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‘मेरे पिता को पाकिस्तान ने नहीं वार ने मारा है ‘ गुरु मेहर कौर

Vichar Manthan
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‘मार्मिक है’ पहले मैं करगिल युद्ध के वीर शहीदों की शहादत को नमन करती हूँ |

श्री गुरु गोविन्दसिंह जी का मूल मन्त्र था ‘पहले मरण कबूल कर जीवन दी छड आस’ तभी देश बचेगा|

‘युद्ध’ भयानक शब्द हैं भारत भूमि में कोई नहीं चाहता युद्ध हो परन्तु भारत पर युद्ध थोपा जाता रहा हैं| गौतम बुद्ध की धरती से बौद्ध भिक्षुओं ने खतरनाक यात्रायें कर उनके संदेश दूर दराज प्रदेशों तक पहुंचाये, सत्य और अहिंसा के संदेश मंगोलिया तक फैले| हजारों वर्ष से हमारी सांस्कृतिक विरासत में शान्ति अहिंसा, सहनशीलता और विश्व कल्याण की भावना रही है|  “सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः।  ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आजादी की लड़ाई महात्मा गाँधी के नेतृत्व में सत्य अहिंसा और असहयोग के शस्त्र से लड़ी गयी| सीमाओं पर निरंतर बम गोलों की वर्षा के बीच पाकिस्तान से आतंकवादियों की खेपें धरती को खून से रंगने के लिए भेजी जाती हैं| समय – समय पर चीन सैनिकों का जमावड़ा बढ़ा कर हमारे बड़े भूभाग पर अपना अधिकार जताता है | चीन विस्तारवादी नीति का पोषक था 1950 में भारत और चीन के बीच में स्थित स्वतंत्र देश तिब्बत पर कम्युनिस्ट चीन ने अपना अधिकार जमा लिया भारत कुछ नहीं कर सका लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश पर भी नजर रही है |

संयुक्त भारत के दो खंड हुए भारत और पाकिस्तान 15 अगस्त 1947 रिफ्यूजी अपना सब कुछ खो कर भारत आ रहे थे उनका अपना देश अब पाकिस्तान बन गया था अंत में कटी हुई लाशों से भरी रेल गाड़ियाँ आने लगीं| पाकिस्तान की कश्मीर पर नजर थी सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रदेश जिसे दुनिया की छत कहा जाता है 21 अक्टूबर को पाकिस्तान के नार्थ वेस्ट फ्रंटियर के लड़ाके सैनिक कबाईलियों के वेश में लूटमार मचाते हुए श्री नगर की तरफ बढने लगे कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने भारत से मदद के लिए गुहार लगा कर सैनिक सहायता मांगी| कृष्णा मेनन को महाराजा ने भारत के साथ विलय की सहमती का पत्र ,जिस पर उनके हस्ताक्षर थे दिया पत्र के साथ कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस के प्रेसिडेंट शेख अब्दुल्ला की सहमती भी थी |कश्मीर बचाने के लिए भारतीय सेनाओं का बकायदा पाकिस्तानी सेना से युद्ध हुआ कश्मीर का बहुत बड़ा हिस्सा तब तक भारत से कट चुका था |आजादी के बाद अब भारत को विश्व पटल पर स्वतन्त्रता अखंडता एक समृद्ध देश के रूप में पहचान बनाना था|

शीत युद्ध जोरों पर था विश्व दो गुटों में बट गया लेकिन नेहरु जी ने गुट निरपेक्षता की नीति अपना कर विश्व को पंचशील का सिद्धांत दिया हमारी विदेशी नीति साधन और साध्य दोनों की पवित्रता में विश्वास करती है|  भारत ने सबसे पहले कम्युनिस्ट चीन को मान्यता दी थी | उस समय के विश्व रंगमंच पर नेहरूजी का बहुत सम्मान था विश्व की हर समस्या के निदान में नेहरु जी की उपस्थिति दर्ज होती थी चीन तटस्थ राष्ट्रों के सम्मेलनों में उनके साथ दिखाई देता था देश में हिंदी चीनी भाई ,भाई के नारे लगे लगा एक समय ऐसा आएगा एशिया से दोनों राष्ट्र विश्व का नेतृत्व करेंगे लेकिन सीमा विवाद की आड़ मे चीन ने 1962 में भारत पर हमला कर दिया भारत की चीन से 4,054 किलोमीटर मिलती है |उस समय हमारी सैनिक स्थित कमजोर थी सेना के पास बर्फीले स्थानों पर लड़ने के लिय पर्याप्त कपड़े जूते और अत्याधुनिक हथियार नही थे हमें पीछे हटना पड़ा है | चीन ने ऐसा खंजर देश के सीने पर घोपा जिसे हम आज भी नहीं भूल सके अब अंतर्राष्ट्रीय मंच पर चीन आगे बढ़ गया ताकतवर को दुनिया प्रणाम करती हैं |उस समय के लोग अकसर प्रश्न करते थे चीन ने हमसे अधिक तरक्की कैसे कर ली ? उसे तानाशाही का लाभ मिला |हम उससे पीछे अवश्य रह गये परन्तु हमारा लोकतंत्र से कभी विश्वास नहीं टूटा |

भारत और चीन के बीच 1962 का युद्ध पकिस्तान ने देखा था युद्ध में भारत की स्थिति कमजोर थी| पाकिस्तान ने अमेरिकन ब्लाक के साथ सीटो और बगदाद पैक्ट पर हस्ताक्षर किये उसे कम्युनिज्म से लड़ने और सैनिक दृष्टि से मजबूत बनाने के लिए आधुनिक हथियारों की सप्लाई होने लगी अमेरिका ने पेटेंट टैंक जिन्हें अजेय माना जाता था की बड़ी खेप भेजी और वायु सेना को भी मजबूत किया | पाकिस्तान  का हौसला बढ़ा उसने चीन से भी नजदीकियां बढ़ाई | पाक अधिकृत द्वारा कश्मीर में चीन ने पाक सैनिकों को दो वर्ष तक गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिग दी| पाकिस्तानी युद्ध नीतिकार पूरी तरह आश्वस्त थे भारत में उनसे लड़ने की हिम्मत नहीं है वह कश्मीर को बचा नहीं सकता| लेकिन एक सितम्बर 1965 के बाद भारतीय सेना ने लाहौर और सियालकोट का बार्डर खोल कर वह कर दिखाया जिसकी पकिस्तान कल्पना भी नहीं कर सकता था | सेनायें लाहौर से कुल 16 किलोमीटर की दूरी पर लाहौर शहर में प्रवेश करने में समर्थ खड़ी थीं लाहौर शहर भारतीय तोपों की जद में था | इस युद्ध में दोनों देशों ने बहुत कुछ खोया पाकिस्तान के 3800 सैनिक मारे गये भारतीय सेना के 3000 शहीद हुए |

1971 बंगला देश का निर्माण- पाकिस्तान में चुनाव हुए शेख मुजीबुर्रहमान की आवामी पार्टी को बहुमत मिला लेकिन जुल्फिकार अली भुट्टो किसी भी तरह सता हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे जिन्हें प्रधान मंत्री बनना था अत: मुजीबुर्रहमान को जेल में दाल दिया गया यहीं से बंगलादेश की नीव पड़ गयी| पाकिस्तान के राष्ट्रपति याहियाखान के आदेश पर जरनल टिक्का ने ऐसा दमन चक्र चलाया मानवता कराह उठी |खूनी संघर्ष में स्त्रियों तक को नहीं बख्शा गया जीवन की रक्षा के लिए भारत में शरणार्थी आने लगे पड़ोसी के कष्टों की आंच भारत तक आने लगी उनकी हर सुविधा का ध्यान रखना था | एक करोड़ के लगभग लोगों ने शरण ली जिससे भारत की इकोनोमी प्रभावित होने लगी | इंदिरा जी ने कुशल कूटनीतिज्ञ की भाँति विश्व का ध्यान भारत की और खींचने के लिए राष्ट्राध्यक्षयों के सामने रिफ्यूजियों की समस्या को रखा | पूर्वी पाकिस्तान में मुक्ति वाहिनी सेना का गठन किया गया जिसके सदस्य आधिकतर बंगलादेश का बौद्धिक वर्ग और छात्र थे उन्होंने भारतीय सेना की मदद से अपनी भूमि पर पाकिस्तानी सेना से संघर्ष किया अंत में पाकिस्तानी सेना का मनोबल इतना गिर गया जनरल नियाजी को 93000 पाक सैनिकों सहित भारतीय सेना के समक्ष आत्म समर्पण करना पड़ा जबकि पाकिस्तान के मनोबल को बनाये रखने के लिए अमेरिका ने सीधे हस्ताक्षेप तो नहीं किया लेकिन राष्ट्रपति निक्सन ने सातवाँ जंगी जहाजी बेड़ा जिसका रुख भारत की तरफ बंगाल की खाड़ी में खड़ा कर दिया| इंदिरा जी विचलित नही हुई वह सोवियत रशिया से पहले ही संधि कर चुकी थीं |भुट्टों 20 दिसम्बर को पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने सत्ता सम्भालते ही उन्होंने देश को बचन दिया वह बंगलादेश को फिर से पाकिस्तान में मिला लेंगे | कई महीने बाद राजनीतिक स्तर के प्रयत्नों के परिणाम स्वरूप जून माह 1972 में शिमला में बातचीत शुरू हुई | समझौते के आखिरी चरण में राष्ट्रपति भुट्टो से एक बात सख्ती से इंदिरा जी ने मनवाई, वह मजबूरी में तैयार हुए |’शिमला समझौते के अंतर्गत दोनों देश अपने विवादों का हल आपसी बातचीत से करेंगे कश्मीर समस्या का अंतर्राष्ट्रीय करण नहीं होगा |

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