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मैं बैरी सुग्रीव पियारा ,अवगुण कवन नाथ मोहि मारा

Vichar Manthan
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‘श्री ब्रम्हा’ सृष्टि के निर्माता सुमेरु पर्वत पर विचरण कर रहे थे मान्यता है उनके प्रताप से धरती पर पहले बानर का जन्म हुआ ब्रम्हा उसे रक्षराज के नाम से पुकारते थे वह ब्रम्हा के साथ रहता पर्वत पर विचरण करता ,खेलता मनचाहे फल खाता अपने एकमात्र साथी ब्रम्हा के पास हर शाम लौट आता उनके चरणों में पुष्प अर्पित करता | प्रात :काल का समय था वह झील में पानी पीने के लिए झुका उसे झील के स्वच्छ पानी में उसे अपना प्रतिबिम्ब दिखाई दिया भ्रम वश उसे दुश्मन समझ कर वह झील में कूद गया, विशाल झील की तलहटी मे अनजान दुश्मन को ढूंढ़ता रहा लेकिन जब वह तैर कर ऊपर आया अब वह सुंदर सुनहरे बालों वाली वानर कन्या थी उसमें राग के भावों का उदय हुआ वह सुरम्य घाटी में खड़ी थी उस पर देवराज इंद्र एवं सूर्य दोनों की दृष्टि पड़ी वह उस पर मुग्ध हो गये उन दोनों ने एक ही दिन वानर कन्या को अपना प्रेम प्रदर्शित किया|

कुछ समय बाद  वानर कन्या नें सुनहरे रंग के दो बच्चों ने जन्म लिया दोनों शिशुओं को झील में नहला कर ब्रम्हा के पास ले गयी |ब्रह्मा ने पहले जन्में इंद्र के पुत्र को बाली, कुछ देर बाद जन्में बच्चे को सुग्रीव का नाम दिया | इंद्र ने अपने पुत्र के गले में आशीर्वाद देते हुए कमल पुष्पों से बनी सोने की माला पहनाई उसे आमने सामने के युद्ध में अजेय रहने का आशीर्वाद दिया | ब्रम्हा जी निरंतर सृष्टि का निर्माण कर रहे थे उन्होंने देवताओं के अंश से वानरों और रीछों की प्रजातिया बनाई वह सभी किष्किंध्या की गुफाओं में बस गये बाली को उन पर राज करने की आज्ञा दी बाली प्रारम्भ में दयालू एवं विवेकी राजा था लेकिन जैसे जैसे उसका बल बढ़ता गया उसका गर्व भी बढने लगा |सृष्टि का निर्माण निरंतर चल रहा था था तरह – तरह के जीव जन्तुओं की रचना करते हुए दुंदभी नाम के भैंसे का जन्म हुआ जैसा नाम वैसा अपने बल से मतवाला जन्म से ही क्रोधित और झगडालू था हरेक को ललकारता यहाँ तक उफनते हुए समुद्र को भी ललकारता हुआ कहने लगा  मुझसे युद्ध करो समुद्र की लहरें अपनी गति से आती जाती रहीं उसे बर्फ से ढकी हिमालय चोटियाँ दिखाई ऊचाई के कारण वह पास दिखाई देतीं थीं लेकिन दूर थी धरती लगभग खाली थी वह विचरण करता हिमालय तक पहुंच गया उसकी बर्फीली चोटियों से अपने सींग टकराने लगा लेकिन जब जमने लगा समझ गया यहाँ उसकी प्रतिद्वंदी कठोर हिम चट्टानें हैं ठंडी हवाएं उसके शरीर को काटने लगीं उसकी टाँगे सर्द पड़ चुकी थीं वह लौट आया |

बाली सुग्रीव से अधिक शक्तिशाली था उन दिनों रावण कमर में मृग शाला हाथ में फरसा ले कर बल के उन्माद में सबको ललकारता था ‘उसकी शरण में आ जाओ नहीं तो युद्ध करो’ उसने बलि को ललकारने की भूल की बाली ने उसे पकड़ कर कांख में दबा लिया और आराम से समुद्र तट पर संध्या वन्दन करने लगा| दुंदभी भागता हुआ किष्किंधया पहुंचा यह प्रदेश गुफाओं में बसा हुआ समृद्ध पर्वत क्षेत्र था वह अपने सींगों का प्रहार चट्टानों पर करते हुए गुर्राने लगा उसकी गर्जना की प्रतिध्वनी से पर्वत थर्राने लगा बाली सोमरस का पान कर रहा था उसकी आँखे लाल थीं उसकी पत्नी तारा पास बैठी थी बाली ने ललकारने की आवाज सुनी वह अपने निवास से बाहर आया तारा ने उसके गले में इंद्र द्वारा दी गयी माला पहना दी साक्षात काल का अवतार दोनों प्रतिद्वन्दियों में भयंकर युद्ध हो रहा था अंत में बाली ने शत्रू के दोनों सींग पकड़ कर उसकी गर्दन तोड़ दी दुंदभी मर गया उसके खुले मुख से खून का फव्वारा छूट रहा था उसकी पूँछ पकड़ कर बाली ने पूरी शक्ति से घुमाते हुए दूर फेंक दिया शव उड़ता हुआ ऋष्यमूक पर्वत पर गिरा चारो तरफ खून फैल गया पर्वत पर ऋषि तप कर रहे थे  फैले खून से वह क्रोधित हो गये उन्होंने  बाली को श्राप दिया यदि बाली यहाँ आयेगा तुरंत मर जाएगा शापित बाली  पर्वत पर कभी नहीं गया बाली के सेवक भी उधर जाने से डरते थे  मातंग ऋषि प्रकृति प्रेमी थे इस तरह उन्होंने वन प्रदेश की वानरों के उत्पात से रक्षा की| लेकिन दुंदभी की हड्डियों पहाड़ पर्वत क्षेत्र पर पड़ा हुआ था |

दुंदभी का पुत्र मायावी पिता जैसा बलशाली था वह सीधी लड़ाई नहीं लड़ता था पिता की मृत्यू का बदला लेने के लिए अर्द्धरात्री में जब नगर सो रहा था बाली को ललकारा दोनों भाई उसकी ललकार सुन कर बाहर आये मायावी ललकारता हुआ पर्वत में दूर तक फैली गुफा में घुस गया बाली ने सुग्रीव को आदेश दिया वह गुफा में मायावी से लड़ने जा रहा है यदि वह पन्द्रह दिन तक न लोटे उसे मरा समझ कर किष्किंधया सम्भाल लेना |सुग्रीव एक माह तक गुफा के द्वार पर प्रतीक्षा करता रहा उसने देखा गुफा से खून की धारा बहती हुई आ रही है  उसने मायावी चिंघाड़ने की आवाज सुनी आवाज पहले दूर से आई धीरे – धीरे पास आती गयी सुग्रीव ने बार – बार बाली को पुकारा उसे कोई उत्तर नहीं मिला आवाजें निरंतर बढ़ रहीं थी सुग्रीव को किष्किंधया की चिंता सताने लगी उसने मायावी के आक्रमण से नगरी को बचाने के लिए एक विशाल पत्थर से गुफा का मुहँ ढक कर राज्य में लौट आया |

बाली मायावी को ढूंड रहा था उस पर मायावी और उसके साथी एक साथ हमला कर रहे थे सबको मार कर जब बाली गुफा के मुहँ पर पहुंचा गुफा का मुहँ बंद था उसने एक झटके से चटान को दूर फेक दिया एक भूत की तरह अपनी नगरी पहुंचा, बाली नगर ने देखा सुग्रीव को सिंहासन पर बिठा कर स्वस्ति वाचन के साथ मन्त्र पढ़े जा रहे थे ,राजतिलक, यदि बाली सुग्रीव सुग्रीव से प्रश्न करता वह तुरंत बाली को उसका सिहांसन लौटा देता लेकिन बाली क्रोध में विवेक खो बैठा उसने सुग्रीव को सिंहासन से घसीट लिया उसे मारने लगा अपने जीवन को किसी तरह बचा कर सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचा यहाँ उसके साथी केवल हनुमान , जामावंत एवं नल नील थे | वानरों का आपसी मामला भाईयों का झगड़ा था लेकिन सामाजिक समस्या तब शुरू  हुई जब राजमद में बाली ने सुग्रीव की पत्नी पर अपना अधिकार जमा लिया | उन दिनों ऋषियों ने स्त्री एवं पुरुष के स्थाई सम्बन्धों पर विस्तृत चर्चा कर विवाह के नियम निर्धारित किये आठ प्रकार के विवाह , अग्नि को साक्षी मान कर सात वचन| पितृ मूलक समाज में पुरुष के नाम के साथ पत्नी और सन्तान के गोत्र निर्धारित किये गये |अनेक विवाहों में राक्षस विवाह का भी वर्णन था किसी कन्या का बल पूर्वक अपहरण कर उससे विवाह करना लेकिन समाज इस कृत्य को उचित मान्यता नहीं देता था |

श्री राम लक्ष्मण सीता जी के अपहरण के बाद वन में भटकते हुए शबरी के आश्रम पहुंचे शबरी ने श्री राम के दर्शन कर जीवन को धन्य माना उनका अंतिम समय था उन्होंने चिता पर प्राण त्यागने से पूर्व उन्हें बताया ऋष्यमूक पर्वत पर सुग्रीव अपने साथियों के साथ एकाकी जीवन बिता रहे हैं वह आपके मित्र एवं सहायक बन  कर आपकी सहायता करेंगे, पर्वत की तरफ आते  दो अजनबी आर्य वंशियों  के देख कर सुग्रीव ने हनुमान जी को उनका परिचय जानने के लिए भेजा  वह कौन हैं उन्हें कहीं बाली ने तो नहीं भेजा ? अयोध्या के दोनों राजकुमारों का परिचय जान कर हनुमान उन्हें सुग्रीव के पास ले आये अग्नि को साक्षी मान कर श्री राम एवं सुग्रीव ने मित्रता एवं एक दूसरे की सहायता की प्रतिज्ञा ली इधर दस सिर वाले लंकापति रावण को दसों बायीं आँखे एवं अशोक वाटिका में अपहरण के बाद कैद की गयी  दीन हीन असहाय,वृक्ष के नीचे सिर नीचा कर बैठी शोक मग्न सीता की भी बायीं आँख फड़कने लगी बायीं पुरूष के लिए अशुभ संकेत स्त्री के लिए शुभ संकेत है | बलशाली श्री राम ने सुग्रीव को अभय का वचन देते हुए अपने अंगूठे के एक ही प्रहार से दुंदभी के शव से बने सूखे हड्डियों के जमें पहाड़ को अन्तरिक्ष में उड़ा दिया | पर्वत पर उगे ताड़ के सात विशाल वृक्षों को एक ही तीर से धराशायी कर दिया तीर उनके तरकश में लौट आया | मर्यादा पुरुषोत्तम ने अकारण बाली से युद्ध करना उचित नहीं समझा , सुग्रीव का भाई के साथ अपने  प्रति किये गये अन्याय का प्रतिशोध एवं अधिकार का झगड़ा था  उनके आश्वासन पर सुग्रीव ने नगर के द्वार पर जाकर बाली को युद्ध के लिए ललकारा बाली सुग्रीव की ललकार सुन कर क्रोध से फुंकारने लगा लेकिन बाली की पत्नी महारानी तारा विवेक शील महिला थीं उन्होने बाली को समझाया सुग्रीव जैसा भीरू आपको ललकार रहा है अकारण नहीं है सुना है आजकल दो राजपुत्र वन में भटक रहे हैं अवश्य उसने मित्रता कर उन्हीं के बल पर वह उछल रहा है बाली में इतना धैर्य कहाँ वह एक ही छलांग में बाहर आ गया उसने सुग्रीव पर ऐसे प्रहार किये वह लहूँ लुहान हो रहा था वृक्षों की ओट में श्री राम धनुष पर तीर चढ़ाये खड़े थे लेकिन उन्हें दोनों भाई एक से दिखाई दे रहे थे | घावों से चूर सुग्रीव जान बचा कर भागा उसने श्री राम से कहा मैंने आपके बल पर बाली से युद्ध का साहस जुटाया था परन्तु आपने मेरी कोई सहायता नहीं की श्री राम नें सुग्रीव के शरीर पर हाथ फेरा उनके सांत्वना भरे स्पर्श से सुग्रीव का दुःख दूर होगया राम ने उसके गले में पुष्पों की माला पहनाते हुए कहा जाओ बाली को युद्ध के लिए पुन : ललकारो |

सुग्रीव ने बाली को युद्ध के लिए ललकारा वह हंसता हुआ फिर से द्वंद युद्ध करने आ रहा था तारा विचलित थी लेकिन उन्माद से भरा बाली होनी को पहचान नहीं सका उसने  महारानी की पीठ पर थपकी देकर कहा पत्नी सदैव आशंकायें सताती रहती है , शंका से ग्रस तारा ने बाली के कंधों पर इंद्र द्वारा दी गयी स्वर्णमाल बाँध दी बाली भागता हुआ बाहर आया ऐसा लगा जैसे सुनहरा सूर्य किरणों के रथ पर पर्वत से उतर रहा हो| भयंकर युद्ध चला बाली ने सुग्रीव पर ऐसे प्रहार किये सुग्रीव धरती पर गिर पड़ा श्री राम ने उचित अवसर जान कर सुग्रीव को बचा कर तरकश से अचूक तीर निकालकर धनुष पर चढ़ाया सनसना हुआ तीर बाली के हृदय में घुस गया बाली जैसा शक्तिशाली योद्धा पीठ के बल धरती पर गिर पड़ा लेकिन सोने की माला की कारण वह ज़िंदा रहा उसने लता की ओट से निकलते दोनों भाईयों को देखा उसकी दृष्टि श्री राम पर पड़ी कमल जैसे नेत्र स्यामल शरीर सिर पर जटायें ,मजबूत कंधों पर धनुष लटक रहा था वीर वेश में प्रभू को देख कर बाली का मोह समाप्त हो गया नेत्र सफल हो गये उसने हाथ जोड़ कर प्रश्न किया प्रभू आप मर्यादा पुरुषोत्तम हैं आपसे मेरा कोई वैर नहीं था ऐसा प्रश्न तरकश से निकला तीर  “मैं बैरी सुग्रीव पियारा अवगुण कवन नाथ मोहि मारा”

श्री राम उत्तर दिया “अनुज बधू भगनी सुत नारी , सुन शठ कन्या सम ए चारी

दयालू श्री राम ने बाली के मस्तक पर हाथ रख कर पूछा यदि वह जीवन चाहता है वह उसे जीवनदान दे सकते हैं |बाली इतना मूर्ख नहीं था उसने हाथ जोड़ कर कहा ‘आपके हाथों मृत्यू मेरा जीवन धन्य हो गया अब न पाप रहा न पापी |महारानी विलाप करती हुई महल से बाहर आई उसके हाथ में पुत्र का हाथ था महारानी पति पर पछाड़ खाकर गिर पड़ी सुग्रीव बिलखने लगा उसकी आँख से निकलने वाले आंसू घावों से बहते खून से मिल कर धरती पर गिर रहे थे बाली ने बिलखती पत्नी की तरफ देखा अपने पुत्र अंगद को पास बुलाया उसे श्री राम को सौंपते हुए कहा मैं संसार छोड़ रहा हूँ तुम श्री राम के शरणागत हो उनकी  हर सम्भव सहायता करना |बाली उस लोक में चला गया जहाँ अकेले जाना है |

श्री हनुमान ने बाली की छाती से तीर निकाला तारा ने तीर हाथ में लिया जिसका तीक्ष्ण फल सोने का था तीर को पूरी शक्ति से अपने हृदय में मार लिया वह भी बाली के साथ इस लोक को छोड़ कर परलोक सिधार गयी |

 

 

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