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संसद के दोनों सदन ठप कर सांसद सड़क पर

Vichar Manthan
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पिछले दिनों बजट सेशन का मार्च महीने का दूसरा चरण शोर शराबे की भेंट चढ़ गया। दोनों सदनों के सांसद सदन में हाजिरी लगाने आते लेकिन शोर मचा कर सदन चलने नहीं देते थे यहाँ तक प्रश्नोत्तर काल भी ठीक से नहीं चला। एक समय था सदनों में शानदार बहसें चलती अच्छे विचारों का मेजें थपथपा कर स्वागत किया जाता था अब पुरानी बात हो गयी ,कई सांसदों की सदन में उपस्थित रहने में भी अधिक रूचि नहीं है। मजबूर अध्यक्षों की सदन चलाने की हर अपील बेकार रही।  तर्क है सदन चलाना सत्तारूढ़ दल का दायित्व है जब विपक्ष मिल कर कमर कस ले हम सदन को ठप्प करके रहेंगे कार्यपालिका अर्थात सरकार क्या कर सकती है।

 

 

लोक सभा के सदस्य अविश्वास प्रस्ताव लाने उस पर बहस कराने की बात करते रहे इस पर भी न गम्भीर थे न एक मत थे केवल तमाशा कर रहे थे। आंध्र के सांसदों को विशेष राज्य का दर्जा चहिये था वह ‘वी वांट जस्टिस’ के नारे लगाते हाथ में तख्तियां ले कर सदन के अंदर और बाहर प्रदर्शन करना जैसे उनका अधिकार था। विपक्ष को केवल मुद्दों की तलाश थी सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में माना अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जन जाति अधिनियम 1989 का दुरूपयोग हो रहा है अत: इतना ही संशोधन किया गया ऐसे मामले में शिकायत आने पर अब पब्लिक सर्वेंट की गिरफ्तारी से पहले आरोपों की जाँच होगी जाँच डीएसपी स्तर के अधिकारी करेंगे गिरफ्तारी से पहले अग्रिम जमानत भी ली जा सकती है जबकि आरक्षण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने कोई टिप्पणी नहीं की थी। दलितों के कल्याण की चिंता नहीं है हाँ वोट बैंक पर हर दल की नजर है क्योंकि 16 राज्यों में 15% दलित वोट हैं।

 

सदन में शोर मचाने संसद को सड़क पर लाने का बहाना मिल गया 2 अप्रेल का हिंसक प्रदर्शन सबने देखा प्रजातंत्र को मुहँ चिढ़ाती अराजकता, अफ्फाहों का बाजार गर्म था। नीरव मोदी मेहुल चौकसी का बैंकों की मिली भगत से घोटाला चिंता का विषय है श्री चिदम्बरम के बेटे कीर्तिं चिदम्बरम का अपने पिता के वित्त मंत्री काल में किये गये घोटालों को श्री चिदम्बरम ने राजनीतिक बदला कह कर उसकी गिरफ्तारी का विरोध किया। एक मुश्त तीन तलाक अपराध है बिल लोकसभा में पास होने के बाद भी राज्यसभा में हंगामें के कारण सरकार पेश ही नहीं कर सकी मुस्लिम महिलाओं की चिंता कौन करे क्यों करें ?

 

 

सदन में दो तरह के विधेयक प्रस्तुत किये जाते हैं 1.सरकारी 2. गैर सरकारी, इन्हें विपक्ष भी प्रस्तुत कर सकता है देश का दुर्भाग्य सबको 2019 के चुनावों की चिंता है संसद को सडक पर लाने हाँ सांसदों की सड़कों पर शोर मचाने प्रदर्शन करने में अधिक रूचि है उन्हें मुद्दों की तलाश है वह अभी से सरकार को घेरने और अकर्मण्य सिद्ध करने की कवायद कर रहे हैं। देश में बेटियाँ नन्ही बच्चियाँ भी सुरक्षित नहीं हैं,निर्भया काण्ड के बाद लोग सड़कों पर उतरे परिणाम देखा कानून सख्त किये गये लेकिन अपराध वसे ही बढ़ते रहे। कठुआ में आठ साल की बच्ची की गैंग रेप के बाद नृशंस हत्या रोंगटे खड़े करती है ऐसे ही उन्नाव काण्ड विधायक और उसके भाई पर लड़की का गैंग रेप मामला (मामले पर सीबीआई जाँच चल रही है ), मामले को वापिस लेने का दबाब डालने के लिए लड़की के पिता को पीट –पीट कर मार डाला समाज आंदोलित है क्या सदन में विपक्ष ने सत्ता पक्ष से सदन में विस्तार से बहस की मांग की गयी हाँ यूपी के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ जी और प्रधान मंत्री मोदी जी पर मामले पर चुप्पी साधने जैसे   संगीन आरोप लगे जबकि अपराधियों के खिलाफ कार्यवाही चल रही थी।

 

 

विधायका का सर्वोत्तम कार्य कानून बनाना, पास करना, बजट पर चर्चा और कार्यपालिका अपने दायित्वों का सही तरह से पालन कर रही है प्रश्नोत्तर काल में सम्बन्धित मंत्रियों से प्रश्न पूछना और नियन्त्रण रखना है लेकिन 5 मार्च से शुरू सत्र में सांसद हाजरी लगाने आते सदन ठप्प कर बाहर सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन करते देश की जनता ने देखा। आये दिन बच्चियों के साथ दरिंदगी अंत में गर्दन मरोड़ कर कचरे की तरह फेंक देना, विरोध भी होता है केवल विरोध के लिए। आने वाले लोकसभा चुनाव को सामने रख कर चुनाव जीतने के कारगर हथकंडे इनमें बलात्कार भावनात्मक विषय है इस पर जनता को भावुक किया जा सकता है विषय के विरोध में जोर शोर से प्रदर्शन निदान कुछ नहीं निदान की किसी को चिंता भी नहीं है सरकार ने उन्नाव काण्ड सीबीआई को सौंप दिया हर जांच चल रही है।

 

कठुआ में नन्हीं बच्ची के साथ वहशियाना कुकर्म इस पर कोर्ट में फास्ट कोर्ट द्वारा सुनवाई हो रही है कथित अपराधी कोर्ट में पेश किये गये हैं लेकिन इसे भी साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है रात के समय कैंडल लेकर विरोध प्रदर्शन जिनमें सदन को न चलने वाले वाले सांसद सबसे आगे थे , धरने और अनशन देख कर हैरानी होती हैं दिल्ली की विधान सभा में केजरीवाल का सम्पूर्ण बहुमत है विपक्ष न के बराबर विषय पर जम कर बहस हो सकती थी फिर भी मुख्यमंत्री की नियुक्ति दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा का अनशन करना तीन राज्यों में बच्चियों से रेप और हत्या पर सरकारों ने फांसी की सजा का कानून बनाया है।  क्या संसद के दोनों सदनों और विधान मंडलों  के सत्रों में बच्चियों पर होने वाली दरिंदगी हत्या जघन्य अपराधों पर विस्तृत चर्चा नहीं  होनी चाहिए थी बहस के लिए विशेष सत्र भी बुलाया जा सकता है ? चर्चा के विषय पर हर पार्टी अपने विचार रखें हर चैनल सदन की कार्यवाही का प्रसारण करे फ़ास्ट ट्रेक में केस की सुनवाई और कठोरतम दंड अर्थात मृत्यूदंड के लिए कानून बने। वोटिंग में सभी सांसद भाग लें ध्वनि मत से पास करें लेकिन केवल कानून बनाना पर्याप्त नहीं है उनको सख्ती से क्रियान्वित किया जाये। ऐसे देश जहाँ रेप पर कानून सख्त है, सख्ती से क्रियान्वित किया जाता है वहाँ रेप जैसे अपराध कम देखने में आते हैं। कई देशों ख़ास कर इस्लामिक देशों में अपराधी का दुष्कर्म कितना संगीत था उसे सार्वजनिक रूप से दंडित किया जाता है दंडित करने से पूर्व एकत्रित जन समूह को बताया जाता है अपराध कितना संगीन था , अपराधी केवल रहम की भीख मांग सकता है जनता अपराध की वृत्ति से घृणा करती हैं अपराधी के मन में भय बैठता है।  उनका कानून सही है या गलत में इसकी व्याख्या नहीं कर रही हूँ।

 

 

हमारे यहाँ रेप और हत्या पर वर्षों न्यायालयों में बहस चलती रहती है इंसाफ का इंतजार करते रोते रोते माता पिता के आंसू सूख जाते हैं यदि फांसी की सजा दे भी दी जाये राष्ट्रपति महोदय की मेज पर क्षमा याचना की अपील आती है, मानवाधिकार वादियों का फांसी पर विरोध प्रदर्शन चलता रहता है नन्हीं बच्ची का एक ही कसूर था वह बेटी थी ?उसे भी जीने का अधिकार था मानवाधिकार वादियों को इसकी चिंता नहीं है उन्हें केवल अपराधी मनोवृत्ति से सहानुभूति क्यों होती है वह तर्क देते हैं जब हम जीवन दे नहीं सकते हमें लेने का क्या हक ? क्या अपराधी ने ऐसे सोचा था। अभी तक निर्भया के साथ होने वाले जघन्य कुकर्म के अपराधियों को फांसी नहीं दी गयी। संसद में शोर मचाना ठप्प करना कहना क्या सांसदों का अधिकार है संसद ठप्प कर सडकों पर प्रदर्शन ,अगले चुनावों की तैयारी करना कुछ का राजनीति कैरियर है कुछ का जन्म सिद्ध अधिकार, व्यवसाय या उतराधिकार ऐसे दरबारियों की जरूरत क्या है ? टैक्स पेयर के धन पर चलने वाली ऐसी संसदात्म्क व्यवस्था किस काम की ? कानून बनाने से अधिक अपने आपको यह दिखाने संवेदना जताने में जिनकी रूचि अधिक है जिससे महिलाओं के वोट बटोरे जा सके। दरिन्दे कौन हैं? पकड़ भी लिए गये यदि उनके पीछे यदि प्रभाव शाली व्यक्ति का हाथ है  पुलिस भी उनसे डरती है कोर्ट में लम्बी बहसें चलती हैं कई वर्ष तक केस सेशन कोर्ट में अटके रहते हैं। बेटी के माता पिता अपनी बच्ची की सुरक्षा के लिए भयभीत रहते हैं अपनी तरफ से हर कदम उठाते हैं बच्ची सुरक्षित रहे उसका बचपन बना रहे वह कैरियर की उचाईयाँ छुये लेकिन हमारे चुने प्रतिनिधियों का भी दायित्व है कानून व्यवस्था सुचारू रूप से चले कठोर दंड विधान हो न्याय की दृष्टि से सभी को न्याय मिले।

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