दुश्मन था यह कब्रिस्तान बड़े शहरों की शुरूआत में देखे जा सकते हैं |

नये सिरे से बदलाव का समय था शाह के समय की संस्कृति के स्थान पर कट्टर पंथियों द्वारा इस्लामिक संस्कृति थोपी गयी अचानक सब कुछ बदल गया सबसे अधिक महिलाओं के अधिकारों का हनन हुआ जबकि वह शिक्षित प्रगतिशील  नौकरी पेशा भी थीं , योरोपियन लिवास पहनती थी अब उनको चादर में अपने आप को लपेटना पड़ा हिजाब की पाबंदी को विदेशियों पर भी लागू किया गया ऐसी आजादी मिली सब कुछ बदल गया हर ईरानी के हाथ में माला दिखायी देती थी जिसके मनकों से वह खेलते रहते थे |  सिनेमाघर बंद कर दिए गये ईरान टीवी पर मनोरंजन के नाम पर बच्चों के कार्टून और अधिकतर मुल्ले दिखाई देते थे फिल्म भी आती तो किसी मकसद से पूरा देश डिक्टेटर शिप के पंजे में था लोग स्वदेश छोड़ कर भागना चाहते थे अत : ईरानी करेंसी की कीमत घटती जा रही थी| अमेरिका द्वारा प्रतिबन्ध लगाने के बावजूद जनता को सस्ता राशन दिया जाता लेकिन जरूरतें मुश्किल पूरी होती थीं अन्य जरूरी सामान के लिए शिरकतें थी (सरकारी दुकाने) जबकि शाह के रिजीम में बाजार सामान से पटे रहते थे खुली अर्थ व्यवस्ता लुभावने विज्ञापन अब ?

ईराक के राष्ट्रपति सद्दाम की सुन्नी सरकार शियाओं पर राज करती थी उसे जन्नत नशीन इमाम आयतुल्ला खुमैनी समर्थित विरोध का भय था अत :नव निर्मित सरकार को उखाड़ने के लिए ईरान पर आक्रमण कर दिया इसका फायदा पूरी तरह से इस्लामिक सरकार ने उठा कर अपने आप को मजबूत कर लिया  जिसने भी सिर उठाया उसी की जेंदानों (जेल )में डाल दिया लाखो कालेज में पढ़ने वाले स्टूडेंट जोर  मुजाहिद्दीन जेल में बंद मौत का इंतजार कर रहे थे | अशांत क्षेत्र आजाद खुर्दिस्तान की जंग लड़ने वाले पिशमर्गों उनके हिमायतियों  को कुचल दिया |इराक ईरान युद्ध कई वर्ष चला एक दिन लड़ाई बंद हो गयी लेकिन न कोई जीता न हारा |

लगता नहीं था ईरान में विरोध के स्वर उठेंगे | 2009 में राष्ट्रपति अहमदजादे के दुबारा चुने जाने के विरुद्ध प्रदर्शन हुए लेकिन उग्र नहीं थे ‘यहाँ अक्सर कंजर्वेटिव और मोडरेट की बात होती है , लेकिन दोनों ही मुल्ला हैं |चुनाव होते थे परिवार का एक आदमी अपना पहचान पत्र लेकर जाता परिवार के हर वोटरों का वोट दे आता | स्कूल की शुरुआत नारों से होती थी मरगबा अमरीका मरगबा शौरवी ( अमरीका और सोवियत रशिया मुर्दाबाद |पढ़े लिखे परेशान थे उनके बच्चों का भविष्य क्या होगा ? जबकि शाह अंग्रेजी और विज्ञान शिक्षा के समर्थक थे| ले युद्ध खत्म होने के बाद बेतहाशा महंगाई बढ़ी युद्ध के समय एक नौकरी थी पासदारी( क्रान्ति दूत सरकार के हर आदेश को पूरा करना ) या युद्ध के लिए सरबाज ( सिपाही )कालेज बंद थे लेकिन खुले ईरानियों को अधिक समय तक दुनिया से अलग नहीं रक्खा जा सकता था सिनेमाघर खुले फिल्में थीं लेकिन काट छांट कर जिसमें महिला किरदार गायब ईरानी डब की कला में माहिर हैं  अपने मतलब के डायलाग फिल्मों में भर देते हैं लोग रोजगार चाहते थे लेकिन सरकार को विश्व में बसे शियाओं की चिंता है हर शिया समस्या में वह अपने हिजबुल्ला भेजते हैं सीरिया की असद सरकार का पूरी तरह समर्थन किया इजरायल में मस्जिद अक्सा येरुसलम उनकी लिस्ट में सदा रहता है वह सउदी अरब के विरोधी हैं मक्का पर भी अपना हक जमाना चाहते हैं तेल की दौलत के बल पर मजबूत शिया बेल्ट बनाने, शिया सुन्नी झगड़े को बढ़ा कर शियाओं के आका बनने के लिए प्रयत्न शील रहे हैं इसमें धन लगता है |

कच्चे तेल की कीमतें कम होने लगी जनता सुविधायें चाहती थे लेकिन बदले में ?भ्रष्टाचार बढ़ रहा था सरकारी कारिंदे पासदार अपनी जेबें भर रहे थे मुल्लों का जीवन सुखद था बेरोजगारी बढ़ने –बढ़ते सत्ताईस प्रतिशत हो गया जीडीपी घटने लगी ईरान के पास निर्यात के लिए मुख्यतया कालीन या पिस्ता ही है जबकि रूहानी सरकार ने भारत से चाबहार बन्दरगाह का समझौता किया |कब तक लोगों को बैल्ट टाईट करने को कहते |हैरानी है सरकार का विरोध मशद , ईरान का दूसरा बड़ा शहर शिया मुल्लों के गढ़ से शुरू हुआ | 28 दिसम्बर से शुरू विरोध तेहरान ही नहीं कई शहरों में फैल गया मुख्यतया कर्मनशाह ,रशद ,मुल्लाओं की नगरी कौम, मशद ,सनंदाज और अनेक शहर सुलग रहे हैं , सरकार ने अपने समर्थक मुल्लों को भी जलूस की शक्ल में भेजा लेकिन प्रभावी नहीं रहा |तेहरान विश्वविद्यालय में प्रदर्शन कारियों नें सर्वोच्च नेता आयतुल्ला अली खमैनी के खिलाफ  सत्ता नारे लगाये वह मौलानाओं के शासन के विरुद्ध हैं सरकार द्वारा दी गयी चेतावनियों का कोई आन्दोलन कारियों पर असर नहीं हुआ विरोध बढ़ता जा रहा है पुलिस के साथ झड़पें भी बढ़ रहीं हैं मुख्यतया मुद्दा बेरोजगारी बढती महंगाई और भ्रष्टाचार और ईरान की हर जगह  दखलंदाजी से भी लोग नाराज हैं राष्ट्रपति हसन रूहानी की सरकार सख्ती से विरोध को दबाने से डर रही हैं कहीं हालात बेकाबू न हों जायें लेकिन चेतावनी दी है सरकार विरोधी प्रदर्शनों से सरकार सख्ती से निपटेगी | पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पानी की बौछारे डालीं इन दिनों अधिकाँश ईरान में बर्फबारी हो रही है | प्रदर्शन कारियों को गिरफ्तार किया जा रहा है |

राष्ट्रपति ट्रम्प की नजर ईरान पर है व्हाइट हॉउस के एक ब्यान में कहा गया है भ्रष्ट शासन और ईरानी सरकार के आतंकवाद को बढ़ावा देने की नीति से ईरानी नाराज हैं असल में यह झगड़ा मुल्लों के वर्चस्व का भी है राष्ट्रपति रूहानी मौड्रेट माने जाते हैं सरकार ने रिवोल्यूशनरी गार्ड को विरोध समाप्त करने के लिए भेज दिया है वह जानते हैं ईरान की जनता को कैसे खामोश करना है अबकी आने वाले नौरोज के जश्न तक सब कुछ ठीक हो जाएगा |

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