Menu
blogid : 15986 postid : 1389040

बल बुद्धि विद्या निधान जय हनुमान

Vichar Manthan
Vichar Manthan
  • 297 Posts
  • 3128 Comments

ब्रम्हा  सृष्टि का निरंतर निर्माण कर रहे थे | सृष्टि निर्माण से लेकर अब तक जीवन को चलाने वाली वायू प्राणियों के जीवन का आधार है जीवधारी हवा में साँस लेते है वृक्ष एवं पेड़ पौधे वायु को शुद्ध करते हैं | मंद पवन बह रही थी किष्किंध्या पर्वत  की हरी भरी चोटी पर अंजना (वानर जाति की कन्या ) उमड़ते घुमड़ते बादलों को देख रही थी पवन देव ने अंजना को देखा वह उस पर  मोहित हो कर धीरे –धीरे नीचे उतर गये | पवन देव के अंश से हनुमान का जन्म हुआ नन्हें हनुमान के शरीर पर सफेद चमकते बाल थे उनका चेहरा सुर्ख , भूरे पन को लिए पीली चमकीली आँखें थीं | अंजना ने वृक्ष से पका आम तोड़ा बालक के ओंठो से लगा कर उसी पहाड़ की एक सुरक्षित गुफा के द्वार पर छोड़ दिया | रात बीत गयी हनुमान गुफा के द्वार पर पीठ के बल लेते अपने पंजों को पकड़े हुए थे |  भोर हो गयी धीरे – धीरे प्रकाश फैलने लगा पूर्व दिशा से सूर्य की पहले हल्की किरणे आसमान में चमकने लगीं फिर लालिमा लिए सूर्य उदित हुए बाल हनुमान ने उगते लाल सूरज को देखा उन्हें पके आम जैसा दिखाई दिए वह अपने जबड़ों को भींच कर उगते सूरज की दिशा में उछलते हुए सीधे उड़ने लगे |

उनके  पिता पवन देव ने उन्हें देखा वह उत्तर दिशा से  हिमालय की बर्फीली हवाओं को लेकर बहने लगे उन्होंने हनुमान को सूर्य की गर्म तपिश से बचाये रखा लेकिन चंचल बालक सूर्य के नजदीक पहुंच गया सूर्यदेव ने नीचे झाँक कर उनको देखा सूर्य को देख कर बाल हनुमान मुस्कराये अब सूर्य अपनी पूरी आभा से आकाश में चमक रहे थे तेज तपिश और बर्फीली हवाओं के बीच बालक ने देखा  सूर्य पर ग्रहण की छाया पड़ने लगी है असुर राहु ने सूर्य को निगलने के लिए अपना विशाल काला मुहँ  खोला राहू की आँख पर बाल हनुमान ने पैर मारा राहू क्रोध से भर गया उसने देवराज इन्द्र  के पास जा कर शिकायत की एक और राहू सूर्य पर ग्रहण बन उन्हें डस रहा है उसने मेरी आँख पर अपने पैर से प्रहार किया है देवराज अपना बज्र लेकर ऐरावत पर सवार होकर राहू की सहायता के लिए उसके साथ चल दिए राहू के गोल सिर को हनुमान ने और बड़ा आम समझा वह वह उसकी तरफ झपटे इंद्र  ने उन्हें रोकने की कोशिश की अब तक हनुमान की नजर ऐरावत पर  पड़ गयी वह उन्हें और भी बड़ा फल समझ कर उस पर झपटे  इन्द्र ने उन पर बज्र का ऐसा प्रहार किया हनुमान मुहँ के बल गुफा के द्वार पर गिरे उनका जबड़ा टूट गया अपने पुत्र को बेहाल देख कर वायु देव क्रोध से भर उठे वह बाल हुनुमान को गोद में उठा कर गुफा के अंदर  ले गए उनका क्रोध बढ़ता ही जा रहा था |हवा का बह्ना  रुक गया जीव जन्तु व्याकुल हो गये पेड़ और पौधे मुरझाने लगे| सृष्टि में त्राहि – त्राहि मच गयी लेकिन पवन देव अपने बच्चे की हालत पर ब्याकुल थे |अपनी सृष्टि को बचाने के लिए ब्रम्हा को स्वयं गुफा में आना पड़ा उनके स्पर्श से बालक  की पीड़ा समाप्त हो गयी ब्रम्हा ने वायु देव को समझाया आप पूरे विश्व के प्राणाधार हो मैने आपका निर्माण ही अपनी सृष्टि को जीवन देने के लिए किया है हर जीव जंतु पेड़ पौधे निर्जीव हो कर गिरने लगे हैं धरती का हर  जीवन तुमसे बंधा है जब तक सृष्टि है वायु तुम्हारा अस्तित्व रहेगा उन्होंने  आशीर्वाद देते हुए कहा  तुम्हारा पुत्र तुम्हारी तरह ही गतिवान एवं प्रतापी होंगा |

ब्रम्हा के प्रस्थान करने के बाद स्वयं सूर्य ने अपनी किरणों के साथ गुफा में प्रवेश किया सोने जैसी किरणों से हर कोना जगमगा उठा | भगवान सूर्य के  कानों में कुंडल चमक रहे थे उनका  आगमन सुखकारी था  वह बालक को देख कर मुस्कराये हनुमान ने उनके स्वरूप पर नजरें टिका दीं  धीरे-धीरे बालक की आँखें मुंदने लगी वह गहरी नींद में सो गया ऐसा सोया जैसे समस्त विश्व की नींद उसकी आँखों मे समा गयी हो | सूर्य नारायण ने तीन पके आम बालक के सिरहाने रख दिए वह सोते हनुमान पर फिर मुस्कराये |पवन देव बाहर आये फिर से मंद -मंद हवा बहने लगे |  विश्व के हर जीवधारी सांस लेने लगा पेड़ों के पत्ते हिलने लगे पौधे लहलहाये सूखी घास हरी हो गयी जंगलों में पक्षी कलरव कर रहे थे विश्व जी उठा |
अगली सुबह बालक उठा उसने अपने सिरहाने रखे आम चूसे गुफा के द्वार पर आकर अपने पिता से मिले |पवन देव उनको कैलाश पर्वत में शिव के धाम ले आये यहाँ  बाल  हनुमान की शिक्षा प्रारम्भ हुई भगवान शिव ने उन्हें अद्भुत ज्ञान एवं  हर हाल में प्रसन्न रहने का मन्त्र दिया नंदी ने उन्हें भाषा सिखाई यहाँ  उन्होंने गेय श्लोक सीखे |पवन पुत्र अब पूरी तरह ज्ञानवान बल विद्या  निधान हो चुके थे उन्हें भगवान शिव का अंशावतार माना जाता है |उनके कानों में कुंडल थे उनकी पहचान बन गए लेकिन कुछ विशेष परिचितों को छोड़ कर वह दिखाई नहीं देते थे  |  धीरे धीरे हनुमान युवा हो गए उनका बल एवं ख्याति बढ़ती रही | वह सुग्रीव के साथ रहने लगे बाली द्वारा प्रताड़ित होने के बाद सुग्रीव प्राण बचा कर भागे थे हुनुमान  उनके बुरे समय के साथी थे | ऐसे साथी जिन्हे अपने बल का ज्ञान ही नहीं था कहते हैं बालपन में उन्हें उनकी चंचलता से क्रोधित होकर ऋषि ने श्राप दिया था तुम अतुलित बल शाली हो लेकिन तुम्हें अपने बल की थाह किसी के द्वारा समझाये जाने पर याद आएगी |

अब ऋष्यमूक पर्वत सुग्रीव एवं उनके  साथी हनुमान का ठिकाना था | बाल्मीकि रामायण में एक प्रसंग हैं वानर राज बाली सुग्रीव एवं हनुमान का पीछा कर रहा था वह दोनों उससे बचने के लिए ब्राह्मंड के हर कोने में भटक रहे थे अब  वह ऊपर और ऊपर उड़ने लगे उन्होंने नीचे  देखा सारा विश्व साफ़ दिखाई दे रहा था ऐसा साफ़ जैसे शीशे में अपना प्रतिबिम्ब प्रतिबिम्बित होता  है | अंतरिक्ष का विचरण करते –करते उन्होंने आश्चर्य से नीचे देखा पृथ्वी अंतरिक्ष में  गोल – गोल तेजी से घूम रही थी घूमती धरती से ऐसी आवाजें आ रहीं थीं जैसे किसी आग के गोले को हवा  में तेजी से घुमाया जाए तब ऐसी आवाज आती है घूमती धरती  गोल थी शहर छोटे सोने के सिक्के जैसे चमक रहे थे नदियाँ तागे जैसी कहीं  सीधी कहीं  घुमाव दार थीं, जंगल हरे धब्बे लग रहे थे, विंध्याचल एवं हिमालय की चोटियों की  चट्टानों पर पड़ी बर्फ ऐसे लग रही थी जैसे जल कुंड में खड़े हाथी |जंगलो की हरियाली एवं सागरों के जल सहित  घूमती धरती की शोभा निराली थी स्पष्ट है दोनों वानर हवा की परिधि में थे| रामायण की रचना त्रेता युग में हुई थी यह वैसा ही वर्णन है जैसा अंतरिक्ष यात्री धरती का करते हैं |

श्री राम की भार्या सीता को लंकापति रावण हर कर अपनी राजधानी लंका ले गया सीता की खोज में श्री राम लक्ष्मण शबरी के आश्रम पहुंचे शबरी उनका वर्षों से इंतजार कर रही थी शबरी ने उनका सत्कार किया उन्हें आगे का मार्ग बताया आप ऋष्यमूक पर्वत पर सुग्रीव से मिलिए वह निर्वासित जीवन बिता रहा है उसकी पत्नी पर बाली ने अधिकार कर लिया है सुग्रीव सज्जन एवं धर्म परायण है वह समस्त  ब्रम्हांड को जानता है हर हाल में वह सीता की खोज करने में समर्थ हैं |

श्री राम हरे भरे ऋष्यमूक पर्वत पर चढ़ने  लगे यहां सुग्रीव ने दो अजनबी राजपुत्रों को आते देखा उन्होंने हनुमान को खोज खबर लेने भेजा अचानक पेड़ों के झुरमुट से ब्राह्मण वेषधारी हनुमान पधारे उनके पास लकड़ियों का गट्ठर था वह गठ्टर को धरती पर रख कर उस पर बैठ गये |वह  अपने दोनों हाथो को रगड़ कर मुस्कराये  आप सूर्य एवं चन्द्रमा के समान देव आपकी सिंह जैसी चाल है पैदल कहाँ  से इस जंगल में पधारे हैं वह श्री राम को निहारने लगे ‘राम अनुपम थे न बहुत लम्बे  न मझौले उनमें सूर्य से भी अधिक तेज और ऊर्जा थी , गम्भीर आवाज , गहरी साँस , आँखे हरा रंग लिए हुए थी बदन की खाल कोमल और ऐसी चिकनी थी जिस पर धूल भी नहीं ठहरती थी सिर पर घुंघराले बाल जिनकी आभा हरी थी ,सिंह जैसी चाल ,पैरों के तलुओं पर धर्म चक्र के निशान थे उनकी भुजाये लम्बी घुटनों तक पहुंचती थी कान तक धनुष खींच कर बाणों का संधान करने की क्षमता थी , मोतियों जैसे दांत शेर जैसे ऊँचे कंधे चौड़ी छाती गले पर तीन धारियां, तीखी नाक जो भी उनकी छवि निहारता था देखता रह जाता था शौर्य और सुन्दरता का मूर्त राम चौदह कला सम्पूर्ण थे’  | श्री हनुमान के कानों के कुंडल चमकने लगे | श्री राम मुस्कराये  सोने के कुंडल धारण किये स्वयं पवन पुत्र वेश बदल कर उनकी टोह  ले रहे हैं | हनुमान ने हाथ जोड़ कर कहा प्रभू मैं आपको पहचान    गया आर्य शिरोमणि आप दोनों  अयोध्यापति  दशरथ के पुत्र हैं उन्होंने अपनी भुजाये फैला कर दोनों को कंधों पर बिठा लिया और पहाड़ी पर चढ़ने लगे.|सुग्रीव  श्री राम एवं लक्ष्मण से मिल कर प्रसन्न हो गये हनुमान ने आग जलाई अग्नि को साक्षी मान कर उनमें मित्रता हुई |राम ने बाली का वध किया सुग्रीव अब किश्किंध्या के राजा थे |श्री हनुमान ने दोनों भाईयों को सुरक्षित गुफा जहाँ पर्याप्त स्वच्छ जल था ठहरा दिया | वर्षा ऋतू बीत जाने पर सीता की खोज शुरू हुई |  सुग्रीव ने चारों दिशाओं  में खोजी बलवान बानर भेजे |हनुमान धरती पर सिर झुकाये बैठे थे जामवंत ने उनकी तरफ देख कर कहा उठो  हनुमान तुम ही राम काज करने में समर्थ हैं वह और अंगद हनुमान के साथ जाएंगे हर हाल में सीता की खोज कर  लौटेंगें श्री राम ने हनुमान को स्मृति चिन्ह के रूप में अपनी विवाह की अंगूठी दी जिस  पर तीन  बार राम राम लिखा था सब अनजानी यात्रा पर दक्षिण दिशा की और चल दिए |

 

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh