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मैं कई वर्ष ईरान मे रही वहाँ की महिलाओं से इतना घुल मिल गयी कि उन्हीं का हिस्सा बन गयी मेरी कई सहेलियाँ आफिस में काम करती थीं | उनसे मेरा एक ही प्रश्न होता था आपके यहाँ बहु बिवाह प्रथा है तलाक भी बहुत आसानी से हो जाता है मेरा मानना है लड़ंकी बहुत अरमानो से शादी करती है प्यार से घर बसाना चाहती है वह अपने पति को बहुत प्यार करती है | तलाक से एक घाव उसके दिल पर लग जाता है |मेरी ईरानी सहेलियां हंस कर कहती थीं कैसी मोहब्बत हम इस लफड़े में नही पड़ती , क्योकि शौहर अपनी पसंद से जब चाहे दूसरी बीबी ला सकता है , तलाक का यह हाल है बड़ी आसानी से हो जाता काजी बड़े आराम से कहते है जाओ खानम आप आजाद हो गयी मुझे विश्वास नहीं हुआ मै भी औरत हूँ जानती हूँ प्रेमी ,या पती को भूलना आसान नहीं है
उन्होंने एक दिन मुझे एक किस्सा सुनाया | हमारे साथ हमारी एक सहेली काम करती थीं | उसका नाम नसरीन था ,वह बेहद खूबसूरत थी | दूध में यदि केसर मिला दो ऐसा उसका रंग था, लम्बी, स्याह चश्म (काली आँखे ) आवाज शीरीन (शहद जैसी मीठी )लम्बे काले बाल, उन्होंने मेरे सामने उसकी फोटो रख दी |ऐसी सुंदरता मैने कभी नहीं देखी थीं | ईरानी सुंदरता दुनिया मे मशहूर है पर यह अजब थी | वह तेहरान में पढ़ती थी | उसके साथ एक लड़का पढ़ता था ‘तोफीक’ लम्बा ऊँचा मीठा बोलने वाला परन्तु पढ़ने में उसकी बिलकुल रुचि नही थी | दोनों विवाह करना चाहते थे | नसरीन के माँ बाबा को वह बिलकुल पसंद नही था | वह कहते थे, यह हमसे आँख मिला कर बात नहीं करता, हर बात में हाँ –हाँ करता है जो कहो कबूल करता है , फिर भी हमारा मन नहीं मानता | लेकिन बेटी के हठ के आगे वह मजबूर थे, उन्होंने विवाह से पूर्व लड़की से कसम ली यदि जिन्दगी में उसे जरा भी कोई तकलीफ महसूस हो वह अपने घर लौट आये | यह उनकी इकलोती सन्तान थी यूं कहिये बुढ़ापे का सहारा | तोफीक को नौकरी पसंद नहीं थी उसके बाबा का व्यवसाय था तोफीक ने घर की चलती दुकान संभाल ली | नसरीन नौकरी करती थी | विवाह के बाद उसकी दुनिया उसका पति और घर था वह अपनी तनखा का एक –एक पैसा तौफीक पर खर्च करती थी | तौफीक को क्या पसंद है, वह क्या खायेगा, क्या पहनेगा, उसे घर की सजावट अच्छी लगी या नहीं | नसरीन को अपना होश ही नहीं था | तौफिक अपने हर दोस्त को अपने घर बुलाता ,मेरे घर आईये मेरी खानम से मिलिए मेरा घर देखिये ईरान में सजा घर और सुन्दर बीवी बड़े गर्व की बात है |
परन्तु क्या तौफिक नसरीन के प्रति वफादार था ? उसकी दुकान पर लडकियाँ खरीददारी करने आती वह उनके प्रति आकर्षित हो जाता था | कई लड़कियो को वह विवाह के लिए पैगाम भी भेज चुका था | नसरीन को जब भी उसकी सहेलियो ने शिकायत की उसने विश्वास ही नहीं किया उलटा हंसने लगती | वह अपनी दुनिया मे मगन थीं | वह दुनिया जिसमें मोहब्बत ही मोहब्बत थी | हम उसे अक्सर समझाती ,इस बात के सदा याद रक्खो एक दिन तौफिक दूसरी बीबी ला कर कहेगा ,नसरीन इससे मिलो यह मेरी दूसरी खानम है | विरोध करने पर वह तुम्हें तलाक भी दे सकता है और काजी साहब , तुम्हे कहेंगे खानम तुम आजाद हो गयी | मजाक में कही गई बात ईरान के मर्दों की दुनिया में कभी भी सम्भव हो जाती है |
अचानक नसरीन उदास रहने लगी हंसने के बाद उसके गाल पर उठने वाले डिम्पल गायब हो गये | एक दिन वह ऑफिस में नहीं आई परन्तु खबर आई ,नसरीन अस्पताल के बर्न विभाग में बुरी तरह जली अवस्था में लाई गई थी | हम सब अस्पताल भागे, नसरीन जहाँ भर्ती थी उस कमरे के बाहर तौफीक खड़ा अपना माथा पीट रहा था, बाल नोच रहा था पूरी तरह बेहाल था हमे लगा अस्पताल से दो जनाजे उठेंगे | उसने रो-रो कर बताया नसरीन ने घर के बाहर वाले गुसल्खाने में मिट्टी का तेल अपने पर डाल कर आग लगा ली | उसने दरवाजा तोड़ कर जलती नसरीन को बाहर निकाला फिर सब उसे अस्पताल लाये | देखने वालो ने बताया नसरीन तौफिक का हाथ पकड़ कर बार –बार एक ही बात कह रही थी मन शुमा रा दूस्त दारम (मै तुम्हें मोहब्बत करती हूँ ) जब तक वह बेहोश नहीं कर दी गई यही कहती रही | मै चुपचाप सुन रही थी जलना जला दिया जाना हमारे देश में अकसर होता है | उन्होंने अपनी बात पर जोर देकर कहा हमारे यहाँ खुद अपने को जलाना अकेली घटना है पिदर सुकते तेरा बाप जले ,अर्थात (कब्र नसीब न हो) गाली है | कुछ देर सब चुप रही फिर बताया पूरे बदन पर फफोले थे | उसने तड़फ –तड़फ कर दो दिन फिर आँख मूँद ली | बर्फ का मौसम था बड़ी मुश्किल से कब्र खुदी ठंडी कब्र में शायद जलती रूह को शन्ति मिली होगी तौफिक का हाल तो पूछिये मत वह तो कब्र में साथ लेटने को आमादा था | हमारे दिल से आहें निकल रहीं थी |
लम्बी साँस ले कर उन्होने बताया मौत को कुछ ही दिन बीते थे ,मैने पूछा कितने दिन? उन्होंने कहा यह मत पूछिये अभी मातम खत्म नही हुआ था की हम तौफिक् के घर उस बेचारे का हाल जानने गये उसके घर के बाहर गाड़ियाँ हॉर्न बजा रहीं थी यह खुशी का सिम्बल है तौफिक शादी कर बीबी लाया था | कहीं मौत का निशान नहीं था केवल हमाम घर पर जलने के निशान थे | आज के दिन यह प्रसंग देना ठीक नहीं है | यह किस्सा मैने जहाँ सुना था वहाँ तलाक़, उसके बाद फिर से नई जिन्दगी शुरू करना बहुत आसन था | वह लड़की पढ़ी लिखी थी अपने माँ बाबा का अकेला सहारा तथा उनकी जिन्दगी थी | आज कब्र में तन्हा लेती आखिरत का इंतजार कर रही है |
डॉ शोभा भारद्वाज
Email-shobhabhardwaja09@gmail.com
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