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“चुनावी परिणाम पर प्रचार प्रोपगंडे का असर ” ‘कांटेस्ट’ जागरण जंक्शन फोरम

Vichar Manthan
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भारतीय गण राज्य का पहला चुनाव देश वासियों के लिए एक उत्सव  के समान था दूर दराज से रंग बिरंगे प्रादेशिक परिधान पहन कर लोग वोट देने आये थे ज्यादा तर लोग एक ही चुनाव चिन्ह से परिचित थे दो बैलों की जोड़ी
दूसरा  चुनाव आया तब तक  जनता के सेवक बहुत समझदार हो  चुके थे तथा जम कर  कमाना भी सीख  गए थे  इस  चुनाव में जम कर धन बल का प्रयोग किया गया झंडियां बैनर और कार्य कर्ताओं के  बड़े- बड़े  जलूस  निका ले गए चुनाव के अंतिम दौर में रथ पर सबार हो कर जनता के सेवक वोट मांगने आते जलूस में हाथी घोड़े ,बैंड ,बाजे ,नगाड़े नाचते हुए कार्य कर्ता पूरे उत्स्व का माहौल होता था |
यह  हमारे जनता के प्रतिनिधियों  का जी भर कर दीदार की समय  था उसके बाद वह पांच वर्ष बाद दर्शन देने वाले थे जितनी शान शौकत से चुनाव लड़ा जाता था उतना ही जीतने  के  आसार बढ़ जाते थे उम्मीदवार के प्रचार के लिए कवितायें और नारे गढ़े जाते थे एक नारा आज भी मुझे नर्सरी रैम की तरह याद है  वह  किस दल के उम्मीदवार थे मुझे याद नहीं है पर नारा याद है
“छुनन गुरू की क्या पहचान , हाथ में डंडा मुहं में पान “
राजनीतिक  दलों की आमने सामनें  स्टेज सजती थी उम्मीदवार सफेद लक झक कपड़े पहन  कर कुर्सी पर बैठते थे कार्य कर्ता  पूरी तैयारी से वाद विवाद में भाग लेने आते थे वाद विवाद होते लोगों का भारी जमावड़ा होता कुछ लोग सामने वाले के सवाल का जबाब लिख -लिख कर स्टेज पर  पर्चियां भेजते कहीं उनका  वक्ता पिछड़ न जाये |इतना वाद विवाद होता था हर दल के वक्ता का गला बैठ जाता था लोग भी उत्साह से तालियाँ बजाते और   बीच- बीच में नारे  लगाते  थे कई बार भजन मंडलियाँ चुनाव प्रचार के बीच मे भजन या गीत सुनाती |रोनक मेले के बीच में चुनाव होते थे लेकिन प्रोपगंडा भी जबरदस्त होता था अफ्फाहों  का बाजार पूरा गर्म होता किस्से कहानियों की भी  कोई कमी नहीं होती थी  ऐसा कोई  हथकंडा नहीं था जो न अजमाया  गया हो | जितने उत्साह से चुनाव होता था उससे ज्यादा लोगों का दिल खट्टा हो जाता था आज की तरह सारे कसमे वादे चुनाव के साथ खत्म हो जाते थे  |

भारतीय गण राज्य का पहला चुनाव देश वासियों के लिए एक उत्सव  के समान था दूर दराज से रंग बिरंगे प्रादेशिक परिधान पहन कर लोग वोट देने आये थे ज्यादा तर लोग एक ही चुनाव चिन्ह से परिचित थे दो बैलों की जोड़ी दूसरा  चुनाव आया तब तक  जनता के सेवक बहुत समझदार हो  चुके थे तथा जम कर  कमाना भी सीख  गए थे  इस  चुनाव में जम कर धन बल का प्रयोग किया गया झंडियां बैनर और कार्य कर्ताओं के  बड़े- बड़े  जलूस  निका ले गए चुनाव के अंतिम दौर में रथ पर सबार हो कर जनता के सेवक वोट मांगने आते जलूस में हाथी घोड़े ,बैंड ,बाजे ,नगाड़े नाचते हुए कार्य कर्ता पूरे उत्स्व का माहौल होता था |

यह  हमारे जनता के प्रतिनिधियों  का जी भर कर दीदार की समय  था उसके बाद वह पांच वर्ष बाद दर्शन देने वाले थे जितनी शान शौकत से चुनाव लड़ा जाता था उतना ही जीतने  के  आसार बढ़ जाते थे उम्मीदवार के प्रचार के लिए कवितायें और नारे गढ़े जाते थे एक नारा आज भी मुझे नर्सरी रैम की तरह याद है  वह  किस दल के उम्मीदवार थे मुझे याद नहीं है पर नारा याद है

“छुनन गुरू की क्या पहचान , हाथ में डंडा मुहं में पान ”

राजनीतिक  दलों की आमने सामनें  स्टेज सजती थी उम्मीदवार सफेद लक झक कपड़े पहन  कर कुर्सी पर बैठते थे कार्य कर्ता  पूरी तैयारी से वाद विवाद में भाग लेने आते थे वाद विवाद होते लोगों का भारी जमावड़ा होता कुछ लोग सामने वाले के सवाल का जबाब लिख -लिख कर स्टेज पर  पर्चियां भेजते कहीं उनका  वक्ता पिछड़ न जाये |इतना वाद विवाद होता था हर दल के वक्ता का गला बैठ जाता था लोग भी उत्साह से तालियाँ बजाते और   बीच- बीच में नारे  लगाते  थे कई बार भजन मंडलियाँ चुनाव प्रचार के बीच मे भजन या गीत सुनाती |रोनक मेले के बीच में चुनाव होते थे लेकिन प्रोपगंडा भी जबरदस्त होता था अफ्फाहों  का बाजार पूरा गर्म होता किस्से कहानियों की भी  कोई कमी नहीं होती थी  ऐसा कोई  हथकंडा नहीं था जो न अजमाया  गया हो | जितने उत्साह से चुनाव होता था उससे ज्यादा लोगों का दिल खट्टा हो जाता था आज की तरह सारे कसमे वादे चुनाव के साथ खत्म हो जाते थे  |

तीसरा चुनाव आया लोग गाँधी टोपी और खादी के कपड़ों से चिढ़ने लगे |देश अपनी गति से चल रहा था परन्तु राज नेता इतने धनवान  हो चुके थे  वह धन बल से चुनाव जीतने के सारे हथकंडे अपनाने लगे वोट की कीमत लगने लगी | यह सब तो चलता ही था पर जब भी नेहरू जी चुनाव प्रचार के लिये आते लोग उन्हें बड़े प्यार से देखने और सुनने आते | वह देश की विदेश की बातें करते जनता जनार्धन की समझ में आता या नहीं आता पर लोग उन्हें देख कर खुश होते |नेहरू जी फूल पुर से चुनाव लड़ रहे थे इंदिरा जी उनका चुनाव प्रचार करने के लिए आती थी | नेहरू जी को बच्चे बहुत प्रिय थे अत :उनके गले में माला डालने के लिए कुछ बच्चों को ले जाया गया नेहरू जी के गले में माला डाल कर एक जलूस की शक्ल में काफिला फूल पुर की गलियों में इंदिरा जी के नेत्रत्व में चल पड़ा हम सब बच्चे भी साथ थे ,एक टूटे घर के बाहर काफिला रूक गया इंदिरा जी को प्यास लगी थी उन्होंने पानी माँगा जिससे पानी माँगा वह गृहणी एक पीतल की चमचमाती लूटिया में शायद गुड या शक्कर का शरबत लाई इंदिरा जी उसे गटगट कर पी गई हम बच्चों को किसी ने पानी नहीं पूछा वह शरबत ऐसी कहानी बना कुछ मत पूछिये इंदिरा जी का प्यास से गला सूख रहा था राजा घर की राजकुमारी इतनी सादा कि एक गरीब घर से पानी माँगा वह लोग तो हैरान रह गये उन्होंने रगड़-रगड़ कर लूटिया जो बाद में लोटा बन गया धोया उसमें गुड घोला इंदिरा जी इतनी प्यासी थी गट- गट कर पी गई यह कहानी फूल पुर की गलियों से निकल कर इलाहाबाद और दूर प्रदेशों तक बरसों चलती रही

आज भी कुछ नहीं बदला राहुल जी दलित  की बस्ती में  ठहरने जाते थे  ,अपने साथ लाया खाना खाते  सील बंद बोतल का पानी पीते और  विभिन्न चैनलों की हैड लाइन बन जात  |जिस घर में राहुल जी का काफिला ठहरा था उससे किसी ने पूछा आपके घर राहुल जी पधारे आपको कैसा लगा जबाब मिला कुछ नहीं पहले पुलिस आई सब की तलाशी ली हमें कहा राहुल जी आ रहें हैं वह आपके घर ठहरेंगे  हमने झाड़ कर खाट बिछा दी सब आये  अपना खाया खाया साथ लाई बोतल का पानी पिया फोटो खिचाते रहे कुछ बतराये फिर चले गये | अब जरूरत नहीं है राहुल जी इन बस्तियों में फटकते भी नहीं हैं योगगूरू राम देव ने इस पर अंग्रेजी के मुहावरे का अनुवाद कर चुटकी ली उन्हें लेने के देने पड़ गये साथ ही उनके भक्तों को यह संदेश गया बाबा को कितना सताया जा रहा है बाबा भी चैनलों की सुर्खी बन गये | एक दिन टीवी पर राहुल जी लक झक सफेद कुर्ता पहन कर कंधे पर मिट्टी से भरा तसला उठाये हुये थे लगभग हर चैनल के फोटो ग्राफर वहाँ मौजूद थे |राहुल जी मेहनत कश मजदूर की कैमरे के सामने फिलिंग ले रहे थे यह प्रोपगंडा ज्यादा नहीं चला | हाँ उस समय इंदिरा जी द्वारा पिया शरबत ज्यादा हिट था |

इंद्रा जी का नारा” वह कहते हैं इंदिरा हटाओ में कहती हूँ गरीबी हटाओ” ,गरीबी वहीं की वहीं रही परन्तु इंदिरा जी चुनाव जीत गई |इंदिरा जी ने इमरजेंसी की घोषणा की और बीस सूत्री कार्य क्रम की भी  घोषणा की गई ऐसा लग रहा था चारों और  इंदिरा जी की जयजयकार है  | सब बिरोधी नेता जेल में बंद कर दिए गये इमरजेंसी के बिरुद्ध भारत की जनता उठ खड़ी हुई |इंदिरा जी का मिडिया पर पूरी तरह कब्जा था रेडियो सरकारी प्रोपगंडे का  हथियार था  पर वह फिर भी  चुनाव हारी और अपनी सीट  भी गवाई | इंदिरा जी जनता को प्रिय थी जनता दल टूटने के बाद फिर देश की प्रधानमंत्री बनी, संजय गाँधी की मृत्यू हो चुकी थे अत: राजीव गाँधी के न चाहते हुये वह उन्हें राजनीति में लाई राजीव जी को नेता बनाया गया उनकी छवि को नेहरू जी से मिलायी  गयी  चमचे कहते थे हैं ना बिलकूल नेहरू जी जैसे  |इंदिराजी की हत्या हूई  राजीव गाँधी को सहानूभूति वोट मिले उन्होंने लोक सभा में  ४२५ सीटें प्राप्त की  राजीव जी ने अपनी कैबिनेट में वी .पी . सिंह को वित्त मंत्री बनाया ,उन्ही ने राजीव गाँधी के राजनीतिक जीवन की  जड़ें कुतरनी शुरू कर दी  |१६ अप्रैल १९८७ को स्वीडन में एक समाचार छपा भारत ने  बोफोर्स कम्पनी से ४१० तोपे खरीदी हैं जिसके लिए ६० करोड़ की राशी दलाली में दी गई थी |विपक्ष के लिए यह सुनहरा अवसर था वी .पी.सिंह ने वक्तव्यों  की झड़ी लगा दी और विपक्ष के साथ मिल कर बोफोर्स कांड को चुनाव का  मुद्दा बनाने की  कोशिश की ,१९८७ में में वी. पी.सिंह को कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया |वी. पी.सिंह ने अब नौकरशाही में भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले नायक की भूमिका में अपने आपको सच्चे कर्तव्य निष्ठ ईमानदार राजनेता के रूप  में प्रस्तुत करना शुरू किया ,समय आने पर वह कई  कांडों का पर्दाफाश करगें ऐसा जनता को विश्वास दिया , साथ ही कांग्रेस से कई नेताओं को तोड़ने लगे |अब उन्होंने असन्तुष्ट कांग्रेसियों के साथ प्रथक मोर्चे का गठन किया उनके मोर्चे मे भारतीय जनता दल तथा बामपंथी दल और अन्य दल शामिल हो गये |सब को मिला कर बकायदा ११ अक्टूबर १९८८ को मोर्चे का गठन किया गया और चुनाव लड़ा गया कांग्रेस को कुल १९७ सीटें मिली | चुनाव जीतने का इतना बड़ा मुद्दा फिर प्रोपगंडा विपक्ष ने आज तक इसे भुनाया है |

वी. पी. सिंह सत्य निष्ठा और  ईमानदारी का चोला धर कर प्रधानमंत्री के पद को पाना चाहते थे पर देवीलाल और चन्द्रशेखर शेखर के रहते आसान  नहीं था अत:उन्हें देवी लाल को उप प्रधानमंत्री बनाना पड़ा |वी.पी.सिंह अपने जनाधार को बढ़ाना शुरू किया , मंडल कमिशन द्वारा दिये  गये पिछड़ों को आरक्षण देने की सिफारिश  का फायदा उठा कर  मंडल कार्ड खेला ,उन्हें आशा थी समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग उनके पीछे आ जायेगा यदि चुनाव हुये तो वह स्वयं भारी मतों से जीत जायेंगे, यह हथकंडा उन्हें भारी पड़ा  देश के नोजवानों में उल्टा असर हूआ वह निराशा में डूब गयें उन्हें अपनी शिक्षा  और नौकरियों के अवसर जाते दिखे वह आत्म हत्या करनें  लगे वी.पी. सिंह की सारी चालाकी धरी रह गई सत्ता का परिवर्तन हूआ कुछ समय तक चन्द्रशेखर की सरकार आई| नये सिरे से चुनाव आये मंडल कमिशन के खिलाफ जम कर प्रोपगंडा हूआ |राजीव गाँधी नें जम कर प्रचार किया ,चुनाव के दुसरे  चरण में आतंकवादी दुर्घटना में वह शहीद हो गये |चुनाव में कांग्रेस की जीत हूई नरसिंघाराव देश के प्रधानमंत्री बने

किसी भी दल को अपने आप को स्थिर करने के लिए एक मुद्दा चाहिए |काशी  राम जी ने बहुजन समाज पार्टी बनाई दलितों को एक करने के लिए नारा गढ़ा गया  तिलक, तराजू और तलवार उनको मारो जूते चार | आज उसी दल की नेता ने चुनाव के लिये ब्राह्मणों. से समझौता कर यूपी का चुनाव लड़ा तथा मुख्य मंत्री बनी , आज यदि मिली जुली सरकार बनती है उसमें  मायावती जी पहली दलित  प्रधान मंत्री बनने का सपना देख रहीं हैं |

जनता मनमोहन सिंह की सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार और महंगाई से त्रस्त हो चुकी थी महाराष्ट्र के सुधारक अन्ना हजारे ने दिल्ली में आ कर जनपथ पर जनलोक पाल के पक्ष में आन्दोलन किया परेशान देश को अन्ना हजारे में रौशनी की किरन नजर आई उन्हें  विशाल जन समर्थन मिला सरकार झुक गई जनलोक पाल की रूप रेखा तैयार की गई इसी दौरान अरविन्द केसरी वाल और उनकी टीम का राजनीति पटल पर उदय हुआ यह टीम इंडिया अगेंस्ट करप्श नामक संस्था से जुड़े हुये थे |सरकार जनलोक पाल बिल अपने तरीके से बनाना चाहती थी या उसे लम्बी प्रक्रिया में फसाना चाहती थी |अन्ना ने रामलीला मैदान में फिर अनशन किया अबकी बार पहले से भी अधिक जन समर्थन मिला लेकिन जनलोक पाल बिल का फिर आश्वासन ही  मिला सरकार की नीयत जनलोक पाल के लिए ठीक नहीं थी अरविन्द और उनके साथी अन्ना को मिले जन समर्थन को भुनाना चाहते थे और सक्रिय राजनीति में आना चाहते थे ’ आम आदमी ‘ पार्टी के नाम से नये दल का उदय हुआ जिसका चुनाव चिन्ह झाड़ू था |जनता को लोक लुभावन वादे किये गये ऐसा चुनाव का प्रोपगंडा किया ७०० लिटर रोज का पानी मुफ्त ,बिजली का बिल आधा जनलोक पाल बिल ला कर बेईमानो को पकड़ा जायेगा इस तरह गरीब जनता के लिए आशा  ही आशा थी और नवजवानों को आह्वान किया गया आजादी की लड़ाई है ईमानदार और  भ्रष्टाचार से लड़ने वाले उनके साथ आजाये | जनता महंगाई, भ्रष्टाचार  और रिश्वत खोरी से परेशान थी |मिडिया ने भी इस दल को हाथों हाथ लिया हर चैनल पर आप के कार्य कर्ता बड़ी-बड़ी बातें करते जनता भी उनकी क्रन्तिकारी बातों से उनकी और झुकने लगी देखते देखते बह  भाजपा और  कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टियों के बराबर आ गये | कांग्रेस के समर्थन से उन्होने  दिल्ली की सरकार भी बना ली अब उनकी नजर लोक सभा जी टिकी  अरविन्द केजरीवाल ने जनलोक पाल बिल को अपना हथियार बनाया उसे वह खुले मैदान में  संविधान के नियमों का  उल्लंघन करते हुये पास करना चाहते थे | हर बात में जनता से वह पूछ कर काम करेगे ,जनता की अदालत में जायेंगे |सच पूछिये यह लोकसभा के चुनाव की तैयारी थी |उन्होंने ४९ दिन में अपने आप को त्यागी बता कर सरकार से सरकार से इस्तीफा दे दिया और चुनावी समर में कूद गये | अबकी उन्होंने सस्ती  गैस का विषय लिया  भाजपा लोकसभा का चुनाव नरेंद्र मोदी के नेत्रत्व में लड़ रही हैं उन पर अम्बानी और अड़ानी को लाभ देने का  इल्जाम लगा कर मिडिया में छाने का प्रयत्न किया | मिडिया भी जम कर उनके प्रोपगंडे का साधन बना|

चुनाव में धन बल का जम कर प्रयोग किया जाता था जिससे साधरण व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता था | चुनाव आयुक्त शेषन ने चुनाव खर्चो पर रोक लगा दी |पहले पूरा चुनाव क्षेत्र झंडे बैनरों से भरा रहता था कोई दीवार ऐसी नहीं थी जिसमें पोस्टर के ऊपर पोस्टर न चढ़ें हों अब झंडे पोस्टर ढोल बालों का धंधा मंदा पड़ गया है अब चुनाव में प्रोपगंडे के तरीके बदल गये हैं |मिडिया मुख्य हो गया है|

भारत में २०१४ के लोकसभा चुनाव में मिडिया का बहुत बड़ा हाथ है |नेताओं द्वारा महंगे रोड शो कवर करना जहाँ प्रत्याशी पर टनों गुलाब और गेंदा के फूलों की वर्षा की जाती है चुनाव के लिए जब प्रत्याशी पर्चा भरने आते हैं ऐसा सिद्ध करने की कोशिश की जाती है जैसे  बिना लड़े सब चुनाव जीत गयें हैं |हर चैनल पर हर दल के लोगों को बुला कर उनमें बहस करायी जाती है बहस क्या पूरा  समर क्षेत्र होता है नीति गत बहस के स्थान पर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाना दूसरे प्रतिद्वंदी को बोलने न देना एक ही तरह की बातों को बार बार दुहराना ,निजी आक्षेप लगाना शोर मचाना जिससे   कई बार चैनल वालों को अपना कैमरा बंद करना पड़ता है |  पब्लिक को आज कर बहूत आनन्द आ रहा है हे प्रत्याक्षी अपनी पब्लिसिटी चाहता है इसके लिए अजीबोगरीब बयान दिए जाते हैं |चैनलों  पर उस विषय पर बहस शुरू हो जाती प्रत्याक्षी इस बात से खुश होते हैं उनका नकारात्मक ही सही प्रोपगंडा हो रहा है लोग उसके बारे में जान रहे है| चुनाव में नेता  गणों के भाषण के लिए शानदार उचें स्टेज बनाये जाते हैं उन स्टेजों पर एक दूसरों  के बारे में भद्दी बाते कही जाती है जैसे उससे कसाई भी शर्मा जाये खून से रंगे हाथ ,पाकिस्तान चले जाओ , अमुक को वोट देने वाला समुन्द्र में डूब जाये ,आरोप प्रत्यारोप एक दूसरे पर इतने लगाये जाते हैं जैसे एक दूसरे के वैरी हों |

आज कल रिजल्ट आने से पहले ही प्री पोल का चैनलों में चलन हो रहा है कुछ लोगों से पूछ कर प्रत्याक्षी घोषित कर दिए जाते हैं और सीटें भी निश्चित कर दी जाती हैं | चुनावी परिणाम पूरी तरह से प्रोपगंडे पर भी आधारित नहीं रहते| पिछले चुनावों में बाहुबलियों की एक पूरी जमात को चुनाव के लिए ठेका दिया जाता था चुनाव की शुरूआत  में ही बूथ पकड़ कर सब के वोट पर ठप्पा लगा दिया जाता था पुलिस देखती रह जाती थी कोई हथियारों के भय से बोल नहीं पाता  था |बाहुबलियों ने सोचा दूसरों को जिताने से अच्छा है वह स्वयं ही चुनाव लड़ लें |संसद रुपी प्रजा तन्त्र के मन्दिर में अपराधी पहुच गये जिन पर कई अपराधिक मामले चल रहे है | अब चुनाव कई चरणों में हो रहे हैं | अपराधियों को संसद में जाने से रोकने के लिए कई कानून बन रहें हैं|

चुनाव में जनता के वोट खरीदने के लिए धन बल का जम कर  प्रयोग किया जाता है चुनाव की रात में पूरी रात वोट की खरीद फरोखत  होती है शराब की नदियाँ बहती हैं |कई जरूरत के उपहार दिए जाते हैं चुनाव से पहले वादा किया जाता है जीतने पर  लेपटोप दिया जायेगा लडकियों के लिए कई योजनाये शुरू की जाती हैं अब तो  बोटर को यह भी समझया जा रहा हैं बोगस वोटिग कैसे करनी है |यह कैसे चुनाव हैं चुनाव से पहले ही वोटर लिस्ट से  वोटरों का नाम कटवा दिया जाता है ?  नकली वोट बनवा दिए जाते हैं |यह सब क्या जनता की सेवा के लिए किया जा रहा है ?आज जरूरत रोजगार की है जरा भाषण सुनिए हमने भोजन सुरक्षा का अधिकार दिया ,हमने जनता के हित में यह  किया वह किया |ऐसे विवाद लाए जाते हैं जिससे मिडिया आकर्षित हो गाँधी नगर में मोदी जी वोट डालने गये चुनाव चिन्ह दिखा कर मीडिया के सामने अपनी ऊँगली पर चुनाव देने का निशान दिखाया और विचार रखे इसी बहाने विवाद पैदा कर दिया  यह चुनाव सहिंता का उलंघन है या नहीं  |बिना कुछ बोले प्रोपगंडा शुरू हो गया चुनाव परिणाम पर सदैव प्रोपगंडा हावी रहता है इसी से किसी व्यक्ति की लहर पैदा की जाती है |

डॉ .शोभा भारद्वाज

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