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‘जगदम्बा हरि आन ,शठ चाहत कल्याण’ पार्ट -1 “रिलीजियस”

Vichar Manthan
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रामलीला के मैदानों मे प्रति वर्ष तीन पुतले जलाए जाते हैं प्रमुख रावण उसके दोनों ओर भाई कुम्भकर्ण एवं पुत्र मेघनाथ के पुतले| श्री राम तीर छोड़ते हैं बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक पुतले एक के बाद एक जलते हैं | जय श्री राम के घोष के साथ सारा वातावरण हर्ष उल्लास से भर जाता है | कहते हैं कुम्भकरण सा भाई नहीं मेघनाथ सा पुत्र नहीं |जिन्होंने रावण के बुरे समय में अंत तक साथ दिया उससे पहले मृत्यु का वरण किया| कुम्भकर्ण के नाम लेते ही एक विशाल आकृति सामने आती है कत्थक कली के नर्तक जैसा हंसता चेहरा ,वह भुजाओं के बल से बड़े-बड़े वृक्षों को उखाड़ कर अपना हथियार बना लेता है जब चलता है सारी पृथ्वी डोलती है जिस जीवित प्राणी को देखता है उसे उठा कर पशु की तरह मुहँ में डाल लेता है जैसे आखेटक हो लेकिन उसका आखेट कान से बाहर निकल कर बच जाता है| वह अपने में शस्त्रों से सुसज्जित सेना है| जिधर जाये आतंक मचा दे रामलीला में उसका आगमन का दृश्य रोमांचक होता है |बाल्मीकि रामायण में युद्ध के अंत का वर्णन रोचक है| युद्ध समाप्त हुआ चारो और शव ही शव बिखरे थे राक्षस अपने मृतकों का अंतिम संस्कार शवों को समुद्र तल में डुबो कर या विशाल चिता में सामूहिक दाह संस्कार कर रहे थे हर तरफ जल्द बाजी थी और भय था|

श्री हनुमान को विभीषण अपने साथ लंका के राजमहल में ले जा रहे थे राजमार्ग खाली थे राजमहल के साथ सटे द्वार से वह हनुमान जी को एक सादा कमरे में ले गये यहाँ से भूगर्भ में जाने के लिए तंग सीढियाँ थी कुछ सीढियाँ उतरने के बाद थोड़ी दूर चल कर फिर सीढियाँ आयीं यह मार्ग प्रकाशित था लेकिन रौशनी प्राकृतिक नहीं थी बल्कि दीवारों में लगे तराशे रत्नों पर हल्की रौशनी पड़ते से मार्ग चमक रहा था| सीढियाँ उतरने के बाद वह एक गलियारे में पहुंचे यहाँ चांदी के द्वीपों में मोम के दीपक जल रहे थे| दीप दानों पर चांदी की झालरें लगी थीं जिससे टकरा कर प्रकाश दुगना तिगुना हो जाता था |गलियारे को पार कर एक अत्यंत विशाल प्रकोष्ठ में पहुंचे यह जरूरत से ज्यादा ऊँचा था प्रकोष में द्वार ही द्वार थे हर द्वार एक मजबूत स्टोर रूम में खुल रहा था यहाँ हर द्वार पर लगे ताले देखने वाले की उत्सुकता जगा रहे थे| ताले संख्या में दस हजार के करीब होंगे हरेक का छेद जहाँ चाबी लगाई जाती है अलग था लेकिन विभीषण उन्हें एक ही चाबी से खोल रहे थे हाथ के हल्के संकेत से द्वार खुलते जा रहे थे जैसे हर द्वार का कोई कोड था प्रत्येक खुलने वाला कमरा प्रकाशित था | प्रकोष्ठों में ताजगी लिए हल्की ठंडी हवा ठंडक दे रही थी| पूरा भाग त्रिकूट पर्वत के नीचे काट कर बनाया गया था |आज भी अन्वेषक लंका में अनगिनत गुफाओं का वर्णन करते हैं लेकिन लम्बे समय से प्राकृतिक आपदाओं को सहते-सहते उनके द्वार और मार्ग पत्थर टूट कर गिरने से अवरुद्ध है |

कमरों की छतों की सीलिंग में सोने की  चेन गोला कार आकृति में बंधी थी जिसके चारों और तराशे  कांच लगे थे जिनसे प्रकाश छन रहा था| प्रकोष्ठ की दीवारों पर पत्थर के शेल्फ लगे थे हर शेल्फ में कतारों से कुछ न कुछ व्यवस्थित ढंग से सजाया गया था| दीवार पर लगे जमाए गये नीले पत्थर पर सोने के अक्षरों में लिखा था ‘सच जाने शांत रहें’ |श्री हनुमान ने शेल्फों पर रखे हर सामान को देखा महीन तागों से बुने सिल्क के वस्त्र थे जिन पर सोने की तारों से बेल बूटे काढ़े गये थे | शेर, चीते, तेंदुए एवं सुनहरे भालुओं की खाल के बने वस्त्र थे | ढंग से रखी गयीं असंख्य बहुमूल्य पुस्तकें जिनमें व्यंजनों की विधियां,औषधियों की विधियाँ, दवाईयाँ ,उपचार की विधियाँ, बीमारियों के नाम और लक्षण यहाँ तक डिप्रेशन पर भी खोज की गयी थी| जख्मों के प्रकार उपचार की दवाईयाँ, शल्य चकित्सा पद्धति, आज का पूरा चकित्सा विज्ञान पुस्तकों में वर्णित था |धरती में पाई जाने वाली असंख्य वनस्पतियाँ ,विषैली वनस्पतियाँ , धरती और  समुद्री जीवों और कीट जगत का वर्णन था रत्नों की पहचान और अनेक  विषयों की पूरी लायब्रेरी थी| उस समय की प्रचलित भाषाओँ के शब्द कोष, ज्योतिष विज्ञान ,अन्तरिक्ष विज्ञान एवं खगोल शास्त्र पर भी पुस्तकें थी विभिन्न सुगन्धों , सौन्दर्य प्रसाधन और विष बनाने की विधियों पर पुस्तके थीं | रावण संगीत प्रेमी था वह विभिन्न साज बजाने में निपुण था | संगीत शास्त्र , विभिन्न सरगमों की पांडुलिपिया ज्ञान विज्ञान और विभिन्न वाद्य यंत्रों एवं उनके प्रयोग की पुस्तकें भी थीं |महंगे –महंगे वाद्य यंत्र यह एक दूसरे से मिला कर रखे गये थे एक से स्वर निकालने पर अन्य भी उसी प्रकार अपनी धुन से स्वर निकालते थे| ज्ञान विज्ञान की अनगिनित पुस्तके क्रम से सजी थीं प्राचीन पांडुलिपियों के गठ्ठर थे |  दीवारों पर लेप कर उन पर चित्र बनाये गये थे यही नहीं दीवारों को खालों से मढ़ कर उन पर भी चित्र बने थे | हर प्रकार की मदिरा के पात्र रखे और चषक थे |सोने का अकूत संग्रह  और समुद्र से निकलने वाले अनमोल रत्नों के भंडार भरे थे| अनेक सजावटी वस्तुयें जिनमें ताम्बे के गोले, चांदी के सितारे तांबे से बनी आकृतियाँ कांसे के मुखोटे, स्वर्ण पत्तियां जिन पर नक्काशी की गयी थी| चन्द्रमा की शक्ल से मोड़ कर हाथी दांत से बनी फूलों की आकृतियाँ तथा इस्पात से बना सामान भी था| ऐसा लग रहा था विश्वकर्मा ने स्वयं इनका निर्माण किया हो |हर वस्तु के निर्माण का सूत्र था जिसे आज फार्मूला कहते हैं| हथियारों के कक्ष लगभग खाली थे | विभीषण ने कहा उचित नेतृत्व में यह कक्ष, सामान और पुस्तके हमारी रक्ष संस्कृति और सभ्यता के विकास की धरोहर हैं| ऐसी और अनेक दुर्गम गुफायें हैं |आप पहले व्यक्ति हैं जिन्हें यह खजाना देखने का अवसर मिला है अपनी सम्पदा का हम निरंतर संरक्षण करते हैं इसे न हम खोते हैं न भूलते हैं न तिरस्कार करते हैं| दुर्लभ को सम्भालना हमारा स्वभाव है, समस्त खजाने पर लंका के महाराज रावण का मालिकाना अधिकार था | आप इसमें से कुछ भी ले सकते हैं |विभीषण ने एक प्राचीन पांडू लिपि जिसे विशेष सावधानी से रखा गया था खोल कर उसके कुछ मन्त्र हनुमान जी को सिखाये जिस मृत का आह्वान करेंगे वह जीवित हो जाएगा परन्तु हमारी रक्ष संस्कृति का विश्वास है जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन जी लिया उसे फिर से जीने की इच्छा नहीं होनी चाहिए| श्री हनुमान ने अपनी प्रजाति के बानर भालुओं को जीवित करने के लिए उनका आह्वान कर मन्त्र का उच्चारण किया ,जीवित हो कर वह नये जीवन पर आश्चर्य कर रहे थे| लंका के राजवैद ने जब संजीवनी बूटी का प्रयोग मूर्छित लक्ष्मण पर किया था वह जीवित हो गये थे |

प्रश्न उठता है रावण निरंतर युद्धों में व्यस्त रहता था विजय पाना, विजित प्रदेशों को अधिकार में रखना  आसान नहीं है| रावण ने देवताओं और नव ग्रहों, काल और मृत्यु अपने वश में कर लिया था | रावण का पुत्र मेघनाथ विजय यात्राओं में व्यस्त रहता था| भाई विभीषण नीतिज्ञ थे और लंका के मंत्री थे | प्रमुख वैज्ञानिक कौन था? रावण का भाई कुम्भकर्ण, छह माह सोने के लिए विख्यात था वह एक दिन जग कर आमोद प्रमोद में मस्त रहता था | रावण की प्रयोगशालाओं में निरंतर प्रयोग होते थे, जो भूतल में सुरक्षित थे इनकी विश्व को भनक तक नहीं थी कहीं प्रयोगशालाओं का संरक्षक कुम्भकर्ण तो नहीं था ?जिनके अनुसंधान निरंतर लंका की श्री में वृद्धि कर रहे थे |

गुसाईं जी के रामचरित्र मानस में वर्णन है रावण और उनके भाईयों ने निरंतर तप किया जिससे प्रसन्न होकर श्री ब्रम्हा ने वर मांगने को कहा लेकिन कुम्भकर्ण की विशाल काया से परेशान हो गये यह तो मेरी सम्पूर्ण सृष्टि को ही खा जाएगा |सरस्वती ने ब्रह्मा की मंशा जान कर कुम्भकर्ण की बुद्धि फेर दी जैसे ही ब्रम्हा ने वर मांगने को कहा उसने एक दिन जगने और छह माह की निद्रा मांगी मेडिकल साइंस की दृष्टि से इन्सान इतना सो नहीं सकता उसे भोजन और नित्य क्रिया की आवश्यकता पडती है | रावण ने अमरता मांगी थी विभीषण ने नीति मांगी कुम्भकर्ण ने हो सकता हो तीक्ष्ण बुद्धि मांगी हो | विश्व से अलग रह कर अपनी रक्ष संस्कृति के विकास के लिए निरंतर लगा रहता हो | सोने की विकसित लंका उसी की देन हो कुछ भी हो कुम्भकर्ण अति विवेकी था|

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