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विश्व के विभिन्न देशों में पूर्वजों की याद में मनाया जाता है सम्मान दिवस

Vichar Manthan
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भारत ही नहीं विश्व की हर संस्कृति एवं धर्मों में पूर्वजों को सम्मान दिया जाता हैं। हांं ढंग अलग हो सकता है। भारत की धरती से बौद्ध धर्म मंगोलिया तक पहुंंचा था। सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र एवं पुत्री संघमित्रा पहले बौद्ध भिक्षु एवं भिक्षुणी थे उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रसार दक्षिण पूर्व एशिया में किया इनके बाद अनेक बौद्ध भिक्षुकों ने दूर–दूर तक बौद्ध धर्म का प्रचार किया। जहांं भी बौद्ध धर्म ( इनमें सनातन धर्म की परम्पराएं भी मिश्रित हैं ) का प्रभाव है पूर्वजों को बहुत सम्मान दिया जाता है।

 

चीन जर्मनी सिंगापुर मलेशिया और थाईलैंड समेत कई देशों में पितरों की याद को ख़ास त्यौहार के रूप में मनाते हैं। वहांं मान्यता है पूर्वजों की आत्मा वर्ष में एक बार धरती पर आती है। इसे वह Obon  कहते हैं इस दिन शाकाहारी भोजन बना कर घर के बाहर या मन्दिरों के बाहर रखते हैं। हाल ही में मैं सिंगापुर गयी थी वहांं विभिन्न साऊथ ईस्ट देशों के खाने के रेस्टोरेंट हैं प्रवेश द्वार एवं स्टेज पर बहुत सुंदर सजावट की गयी बड़े मंंजीरे, ड्रम एवं अनेक वाद्य यंत्रों से सुंदर संगीत का समा बंधा था। लोग कुर्सियों पर शान्ति से बैठे थे। पता चला फेस्टिवल आफ डेथ की शुरुआत है। कहते हैं वर्ष के सातवें महीने में पन्द्रह दिन के लिए स्वर्ग एवं नर्क के द्वार खुल जाते हैं पूर्वजों की आत्मायें एवं घोस्ट चीन की धरती से जाकर अन्य एशिया के देशों में बसे परिजनों के यहांं उनके पूर्वजों की आत्माएं धरती पर पधारती हैं।

 

हंगरी घोस्ट फेस्टिवल
घोस्ट फेस्टिवल का आयोजन सातवें महीने के 15वीं रात को होता है। इस महीने को घोस्ट मंथ कहते हैं इस दिनों नर्क के दरवाजे खुलते हैं अच्छी एवं बुरी आत्मायें धरती पर पधारती हैं। अत : इस फेस्टिवल का आयोजन  आत्माओं को शांत करने के उद्देश्‍य से किया जाता है। यह आत्माएं ज्यादातर रात के समय सक्रिय रहती हैं और सांप, कीट, पक्षी, लोमड़ी, भेड़िए एवं शेर का रूप लेती हैं। यहां तक कि ये सुंदर महिला या पुरुष का रूप भी ले लेती हैं और किसी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करके उसे नुकसान पहुंचाती हैं।  बौद्ध, टोइस्टी धर्म एवं  अनेक देश जैसे कोरिया जापान में भी इस पर्व को हंगरी घोस्ट  फेस्टिवल या फेस्टिवल आफ डेथ भी कहते हैं। इसकी तैयारी एक हफ्ते पहले से ही शुरू हो जाती है घर का रास्ता दिखाने के लिए घर के बाहर रात के समय पेपर लैम्प जलाये जाते हैं। पूर्वजों का सत्कार करने के बाद उन्हें सम्मान से विदा भी किया जाता है रात के समय पूर्वजों को राह दिखाने के लिए नदी पर जा कर कागज की नावों पर मोमबत्ती जला कर प्रवाहित करते हैं अनगिनत नावें नदी पर तैरती हैं  मनभावन दृश्य होता है आकाश में टिमटिमाते तारे नदी में तैरतीं नावें। मान्यता है उनके पूर्वज रास्ता न भटकें आराम से मृत्यु लोक लौट सकें। इस दिन को दुःख का दिन मानते हैं।

 

मुख्य चीन में छींग मिंग उनका परंपरागत त्योहार हैं। भारत में हिन्दू धर्म के अनुयायी पितरों की याद में श्राद्ध पर्व मनाते हैं। ठीक इसी प्रकार से चीन में  छिंग मिंग पर्व के दिन भी पूर्वजों को याद किया जाता है। छींग का अर्थ ‘साफ़’ और मिंग का मतलब ‘उज्ज्वल’ होता है। त्योहार पर चीनी अपने दिवंगत लोगों की tomb (समाधि ,कब्र कब्रिस्तान ) जाकर उनकी कब्रों को साफ़ कर उन पर फूल मालायें अर्पित कर स्वादिष्ट खाना रख कर प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना करने के बाद परिवार का मुखिया उनके पीछे क्रम से परिवार के सदस्य समाधि के तीन चार चक्कर लगाते हैं पूर्वजों को गर्म खाना परोसा जाता है और खुद ठंडा खाना खातहैं। इसलिए इसे ठंडे भोजन का दिन भी कहा जाता हैं। ये त्योहार चीनी कलेंडर के अनुसार 5 अप्रैल को मनाया जाता यह पर्व को अलग–अलग नामों से जाना है।

 

चीन में प्राचीन शांग सम्राट जिन्हें देव पुत्र माना जाता था ने अपने पूर्वजों के बलिदान को याद करने के लिए वर्ष में एक बार दैवीय वस्त्र पहन कर धरती, आकाश के देवताओं एवं पूर्वजो की स्मृति में उत्सव का आयोजन किया था। उसके बाद से यह प्रथा बन गई इस दौरान विभिन्न रंगारंग प्रस्तुतियों का आयोजन होता है सभी को इसमें भाग लेने का न्योता भेजा जाता है।  नौजवान उत्साह से इन कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। कार्यक्रम के दौरान पहली लाइन की सीटों को खाली रखा जाता है। सोच है इन सीटों पर पूर्वजों की आत्माएं बैठती हैं। दिव्य आत्मायें मृत्यू के पश्चात वायुमंडल से अपनी सन्तति की संकट से रक्षा करती हैं जबकि दुष्ट आत्माएं प्रेत के रूप में कष्ट देती हैं। इस दिन शाकाहारी भोजन बनाया जाता है। वर्तमान में यह फेस्टिवल चीन, जापान, सिंगापुर, मलेशिया, थाइलैंड, श्रीलंका, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, ताइवान और इंडोनेशिया समेत कई एशियाई देशों में मनाया जाता है। सिंगापुर में मैने इसी आयोजन को देख कर प्रणाम किया था।

 

वियतनाम में इस दिन अपने पूर्वजों को याद करते हुए पक्षियों मछलियों एवं गरीबों को भोजन कराते हैं पितरों के लिए भी भोजन निकालते हैं पर्व को ‘तेतत्रुंग न्गुयेन’ ‘ कहते हैं हमारे यहांं पंडितों को जिमाने से पहले कोओं एवं गाय को खीर पूरी खिलाते हैं। जापान में वर्ष के सातवें महीने के आखिरी पन्द्रह दिन ‘चुगेन’ पर्व पर पितरों को उपहार अर्पित करते हैं अब यह उपहार अपने परिवार के बजुर्गों को देते हैं इनके यहांं एक और भी पितरों से सम्बन्धित पर्व हैं। कुछ जापानी समुदाय बॉन पर्व  मनाते हैं अपने पितरों के रहने के निवास स्थान पर जाकर श्रद्धांजली देते हैं।

कम्बोडिया लाओस म्यान्मार एवं श्रीलंका में सितम्बर एवं अक्टूबर में पर्व मनाया जाता है। यहांं तीन दिन की छुट्टी की रहती हैं। प्राचीन मान्यता यमराज प्रेत योनी में पड़ी आत्माओं के लिए यम द्वार खोल देते हैं अच्छे कर्म वाले मुक्त हो जाते हैं जिनके कर्म अच्छे नहीं हैं उन्हें फिर यमलोक जाना पड़ता है इस दिन चावल के पिंडों का दान कर (भारत में गया जी में पिंड दान जैसा ) पूर्वजों को जलांजलि अर्पित कर बौद्ध भिक्षुओं को श्रद्धा से बिठा कर भोजन कराया जाता है उन्हें दान भी दिया जाता हैं। भोजन गृहण करने से पूर्व भिक्षु सूत्रों का पाठ करते हैं इस पर्व को ‘पिक्म बेन’ कहते हैं सब जगह मनाने का तरीका एक है केवल नाम अलग-अलग हैं | यहांं श्राद्ध की समाप्ति के बाद नवरात्र आते हैं इन दिनों शाकाहारी भोजन का विधान है | इन सभी स्थानों में बौद्ध धर्म फैला था।

 

 

प्रथम विश्व युद्ध की जिस दिन शुरुआत हुई थी ,100 वर्ष पूरे होने के बाद सेना और युद्ध मे मरने वाले लाखों नागरिकों के सम्मान में 1 अगस्त को पूरे विश्व में रौशनी कम की गई उन अनजान आत्माओं के सम्मान में जो असमय मृत्यु की गोद में सो गये थे। मेक्सिको में डे आफ डेथ बहुत प्रसिद्ध है यह दो दिन चलने वाला पर्व है। मान्यता है वर्ष में एक दिन मृत आत्मायें अपने परिवार के साथ रहने आती हैं। 31अक्टूबर आधी रात को पहले बच्चों की आत्मायें बुलाई जाती हैं परिवार के साथ समय बिता कर विदा कर दी जाती हैं अगले दिन बड़ी उम्र के पूर्वजों का दिन माना जाता है अत : वहाँ एक और दो नवम्बर की छुट्टी रहती है घरों में पूजा स्थल बना कर सजाये जाते हैं कुछ यहांं मोमबत्तियों की सजावट कर उन्हें जला कर पूर्वजों को याद करते हैं  करते हैं। मैक्सिको का समाज हड्डियों के कंकाल बना कर उन मूर्तियों को अपने घरों में सजाते हैं यह तरह –तरह के हड्डियों पर टोटके करते हैं। कंकालों के मुखौटे भड़कीले रंगीन कपड़े और पेंट से कलाकारी की जाती हैं। घर में शानदार मीठे केक बना कर उन्हें भूत प्रेत के आकर से सजाया जाता हैं।

 

आजकल डे आफ डेथ के अवसर पर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए मेक्सिको की राजधानी में परेड का आयोजन किया गया। इसकी शुरुआत 2 नवम्बर 2016 में पहली बार की गयी थी आयोजकों को उम्मीद है कि ये परेड एक दिन मेक्सिको में आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का मुख्य केंद्र होगी मेक्सिको के विभिन्न शहरों में अलग–अलग ढंग से मृत परिजनों को सम्मानित करते हैं। इसे हेलोवीन दिवस का रूप देने की कोशिश भी की जा रही है। हेलोवीन पश्चिमी देशों का त्यौहार है जिसे 31 अक्टूबर के महीने में मनाया जाता है इसकी शुरुआत, किसान मानते थे फसलों के मौसम में बुरी आत्मायें धरती पर आकर फसलों को नुक्सान पहुचाती हैं उन्हें डराने के लिए स्वयं डरावना रूप धारण कर लेते थे। कोरिया में तीन दिन तक सरकारी छुट्टी होती है और पूर्वजों को याद किया जाता है इस दिन को Chuseok का नाम दिया है लोग अपने पैतृक घर जाते हैं चावल के मीठे केक बना कर घर के बाहर रख दिया जाता है विश्वास है उनके पूर्वजो की आत्मा एक दिन के लिए धरती पर जरूर आती हैं।

 

भारत में पिंड दान एवं श्राद्ध कर्म की परम्परा बहुत प्राचीन है। बिहार स्थित गया का नाम बड़ी प्रमुखता व आदर से लिया जाता है। फल्गू नदी में स्वयं भगवान राम ने अपने पिता का पिंड दान किया था। सन्तान अपने पूर्वजों को सदैव याद रखे इसी लिए उनके जन्म पर ख़ुशी मनाई जाती है। खास कर पुत्र के जन्म पर पितृ ऋण सबसे बड़ा ऋण माना जाता है |

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