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क्या भूख से मौत एक बड़ा मुद्दा नहीं?

Vichar Manthan
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भारत विकास शील देश है, चर्चा है राजधानी दिल्ली में तीन बच्चियाँ मर गयी पोस्ट मार्टम करने वाले डाक्टर ने कहा उनके पेट में अन्न का दाना भी नहीं था कुपोषण की शिकार आभा रहित बच्चियाँ सूख गयीं थी उनके शव देख कर ऐसा लगता था जैसे आठ दिन से कुछ खाया नहीं था |कहते हैं बच्चियों को उलटी दस्त थे ज्यों- ज्यों हालत बिगड़ती है सब कुछ खाया पीया निकल जाता है एक घूँट पानी भी हजम नहीं होता खाल की चुटकी लो खाल वैसी की वैसी सिकुड़ी रहती है | जिसने भी सुना दिल दहल गया इन बच्चियों में छोटी दो साल की मासूम थी| चैनलों में बच्चियों के पिता के मित्र का ब्यान आ रहा है वह उनके लिए खाना ले कर गया था खाने में मुर्गा ,अंडे ,रोटी ,दाल और चावल अच्छा ख़ासा खाना ?बच्चियाँ तो  रहीं नहीं माँ विक्षिप्त है पिता गायब ,बात में कितनी सच्चाई है कहा नहीं जा सकता |यह भी कहा बच्चियों ने दाल चावल खाये थे दिल्ली के उप मुख्य मंत्री कह रहे हैं स्कूल जाने वाली लड़की ने एक दिन पहले मिड डे मील खाया था |कितनी भी सफाई दी जाए प्रश्न का उत्तर किसी के पास नहीं है बच्चियाँ कैसे मरी भूख से या समय पर इलाज के लिए न ले जाने के कारण पिता इन दिनों बेरोजगार था उसे शराब की भी लत थी, अब गायब है | बच्चियों की मौत पर राजनीति भी हो रही है संसद में शोर मचा शायद अबकी बार ‘भूख’ चुनावी मुद्दा बनेगा|

चुनावों में हर दल गरीबी उन्मूलन का बादा करता है इंदिरा जी का चुनावी नारा था “गरीबी हटाओं” आगे आने वाले सभी नेताओं ने इसी नारे को भुनाया रोजगार के भी आश्वासन दिए गये सरकारे आती हैं चली जाती हैं नारे वहीं के वहीं रहते हैं कोरे आश्वासन |गावों से लोग काम की तलाश में शहरों में आते हैं कुछ मजदूरी करते हैं पहले एक रोजगार था रिक्शा किराए पर लेकर काम की शुरूआत हो जाती थी अब बिजली के रिक्शे आ गये हैं रिक्शा चालकों की पहुंच से बाहर हैं| मजदूरी भी रोज नहीं मिलती बड़े शहरों में काम के लिए आने वालों का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है | कुछ लड़कियों को काम दिलवाने का झांसा देकर बड़े शहरों में ले आते हैं उन्हें वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेल देते हैं|

कुपोषण के शिकार बच्चे बिमारी के झटके से उठ नहीं पाते कई बार कई बच्चे एक-एक कर काल के गाल में समा जाते हैं डाक्टरों के प्रयत्न बेकार जाते हैं |आज हालात यह है अस्वस्थ सूखी माँयें बच्चों को जन्म तो दे देती हैं लेकिन उनको पालना आसान नहीं है गरीबी की ऐसी हालत है बच्चों को ही दूध नसीब नहीं होता माँ को क्या मिलेगा | चाय के नाम पर बिना दूध और चीनी की काली चाय | जिस तरह से भारत की जनसंख्या बढ़ रही है आने वाले समय में देश का बजट जनसंख्या के पोषण और स्वास्थ्य सेवाओं में लगा देने पर भी हालात नहीं सुधरेंगे |जितनी देश की जनसंख्या है उसका ध्यान रखना सरकार का कर्त्तव्य है लेकिन अब जरूरत है जनसंख्या के नियन्त्रण के लिए सभी दल मिल कर नीति निर्धारित करें जनसंख्या नियन्त्रण के लिए सख्त कानून बनाया जाये | परिवार नियोजन के कार्यक्रमों को तेजी से लागू किया जाना चाहिए समाज सेवी संस्थाओं को भी आगे आना चाहिए जनता को समझाया जाये जिन बच्चों को जन्म दिया है उन्हें पालना ,स्वस्थ बचपन, उनकी शिक्षा माता पिता का कर्त्तव्य है| बच्चे विकसित देश का भविष्य हैं सरकारी कोशिश जारी रहे फिर कोई बच्चा और बड़ा भूख से न मरे |

न जाने कितने लोग आधा पेट खाकर या भूखे सोते हैं बच्चे भूख से बेहाल रोते- रोते भूख की बीमारी से मर जाते हैं शादी ब्याहों में फेके गये खाने में से खाना निकालते बच्चे अकसर देखे जा सकते हैं |भारत बहुत बड़ा देश हैं हर राज्य में या दूरदराज क्या होता है? इसकी खबर कम मिलती हैं लेकिन मंडावली राजधानी दिल्ली की बच्चियों की मौत ने देश को हिला दिया विदेशों के समाचारपत्रों और मीडिया में अभी तक मौब लिंचिंग पर चर्चा होती थी अब ‘भूख’ या कुपोषण की शिकार बीमारी से मरने वाली या कैसे मरीं बच्चियाँ चर्चित है ?

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