Vichar Manthan
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जब जन हित की बात जब कही जाती मुझे बहुत हैरानी होती है जनता की किसको परवाह है इंसानी जिन्दगी मशीन बन गई दिल्ली में एक बहुत बड़ा हिस्सा दिन निकलते रोजी रोटी की खोज मै दिन निकलते ही घर से निकल जाता है रात को आखिरी बस या मैट्रो से घर आता है बच्चे सो चुके होते हैं वह उन्हें बिस्तर पर ही बढ़ते देखता है| हाँ पन्द्रह अगस्त ,२६ जनवरी या होली के दिन पूरे परिवार को एक साथ रहने का अवसर मिलता है वोट के दिन उसे लगता वह भी कुछ अधिकार रखता है कहाँ हैजनता की आवाज ? जनता जानती है कोई उसका भला नही करेगा |प्राईवेट नौकरी करने वालो के बड़े-बड़े पे पैकज जरूर है इनकम टेक्स उनके पैकज का बड़ा हिस्सा ले जाता महंगे घर ,का किराया उनके पास छोड़ता ही क्या है कईयों का यह हाल है धन है पर समय नही | डॉ शोभा भारद्वाज
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