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‘संजय बारू की पुस्तक व्यवसायिक उपलब्धि का प्रयत्न या छुपा हुआ सच ” जागरण जंक्शन फोरम

Vichar Manthan
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डॉ मनमोहन सिहं जी ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा “ इतिहास उदारता के साथ मेरा मूल्याकन करेगा “डॉ मनमोहन सिहं  की छवि एक योग्य अर्थशास्त्री एवं चिंतक  की रही है , इन्होनें  नरसिंघा राव के समय में  सफलता पूर्वक वित्तमंत्री के पद  भार को  सम्भाल कर देश को नई दिशा दी |

२००४ में कांग्रेस के पास पूर्ण बहुमत नहीं था , २६२ सांसद थे लेकिन१६ दलों के समर्थन के बाद यह संख्या ३२२ हो गई|सोनिया जी यूपीए की चेयर पर्सन थी |यह इंद्राजी की पुत्र वधू थी अत : इन्हें इंद्रा जी के साथ रहनें का अवसर मिला था | इंद्रा जी की हत्या से एक सहानूभूति की लहर में कांग्रेस को ४२५ सीटें प्राप्त हुई इस बहुमत के साथ राजीव गाँधी देश के प्रधान मंत्री बनें | उनका कार्यकाल पांच वर्ष तक रहा |इनके  बाद वी. पी .सिंह की सरकार रही १० नवम्बर १९९० को ,इनकी सरकार समाप्त हो गई , कांग्रेस के समर्थन से  देश में  चन्द्रशेखर  सरकार बनी  यह सब देश की राजनीति का महत्व पूर्ण समय था |राजनीति में रुचि न रहते हुये भी सोनिया जी ने इसे बड़े पास से देखा था |कुछ समय तक वह सक्रिय  राजनीति से दूर रहीं नरसिंघाराव के प्रधान मंत्री काल तक  वह चुपचाप समय का इंतजार करती रहीं |कांग्रेस का जनाधार कम होता जा रहा था ऐसे में उन्होंने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया उनकी  बड़ी जय जय कार हूईं और  उस समय के कांग्रेस  अध्यक्ष सीताराम केसरी को बाहर का रास्ता देखना पड़ा |

मनमोहन सिहं एक्सीडेंटल प्रधानमंत्री नहीं थे सोनिया जी ने उन्हें बड़ी सोच समझ के साथ इस पद पर बिठाया था  इनकी छवि एक ईमानदार ,चुप चाप काम करने वाले चिंतक  व्यक्ति की थी |ऊपर से अल्पसंख्यक वर्ग  तथा वह  सिख थे ,चौरासी के दंगों का दाग भी कांग्रेस के ऊपर था |   डॉ मनमोहन सिंह  किसी के लिये कष्ट का कारण नहीं बन सकते थे उनके घर के  बाहर सुरक्षा के लिये नियुक्त कांस्टेबल के लिए भी आराम ही आराम का समय होता था | वह काफी समय तक ब्योरोक्रेट रहे हैं अत : उनमें एक आज्ञाकारी नौकर  शाह के गूण भी भरपूर थे |उनकी तीन पुत्रिया हैं जिनमें राजनितिक महत्वकांक्षा भी  नहीं हैं इस लिये जिस तरह परिवार वाद की राजनीति  चल रही है ,अपनी सन्तान, दामाद , भाई ,भतीजों और भांजों  के लिये लोक सभा के चुनाव के लिए टिकट मांगना चुनाव जितवाने का पूरा प्रयत्न करना यदि संसद में आ जाएँ तो उनके लिए मंत्री मंडल में जगह दिलवाना ,यहाँ ऐसी कोई परेशानी नहीं थी |सोनिया जी का विदेशी मूल का विषय प्रधान मंत्री पद में बाधक था परन्तु  उनकी सन्तान के लिए नही था  | सोनिया जी अपनी दो संतानों में पहले पुत्र  राहुल गाँधी को  भविष्य में प्रधान मंत्री पद पर आसीन होते देखना चाहती थी जो अभी अनुभव हीन थे जनता को स्वीकार्य नहीं होते अत :उनकी  नजर  मनमोहन सिहं जी से उचित कोई नहीं था | मनमोहन सिहं जी बिलकुल रामायण के चरित्र “भरत “जैसे थे नेहरू जी के वंशजों का सिहासन बिल्कुल सुरक्षित रहता | देख लीजिये आज राहुल गाँधी कांग्रेस के उपाध्यक्ष  हैं और यदि  चुनाव जीत गये  वह  कांग्रेस के नेता  होंगे ,बहुमत की स्थिति में प्रधान मंत्री पद के उम्मीद वार भी |

सोनिया जी देश का प्रधान मंत्री बनना चाहती  थी परन्तु विदेशी मूल का मुद्दा राजनीति के दायरे में उठ खड़ा हूआ उनका अत:मजबूरन उन्हें किसी दूसरे का चुनाव करना था उन्हें मनमोहन सिहं रास आये |मनमोहनसिंह जी ने कभी लोक सभा का चुनाव नहीं लड़ा था | वह राज्य सभा के सदस्य थे ,तथा कांग्रेस की और से    विपक्ष के लीडर भी रहें हैं | सोनिया जी के प्रधान मंत्री पद  के लिए इनकार करने के बाद कांग्रेस में शानदार राजनैतिक ड्रामा शुरू हो गया हर कांग्रेसी नेता उनसे पद सम्भालने की प्रार्थना कर रहा था बाहर चाटूकारो की भीड़ थी |अफ्फाहों का बाजार भी गर्म था अंत में  सोनियाजी जी का मौन टूटा उन्होंने  मनमोहन सिहं का नाम प्रस्तुत किया और वह सौलह दलों के समर्थन के पेपर को  ले कर वह राष्ट्रपति महोदय की स्वीकृति लेने  मनमोहनसिंह जी के साथ राष्ट्रपति भवन  गई | २२ मई २००४ को डॉ  मनमोहन सिंह ने प्रधान मंत्री पद की शपथ ग्रहण की |सोनिया जी के त्याग के चर्चे किये जाने लगे उनका कद पहले ही बहुत बड़ा था अब तो कहना ही क्या था |देश में दो सत्तायें थी एक यूपीए अध्यक्षाजी जी  की सत्ता ,दूसरी मनमोहन सिह जी की सरकार की सत्ता (मंत्री मंडल ) | जिन्होंने देखा वह जानते हैं जब भी  प्रधानमंत्री अपने आफिस आते थे उनके हाथ में आवश्यक फाइल होती थी पीछे उनका ड्राइवर उनका खाना ले कर आता था वहां कोई हलचल नहीं होती थी पर जब सोनिया जी आती थी नेता गण ऐसे भागते थे डर लगता था आपस में टकरा कर गिर न जाएँ  कहीं नमस्ते करने की होड़ में वह कहीं पिछड़  न जाये | इतनी जी हजूरी बस  पूछिये मत | मैडम को अपनी भक्ति दिखाना जैसे जीवन का सबसे बड़ा धर्म है , समझ आ जाता है कि कौन सत्ता का केंद्र है |

मनमोहन सिंह जी ने  कई महत्वपूर्ण  निर्णय लिए उनकी नीति आर्थिक उदारी करण थी आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने में दुनियाभर में उनकी सराहना की गई | उन्होंने किसानों के हित में कृषि का समर्थित मूल्य बढ़ाया , गाँधी जी का स्बप्न था सबको रोजगार मिले  डॉ मनमोहन सिंह के प्रयत्नों से ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना शुरू की गई | जिसमें वर्ष भर में १०० दिन का रोजगार प्रदान करने का सुझाव था यह योजना उनकी देन थी पर उसे कांग्रेस जनों ने राहुल जी के द्वारा सुझाई योजना सिद्ध करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी   ,हवाई अड्डों को निजी हाथों मे सौपा गया जिससे उनका  सौंदर्यीकरण हूआ  सुविधायें बढ़ी  और विदेशी टूरिस्ट भारत की और आकर्षित हुये |अर्थ व्यवस्था पर बोझ बने कई  पब्लिक सेक्टर को निजी हाथों में सौपा जिससे उनका घाटा कम हूआ | नोजवानों के रोजगार  के अवसर बढ़ाने  का प्रयत्न किया, आर्थिक मंदी के दौर में भी विदेशी निवेश कम नहीं हूआ डॉ मनमोहन सिहं पर यह आरोप लगाया जाता था वह प्रोअमेरिकन हैं परन्तु उन्होंने अमेरिका और रूस दोनों से सम्बन्ध बढाये| उर्जा के क्षेत्र में उन्होंने परमाणू समझौता किया जबकि विपक्ष और यू पी ए को समर्थन देने वाले वाम पंथी दल  इस समझौते के खिलाफ थे इस समझौते के अनुसार अमेरिका भारतीय परमाणू संयंत्रों पर निगरानी रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी को यह कार्य सौंपना चाहता था   | अमेरिकन सीनेट में यह समझौता पास हो गया  ,बाम पंथी दल समझौते  के खिलाफ थे उन्होंने सरकार से समर्थन खीचने की धमकी दी | सोनिया जी बामपंथी दलों  की धमकी से परेशान थी वह सरकार का गिरना ठीक नहीं समझती थी |  डॉ मनमोहन सिहं अड़ गये उन्होंने इस्तीफे की धमकी तक दे डाली , अंत में मध्यम मार्ग निकाला गया |तय यह हूआ  भारत  में 22 संयंत्रों में से केवल १४ की निगरानी होगी आठ सैनिक महत्व के संयंत्रों की  निगरानी नहीं होगी | बाम पंथी दलों ने समर्थन खीच  लिया परन्तु श्री मुलायम सिंह के दल से  समर्थन माँग कर सरकार बचाई गई |अपनें में मनमोहन सिंह इतने कमजोर नहीं थे और   यह समझौता संसद में पास हो गया |

२०१४ के चुनाव के आते आते खाद्य सुरक्षा बिल पास हूआ जिसका सारा श्रेय सोनिया जी एवं उनके सपुत्र राहुल गाँधी को दिया गया |सभी जानते हैं जब कोई ठोस निर्णय प्रधान मंत्री कार्यालय से लिया जाता जिस पर हो हल्ला मचता सोनिया जी उस निर्णय को वापिस ले  लेतीं  डॉ मनमोहन जी के पूरे कार्य कल में हर मंत्री अपने आप को सोनिया जी के प्रति उत्तरदायी और वफादार सिद्ध करने में गौरव  महसूस करता था| दागी मंत्रियों को चुनाव में कुछ फायदा देने के  अध्यादेश को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी ,यह अध्यादेश उचित नहीं था इसके विरोध का भी एक तरीका था सब सत्ता सोनिया जी के ही  हाथ में थी लेकिन  उनके सपुत्र राहुल गाँधी ने जिस समय चैनल में कांग्रेस प्रवक्ता अध्यादेश पर सफाई  पेश का रहे थे आकर अपना मत रख कर उसे फाड़ दिया इससे  राहुल गाँधी का कद भी ऊचा नही हूआ हाँ प्रधान मंत्री की किरकिरी जरूर हूई  यह अध्यादेश अभी राष्ट्रपति के पास जाता वहीं राष्ट्रपति उसे रोक  लेते |

डॉ मनमोहन सिंह के काल में जम कर घोटाले हुये कुछ लोग इसे घोटाले का काल कहते हैं  परन्तु  ईमानदार प्रधानमंत्री नें इसका विरोध नहीं किया, ऐसी  क्या मजबूरी थी? घोटाले करने वालों पर अंकुश क्यों नहीं लगाया गया ? चुनाव का समय है  कांग्रेस चुनाव प्रचार में लगी हूई थी  तभी  प्रधानमंत्री  के पूर्व  मिडिया सलाहकार  संजय बारू ने अपनी पुस्तक “ द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर “ पुस्तक का विमोचन किया  पुस्तक पर  जम कर चर्चा हूई प्रधान मंत्री की बेटी ने  स्वयं पुस्तक के दिए गये विषयों का खंडन किया |पुस्तक में संजय बारू  ने दावा किया मनमोहन सिहं ने  मेरे पास स्वीकार किया था  “सत्ता  का केंद्र कांग्रेस अध्यक्षा के पास था “|उनसे  “यह गलतियाँ तब हूई जब सोनिया गाँधी और कांग्रेस ने उनके फैसले में हस्तक्षेप करना शुरू  किया “ “ २००९ की जीत को वह अपने कार्यों की जीत  मानते थे पर यह उनकी भूल थी| “ ऐसा उन्होंने माना प्रधान मंत्री कोई भी नियुक्ति स्वतंत्र रूप नहीं कर सकते जैसे  , वह श्री रंगराजन को वित्त मंत्री बनाना चाहते थे परन्तु सोनिया जी की पसंद प्रणव मुखर्जी थे |आगे श्री बारू ने लिखा है २००९ के चुनाव के बाद प्रधान मंत्री ए.राजा और टी .आर .बालू को मंत्री मंडल में शामिल नहीं करना चाहते थे परन्तु पार्टी के दबाब में उन्हें ऐसा करना पड़ा |प्रधान मंत्री के  आफिस की फाइल सोनिया जी के पास जाती थीं जबकि यह पद की गोपनीयता  की शपथ के खिलाफ था |

राजनितिक क्षेत्र में पुस्तक के विमोचन के बाद हलचल मच गई प्रधान मंत्री के वर्तमान मीडिया सलाहकार  पंकज पचोरी ने इसका विरोध किया |कांग्रेस ने इस पुस्तक को “ प्रसिद्धि  देने का व्यवसायिक हथकंडा बताया “  कुछ ने इस पुस्तक को मनमोहन जी के पक्ष में की गई लीपापोती कहा  | विरोधियों में खास कर भाजपा नें पुस्तक पर  कहा वह पहले ही कहते थे मनमोहन सिहं नाम मात्र के प्रधान मंत्री  हैं सत्ता सब सोनिया जी के पास है इस पुस्तक से प्रधान मंत्री की छवि अवश्य खराब हूई  , घोटालों से  कांग्रेस पहले ही बदना  थी जनता कांग्रेस से विमुख हो रही है  चुनाव में विपक्ष के हाथ में शानदार मुद्दा  आ गया चौतरफा हमला होने लगा है  उनके  प्रश्नों का उत्तर देना मुश्किल हो रहा है |  डॉ मनमोहन सिंह का समय  सत्ता के दो केन्द्रों का काल , भ्रष्टाचार, घोटालों ,महंगाई प्रधान मंत्री  का निर्णय न लेना या निर्णय लेने में देरी आदि के लिए जाना जा रहा है ,परन्तु उनकी ईमानदारी पर  किसी को  शक नहीं है | इतिहास में उन्हें एक अर्थशास्त्री ,चिंतक और  ईमानदार डॉ मनमोहन सिंह  के रूप में भी जाना जायेगा उनके विद्यार्थी एक विद्वान् गुरू के रूप में याद रखेंगे |विश्व के शिक्षा जगत में वह सदैव सम्मानित रहेंगे  |

डॉ .शोभा भारद्वाज

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