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“भारतीय रेल कितनी ,अच्छी कितनी सुरक्षित ”

Vichar Manthan
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एक बार मजबूरी में बिना रिजर्वेशन के रेल से आगरा जाना पड़ा टिकट में ज्यादा परेशानी नहीं हुई परन्तु गाड़ी आने पर जब चढ़ने लगे जरनल डिब्बे का जो हाल था पूछिये मत किसी तरह चढ़ तो गई बैठने का मतलब ही नहीं सामान रखने की जगह लोग सिकुड़ कर बैठे थे सांस की जगह नहीं थी गाड़ी चली किसी तरह हवा आई एक दो स्टेशन के बाद जैसे गाड़ी रुकी जनता की भीड़ गाड़ी की तरफ लपकी एक अौरत सर पर संदूक ले कर चढ़ी पहले तो समझ नहीं आया वह चढ़ी कैसे अगर लोगों की मदद से चढ़ गई तो आगे खिसकी कैसे उसकी हालत देख कर मैं घबरा गई पूरी पसीने से डूबी हुई उसके पैर थर- थर काँप रहे थे वह इतनी थक गई थी कि प्यास से उसका गला सूखने लगा था मैं उसे पानी ही पिला सकती थी बाकि उसकी मदद कैसे करूँ बड़ी मुश्किल से लोगों से प्रार्थना कर उसके सर से संदूक उतरवाया संदूक को सीधा खड़ा किया आस पास के लोग एक पैर पर खड़े हुए तब वह संदूक टिका और वह कमजोर सी स्त्री अपने संदूक पर बैठ पाई | मैने यह नजारा पहली बार देखा था पर वहाँ पर रोज सफर करने वालों के लिए नई बात नहीं थी, उन्होंने बताया कुछ लोग थोड़ी दूरी तक ही जाते हैं सुविधा के लिए वह रिजर्व डिब्बे में चढ़ जाते हैं इन डिब्बों मैं चढ़ना गैर कानूनी है अत : टॉयलेट के पास सहम कर बैठ जाते हैं वहाँ बैठने के टी.टी .जो मांग ले रूपये देते हैं क्या करें मजबूरी में जाना है | हर वर्ष लम्बा चौड़ा रेल बजट आता है बड़ी -बड़ी घोषणायें की जाती है परन्तु बात वहीं रह जाती है जरनल डब्बे की हालत नहीं सुधरती रेल और स्टेशन में गंदगी है पीने को पानी नहीं टॉयलेट का हाल खराब है यह कोई नई बात नहीं है| रेल विभाग में लगभग चौदह लाख लोग काम करते हैं उनकी मजबूत यूनियन हैं | यूनियन उनके हितों का पूरा ध्यान रखती हैं वेतन ,भत्ते पेंशन जब तक जीते हैं रेलवे पास मिलता है और जितनी सुविधाएं सरकार से ली जा सकें, हर विषय में रेल कर्मचारी जागरूक हैं जरा बात कीजिये कहेंगे हमें मिलता ही क्या हैं ? परन्तु अपने काम के प्रति कितनी जागरूकता उनमें हैं यह प्रश्न वाचक चिन्ह हैं |एक्सीडैंटों की संख्या बढ़ती जा रही हैं क्या सब नक्सलियों की वजह से हैं क्या कहीं रेल डिपार्टमेंट की लापरवाही भी इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं ? एक क्षण में इंसान लाश बन जाता है या बुरी तरह घायल हो जाता है | सरकार मुआवजा घोषित करने में जरा भी देर नहीं करती एक जान की कीमत रूपयों से तोल दी जाती है | आप जरा तर्क कीजिय सुनने को मिलेगा इंसान कहाँ सुरक्षित है सड़क के एक्सीडैंट से , रेल एक्सीडैंट कम हैं जरा सी बीमारी से आदमी मर जाता है जी हाँ इंसान तो मरने के लिए ही पैदा होता |
आज कल रेलों में भी लूटमार शुरू हो गई | है , महिला सुरक्षा एक समस्या है सरकार ने इस बिषय में सबकी सुरक्षा के लिय सुरक्षा बलों की नियुक्ति और उन्हें मोबाइल सुविधा का आश्वासन दिया है | किराया और ढुलाई की कीमत में वृद्धि की गई है महंगाई भी बढ़ेगी और आम आदमी पर सफर का बोझ पड़ेगा कड़वा घूँट है भरना ही पड़ेगा काफी समय से किराया नहीं बढ़ा था | रेलवे के कुछ हिस्से को प्राइवेट हाथों में दिया जायेगा जिससे धन की समस्या का समाधान किया जाये | रेलवे में सबसे जरूरी काम प्रबंधन है वह भी रेलवे के कर्मचारियों के हाथ में न देकर मैनेजमैंट पढ़े योग्य मैनेजरों को सौपा जाये और उनके हाथ में ठीक से काम न करने पर दण्ड का प्रावधान हो जब तक रेलवे विभाग को सख्ती से कर्मठ नहीं बनाया जायेगा तब तक हर वादा बेमानी है | गाड़ी सुरक्षित हो, साफ़ सुथरी हो साफ़ पानी हो शुद्ध भोजन हो, बैठने लिए
के लिए हर सवारी के लिए स्थान हो, गाड़ी समय पर आये ,स्टेशन की हालत सुधारी जाये सफाई कर्मचारियों पर दबाब डाल कर शौचालय साफ़ रखवाए जायें वेटिंग रूम सुरक्षित हों ,गरीब रथ पर मिडिल क्लास का कब्जा न हो कर वह वाकई गरीब के लिए हों तब माना जायेगा भारतीय रेक
जायेगा रेल विभाग में सुधार होगा और सफर भी सुहाना होगा |
डॉ शोभा भारद्वाज

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