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डॉ भीम राव रामजी आम्बेडकर महान, उनके नाम पर राजनीति ?

Vichar Manthan
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आज का राजनीतिक नारा हम दलित समर्थक तुम दलित विरोधी हो डॉ आम्बेडकर ने देश को चेतावनी दी थी हमारा देश प्रजातांत्रिक गणतन्त्र हैं बहुमत का शासन है ,विरोध का अधिकार है लेकिनकिसी भी तरह के विरोध में खूनी क्रान्ति की तरफ देश को नहीं ले जाना चाहिए| देश को आजादी ब्रिटिश सरकार से प्लेट पर नहीं मिली थी। हम कितनी जल्दी भूल गये दलितों के नाम पर या दलितों के द्वारा 2 अप्रैल का भारत बंद? हम विदेशी सत्ता के गुलाम नहीं हैं हमारी अपनी सरकार है सहयोग से देश का विकास होता है नहीं तो भयंकर परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

 

 

अपनी मांगों को मनवाने के लिए भीड़ इकठ्ठी कर रैली के नाम पर भड़काऊ भाषण देकर सार्वजनिक सम्पत्ति को नष्ट करना,पुलिस पर पथराव , लूटमार आगजनी, रेलें रोकना पटरियों पर तोड़ फोड़ करना , बंद के नाम पर देश को रोक देना कानून को हाथ में लेकर अराजकता फैलाना तानाशाही सही नहीं है संविधान के तरीके से देश चलना चाहिए। संसद में शोर मचाकर कार्यपालिका पर दबाब डालने के लिए संसद चलने नहीं देने का चलन बढ़ता जा रहा है जबकि कानून विधायिका में बनते हैं न कि सड़क पर |16 राज्यों में 15% दलितों के वोट चुनावों में निर्णायक भूमिका में हैं। उन पर सभी दलों की नजर है, अबकी बार आम्बेडकर की जयंती धूमधाम से मनाने की सभी दलों में होड़ है सभी उनपर अपना कब्जा चाहते हैं उनके लिए यदि दिल में सम्मान है उनकी मूर्तियाँ क्यों तोड़ी जा रही हैं ? मूर्तियों की रक्षा का दायित्व समाज पर भी है। बाबा साहेब के नाम पर दलित राजनीति, भड़काऊ भाषण , समाज को बांटने की कोशिश राजनीतिक दावंपेच बाबा साहेब की शिक्षा नहीं थी।

 

महान भविष्य दृष्टा ,ज्ञानी महापुरुष ने भारत की भूमि में 14 अप्रैल 1891 में राम जी के घर बालक ने जन्म लिया जिनके नाम से उनके पिता जाने जाते हैं , बालक ऐसे समाज में जन्मा जिनसे जन्म के आधार पर अंतर किया जाता रहा है। हिन्दू समाज ने अपने बहुत बड़े हिस्से को अस्पृश्य कह कर अपने आप से काट दिया था। समाज के ऐसे कोढ़ को हमने सदियों सीने से लगाये रखा जिसको पूरी तरह से आज भी मिटाया नहीं जा सका। दलित समाज के लिए बाबा साहेब ने वह कर दिखाया जिसके लिए सदियों दलित समाज ऋणी रहेगा वह स्वयं भी भेद भाव के शिकार थे। उनकी नजर में स्वराज का अर्थ सबका स्वराज्य, देश की आजादी सबकी आजादी थी। गाँधी अस्पृश्यता के खिलाफ आन्दोलन छेड़ चुके थे उन्होंने दलित समाज को हरिजन का नाम दिया जबकि आम्बेडकर समानता के समर्थक थे गांधी जी और कांग्रेस के कटु आलोचक होते हुए भी उनकी प्रतिष्ठा महान विद्वान और विधिवेत्ता की थी देश के लिए सर्व मान्य संविधान बनाने का प्रश्न उठा गाँधी जी ने बाबा साहब की अध्यक्षता में संविधान सभा को यह कार्य सोंपा।

 

 

आम्बेडकर कहते थे भारत में व्यक्ति पूजा का चलन है किसी को भी महान नायक समझ कर अपनी स्वतन्त्रता और अधिकार उसके चरणों में नही डालना चाहिये। सामान्य व्यक्ति का देवीयकरण कर अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी उसे सौंप कर निर्भरता की आदत उस पर डाल कर कर्तव्यों के प्रति तटस्थ हो जायेंगे इससे सत्ता पर बैठा व्यक्ति प्रमुख हो जाएगा संविधान की सर्वोच्चत कम हो जाएगी, व्यक्ति पूजा राजनीति में नहीं चलती किसी को ऊँचा उठाने के लिए आप नीचे गिरते हो। उदाहरण देखा देश ने इंदिरा इज इंडिया के नारे सुने थोपी गयी आपतकालीन स्थिति भी देखी है राजनीति में अंध भक्ति की जगह नही है लेकिन आज दलित समाज के उद्धारक प्रशंसनीय एवं पूजनीय हैं।

बाबा साहेब ने संविधान में दिए मौलिक अधिकारों में पहला स्थान सबकी समानता के अधिकार को दिया राज्य दूसरा स्वतन्त्रता का अधिकार समता और स्वतन्त्रता से ही बन्धुत्व आता है, धार्मिक स्वतंत्रता, अस्पृश्यता का अंत और सभी प्रकार के भेदभावों को गैर कानूनी करार दिया गया ,नागरिकों की स्वतंत्रता और सुरक्षा का दायित्व सर्वोच्च न्यायालय को सोंपा। उन्होंने महिलाओं के लिए मतदान का अधिकार एवं आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की वकालत की और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों एवं नौकरियों मे आरक्षण प्रणाली के लिए संविधान सभा का समर्थन हासिल किया, भारत के विधि निर्माताओं ने इस सकारात्मक कार्यवाही के द्वारा दलित वर्गों के लिए सामाजिक और आर्थिक असमानताओं के उन्मूलन और उन्हे हर क्षेत्र मे उठने का अवसर प्रदान कराने की चेष्टा की।

 

 

संविधान में अनुसूचित जाति और जन जाति के लिए दस वर्ष तक के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी जिसे संविधान संशोधनों द्वारा समय –समय पर बढाया गया आगे जा कर पिछड़ी जातियों को भी आरक्षण दिया गया। सर्वोच्च न्यायालय ने 50% तक आरक्षण की सीमा तय की। आरक्षण दलित शोषित समाज के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ लेकिन तीन पीढियों तक आरक्षण का लाभ उठाने के बाद भी आरक्षण को छोड़ नहीं रहे हैं जिससे दलितों के बहुत बड़े गरीब वर्ग को आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा हैं। आरक्षण में क्रीमी लेयर को हटाने का प्रयत्न किया गया लेकिन सम्भव नहीं हो सका अब तो पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लालच दिखा कर राजनीतिक रोटियां सेकी जा रही हैं। हरियाणा जाट आरक्षण की आग में जला सम्पन्न पटेल समाज में आरक्षण समर्थक नये नेता उभरे आरक्षण का नारा नेतागीरी की सीढ़ी बन गया है। सभी जानते हैं आरक्षण को संसद में दो तिहाई बहुमत से कानून बना कर ही खत्म किया जा सकता हैं लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के साधारण संशोधन पर अफ्फाहें फैला कर दलित वर्ग को भडकाया गया सरकार आरक्षण खत्म कर रही है।

 

संविधान ने सबको वोट देने का अधिकार दिया है सभी के वोट का मूल्य एक है लेकिन सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से हम समान नहीं हैं यह केवल राजनीतिक प्रजातंत्र है चुनाव के समय बड़े – बड़े प्रलोभन दिए देकर धन बल से वोट खरीदे जाते हैं। धन से वोट खरीद कर बाहुबली और सम्पन्न लोग भी संसद में बैठे हैं। आज बाबा साहब का नाम हर राजनीतिक दल को अजीज है इसलिए नहीं वह महान विचारक दलित समाज के उद्धारक थे उनके नाम के साथ वोट बैंक जुड़ा है इसीलिए उनके जन्म दिवस को मनाने के लिए होड़ मची है। पहले दलितों का हित चिंतक बन कर कांग्रेस ने उनको वोट बैंक बनाया, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विचारक कहते हैं बाबा साहेब उनके हैं वह वर्ग संघर्ष में विश्वास रखते थे जबकि बाबा साहब कम्युनिज्म में लेबर की ताना शाही के कभी समर्थक नहीं भय है संविधान भी तानाशाह के अनुसार गढ़ा जाता है। समाजवादी भी उन पर अपना हक जमाने की कोशिश करते हैं कर रहे हैं लेकिन समाजवादी निजी सम्पति का राष्ट्रीयकरण या समाज में उसे बाटने के समर्थक है जबकि बाबा साहेब औद्योगिक करण में विश्वास रखते थे उन्होंने पूरी तरह कृषि आधारित इकोनोमी का समर्थन नहीं किया। अब सत्तारूढ़ दल एनडीए उनकी सबसे बड़ी समर्थक बन कर उन पर अपना हक जमा रही हैं।

 

उन्होंने संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का समर्थन किया लेकिन राज्य के नीति निर्देशक तत्वों द्वारा अधिकारों की सीमा निर्धारित की। आज के उभरते नेता अधिकारों के विस्तार की बात करते हैं यहाँ तक आजादी – आजादी के नारे लगाये जाते हैं उनके हाथ में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के रूप में देश की निंदा करने की आजादी आ जाए ,राजनीति चमकाने के किये व्यवस्था परिवर्तन की बात करते हैं। कुछ तो अपने आप को अराजकता वादी कहते हैं। दीवारों पर नारे लिखे दिखाई देते हैं। सत्ता का जन्म बंदूक से होता है, पंजाब ने आतंकवाद झेला ,कश्मीर कभी शांत नहीं रह सका। नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों में आये दिन खून खराबा होता रहता है। अब तो देश के टुकड़े – टुकड़े का नारा देने में भी शर्म नहीं है। 15 अगस्त 1947 में देश की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार बनी। डॉ अम्बेडकर को देश के पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया उन्होंने स्वीकार कर लिया।

 

 

भारत में महिलाओं की स्थिति बहुत खराब थी उनकी हालत में सुधार करने के लिये 1951 मे संसद में उन्होंने हिन्दू कोड बिल पेश किया जिससे कानूनी रूप से महिलाओं को अधिकार दिए जाए। इसमें विवाह की आयु , विवाह का टूटना , विरासत , तलाक के बाद गुजारा भत्ता ,पत्नी के जीते जी दूसरी शादी पर प्रतिबन्ध और उत्तराधिकार सम्बन्धी कानून थे हालांकि प्रधानमंत्री नेहरू, कैबिनेट और कई अन्य कांग्रेसी नेताओं ने इसका समर्थन किया पर संसद सदस्यों की बड़ी संख्या इसके खिलाफ़ थी। डॉ अम्बेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया बाद में महिलाओं की हालत सुधारने के लिए अनेक कानून बने इसका श्रेय बाबा साहेब को जाता है। डॉ अम्बेडकर नें 1952 में हुये लोक सभा चुनाव को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ा वह हार गये दुखद लेकिन मार्च 1952 मे उन्हें राज्य सभा के लिए नियुक्त किया गया।

 

 

 

1935 में दिये अपने भाषण में बाबा साहब ने कहा था मैं हिन्दू जन्मा था लेकिन मरुंगा नहीं, उन्हें इस्लाम धर्म में लेने के लिये हैदराबाद के निजाम ने प्रयत्न किया पोप भी उन्हें समझाने आये बाबा साहब ने हिन्दू और मुस्लिम समाज दोनों को आयना दिखाया और उन्होंने इस्लाम मे कट्टरता की आलोचना की उनके अनुसार इस्लाम की नातियों का कट्टरता से पालन करते हुए समाज और कट्टर हो रहा है उसको बदलना बहुत मुश्किल हो गया है। यही नहीं भारतीय मुसलमान अपने समाज का सुधार करने में विफल रहे हैं अपने आप को समता वादी कहते हैं केवल मीठी बातें करते हैं।वह पर्दा प्रथा के घोर विरोधी थे जो हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों में प्रचलित थी इसे धर्मिक मान्यता केवल मुसलमानों ने दी है। दोनों समाजों में उन्होंने सामाजिक न्याय की मांग की। बाबा साहेब ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली, तथागत ने सभी सुखों का त्याग कर मानव के दुखों का निवारण करने का प्रयत्न किया था अत: गौतम बुद्ध उनके हृदय के समीप थे, बाबासाहेब को सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब देश में सामाजिक चेतना जगेगी सभी समान समझे जायेंगे लेकिन कानून के भय से नहीं तभी हम उनके विचारों के मर्म को समझेंगे।

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