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अभिनेता नसीरुद्दीन शाह अपने ही देश में डरे हुए हैं?

Vichar Manthan
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नसीरुद्दीन शाह आज के भारत में अपने बच्चों को लेकर बहुत डरे हुए हैं. ”मुझे इस बात का डर लगता है कि कहीं मेरे बच्चों को भीड़ ने घेर लिया और उनसे पूछा कि तुम हिंदू हो या मुसलमान? मेरे बच्चों के पास इसका कोई जवाब नहीं होगा. क्योंकि मैंने मेरे अनुसार अच्छाई और बुराई का मजहब से कोई सम्बन्ध नहीं है मेरे बच्चों को मजहबी तालीम नहीं दी गयी है|  नसीरुद्दीन शाह फिल्म जगत का जाना माना नाम है उन्हें 1987 में पद्म श्री 2003 में पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए राष्ट्रीय पुरूस्कार भी मिला वह अपनी अलग शैली और सशक्त अभिनय  उनकी अलग पहचान है अन्य अवार्ड भी मिले उनकी पत्नी हिन्दू है दो पुत्र हैं वह यहीं पले बढ़े यहीं अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत की उनकी पहली शादी अलीगढ़ में उनके साथ पढ़ने वाली पाकिस्तानी युवती से हुई थी उनकी उनसे एक बेटी भी है जिसे उनकी पाकिस्तानी बीबी साथ लेकर अपने वतन लौट गयी |

नसीरुद्दीन शाह उत्तम कलाकार हैं उनको लोग बहुत पसंद करते है उनका नाम अच्छे कलाकारों में शामिल है उनको उनकी एक्टिंग की खासियत की प्रशंसा होती है किसी दर्शक ने उनका धर्म क्या है ?जानने के बजाय उनकी अदाकारी के चर्चे किये हैं सभी उनके कलाकार रूप को पसंद करते हैं उनको दिल से सम्मान दिया गया वह बढ़ती उम्र में भी बोल्ड सीन करने से परहेज नहीं किया हर फिल्म के किरदार के अनुरूप अपने आप को ढाला है उन्होंने आर्ट फिल्मों एवं कोमर्शियल फिल्मों में काम किया |भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र हैं सभी धर्मों के मानने लोग अपनी उपासना पद्धति के अनुसार धर्म का पालन करते हैं हैरानी हुई.” अचानक फ़िल्मी अभिनेता को भारत में बसे बच्चों की चिंता सताने लगी उनके ब्यान पर विवाद छिड़ गया कुछ विचारकों ने उनका समर्थन किया कुछ ने न समर्थन न निंदा उनके देश पर प्रश्न उठाते विचार लगातार आ रहे हैं हैरानी हुई | शाह साहब के ब्यान के बाद के बाद पाकिस्तानी प्रधान मंत्री श्री इमरान खान ने भारत पर तंज कसे लेकिन शाह साहब ने उनका विरोध किया साथ ही कहा वह देश छोड़ने वालों में नहीं हैं जानते हैं भारत का इतना बड़ा फ़िल्मी बाजार और दर्शक यहीं हैं |

शायद कलाकार के रूप में उन्हें काम मिलना कम हो गया वह राजनीति में आना चाहते हैं एक रास्ता राज्यसभा का है राष्ट्रपति महोदय उन्हें मनोनीत करे| दूसरा ऐसा ब्यान दो धमाका हो जायें ऐसा अक्सर होता रहता है 2019 के चुनाव पास हैं वह धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वाले मोदी विरोधी दलों की नजर में चढ़ जाए राजनीतिक दल उन्हें अपने दल का प्रवक्ता बनने के लिए आमंत्रित करे चुनाव के लिए टिकट मिल जाए उन्हें राजनीति में प्रवेश मिले |नसीरुद्दीन शाह ऐसे व्यक्तियों में नहीं हें जो केवल मुस्लिम समाज की राजनीति करेंगे हाँ अपने समाज को भय दिखा कर उनको संगठित वोट बैंक बनाने की कोशिश दिखा सकते हैं |

नसीरुद्दीन का जन्म आजाद भारत में जुलाई1950  बाराबंकी में सेना के अधिकारी इमामुद्दीन के घर हुआ था उनके जन्म के तीन वर्ष बाद पिता का तबादला हो गया बाराबंकी से उनका संबंध छूट गया उन्होंने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरूआत फिल्म निशांत से की थी उनके साथ स्वर्गीय स्मिता पाटिल एवं शबाना आजमी जैसी कुशल अभिनेत्रियों ने काम किया था अनेक फिल्मों में उनकी अदाकारी की जम कर तारीफ़ हुई है | वही नसीरुद्दीन शाह लगातार ब्यान दे रहे हैं उन्होंने अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रश्न उठाये हैरानी हुई उन्हें अपनी बात कहने से किसने रोका है प्रजातांत्रिक देश अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का मौलिक अधिकार पर चर्चाएँ भी तेज हुई हैरानी हुई जब उनके विचार से  ‘हमारे संविधान की क्या यही मंजिल है। क्या हमने ऐसे ही मुल्क का ख्वाब देखा था, जहां मतभेद की कोई गुंजाइश न हो। जहां सिर्फ अमीर और ताकतवर की ही आवाज सुनी जाए। जहां गरीब और कमजोर को हमेशा कुचला जाए। जहां कानून था वहां अब अंधेरा है।’ कलाकार हैं उन्हें शायद संविधान का ज्ञान नहीं होगा भारत का लिखित संविधान हैं जिसमें मौलिक अधिकारों की व्याख्या की गयी है मौलिक अधकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय है संविधान की किसी भी धारा में परिवर्तन करने की प्रक्रिया है संसद के दोनों सदनों का दो तिहाई बहुमत एवं आधे से अधिक राज्य विधान सभाओं के बहुमत से परिवर्तन किया जाता है सरकार का राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण ट्रिपल तलाक विधेयक बीच में लटका है दुर्भाग्य बहुसंख्यक हिन्दुओं के आराध्य श्री राम का मन्दिर आक्रमण कारी के आदेश से तोड़ा गया जन्म स्थान पर मन्दिर नहीं बन सका मामला सर्वोच्च न्यायालय में कई वर्षों से चल रहा है | आश्चर्य उन्हें भारत में कानून के स्थान पर अन्धेरा नजर आता है यदि संविधान मौलिक अधिकार देता है साथ ही राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत कर्तव्यों की व्याख्या भी की गयी हैं न मानने पर दंड का विधान नहीं है |

आगे उन्होंने कहा हमारे आजाद मुल्क का संविधान का मकसद ये था कि देश के हर नागरिक को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक न्याय मिल सके। सोचने की, बोलने की और किसी भी धर्म को मानने की और किसी भी तरह की इबादत करने की आजादी हो।’ धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार की व्याख्या संविधान के 25 से 28  अनुच्छेद में की गयी है जिसके अनुसार सभी लोग अपने धर्म का पालन ,प्रचार की स्वतन्त्रता है लेकिन जबरन

धर्म परिवर्तन नहीं कराया जा सकता | धर्म के आधार पर पाकिस्तान बना देश बता लेकिन भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है आश्चर्य हुआ उनकी आजादी को किसने छीना उनकी पत्नी हिन्दू है उनके बच्चे किस धर्म को मानते हैं किसी ने नहीं पूछा ?क्या उन दोनों के धर्म पर किसी ने आघात किया? प्रश्न उठता है अचानक एक कलाकार सरकार पर प्रश्न क्यों उठाने लगा देश में जनता की चुनी बहुमत की सरकार हैं देश में डिक्टेटर शिप नहीं है चुनाव पास हैं ? उन्होंने लिखा हालात ये हैं कि अब हक के लिए आवाज उठाने वाले लोग जेलों में बंद हैं। कलाकार, फनकार, स्कॉलर, शायर सबके काम पर रोक लगाई जा रही है। पत्रकारों को भी खामोश किया जा रहा है। मजहब के नाम पर नफरत की दीवारें खड़ी की जा रही हैं  मासूमों का कत्ल हो रहा है।’ देश में केवल पाकिस्तान के कलाकारों का विरोध किया गया था यह कलाकार देश में धन कमाने आते हैं जबकि पाकिस्तान हमें आतंकी भेज रहा है रोज बार्डर पर गोले दागे जाते हैं हाफिज सईद के धमकी भरे बोल अक्सर सुनने में आते हैं किस कलाकार या शायर के काम पर रोक लगाई गयी है क्या नसीर भाई को काम मिलना बंद हो गया ?

पूरे मुल्क में नफरत और जुल्म का बेखौफ नाच जारी है और इन सबके खिलाफ आवाज उठाने वालों के दफ्तरों पर रेड डालकर, लाइसेंस कैंसिल करके, उनके बैंक अकाउंट फ्रीज करके, उन्हें खामोश किया जा रहा है ताकि वह सच बोलने से बाज आयें , किसके साथ ऐसा हो रहा है हास्यास्पद ब्यान |क्या नसीरूद्दीन किसी फिल्म स्क्रिप्ट पढ़ रहे हैं उसके डायलाग याद कर रहे हैं या उनके अपने मस्तिष्क की उपज |हाल ही में एनआईए आतंकियों की कार्यवाही की तैयारी को पकड़ा विदेश से फंड पाने वाले मानवाधिकार वादियों पर लगाम लगाने की कोशिश की जिनको आतंकियों के मानवाधिकारों की चिंता अधिक रहती हैं क्या शाह साहब की उनसे सहानुभूति है |

आमिर खान भारत के चहेते कलाकार हैं कुछ ऐसे ही विचार उन्होंने व्यक्त किये थे लेकिन नाम अपनी पत्नी का लिया था अचानक आमिर खान उनकी हिन्दू पत्नी को प्रतिदिन अखबार खोलने से डर लगने लगा| श्रीमती किरन बंगलुरु में जन्मी अपनी आखिरी जर्नलिज्म की डिग्री जामिया मिलिया से ली | आमिर खान एवं नसीर साहब ने फ़िल्मी दुनियाँ में बड़ी संघर्ष से अपना स्थान बनाया | दोनों ने 12 मार्च 1993 में मुम्बई में एक के बाद एक पकिस्तान समर्थित आतंक वाद के द्वारा किये बम धमाके सुने थे| | 22 वर्ष तक बम धमाकों को क्रियान्वित करने वाले याकूब मेनन पर केस चलते देखा फांसी की सजा रोकने संबंधित याचिका के लिए रात को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चलते देखा| मुम्बई ने 26 /11 का तांडव देखा पूरा देश स्तब्ध था यही नहीं पार्लियामेंट पर देश की अस्मिता पर पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी हमला होते देखा | आतंकी निर्दोष लोगों की हत्या करता है उसके सामने कोंई दाद या फरियाद नहीं चलती देश में स्लीपर सेल ढूंढे जाते हैं आतंकी कार्यवाही में संलग्न की जानकारी मिलने पर उन्हें न्यायिक प्रक्रिया के अंतर्गत उठाया जाता तब भी विरोध होता है लेकिन हिंसा के कृत्य में अपराधी दिखाई देता है उसकी निंदा भी होती है कानून उसे सजा देता है लेकिन क़ानूनी प्रक्रिया लम्बी हैं
तब दोनों कलाकरों के मन में डर पैदा नहीं हुआ |आमिर खान के मन में देश छोड़ने का विचार नहीं आया था  | ऐसे ही शाह साहब को उन दिनों अजीब नही लगता था जब प्रतिदिन एक से बढ़ कर एक घोटालों की खबर आती थी ?धीरे धीरे देश का नौजवान निराश होता जा रहा था सरकार बदली बहुमत की सरकार आई सबके दिलों में आशा बंधी | आज भी अखबार में अनेक खबरें होती है सम्पादकीय लेख होते हैं करोड़ों की आय का रिकार्ड बनाती फ़िल्में यहाँ तक इनकी फिल्म की प्रशंसा की खबरों के समाचार भी हैं चरमोत्कर्ष पर पहुचें किंग शाहरुख़ खान को भी देश में असहिष्णुता नजर आई उन्होंने मुस्लिम कार्ड खेला परन्तु देश छोड़ने की बात नहीं की क्योंकि वह समझदार हैं जानते हैं उनकी फिल्मों और चाहने वालों का यही बड़ा बाजार है यहीं धन है |
मैं सोच कर परेशान हूँ शाह साहब को बच्चों की चिंता है भारत से अनेक लोग विदेशों में काम के लिए जाते हैं भारत के टेक्नोक्रेट का विश्व में स्वागत है लेकिन शांति सुरक्षा की गारंटी कहां है ?मिडिल ईस्ट वहाँ इस्लामिक स्टेट का खतरा मंडराया उनकी आर्थिक सम्पन्नता पर बगदादी की नजर थी  |मोदी जी के दौरों के दौरान उनका वहाँ जम कर स्वागत हुआ सबसे बड़ी बात बिना लाग लपेट के आतंकवाद के खिलाफ एकता का स्वर इस धरती से उठा जबकि मुस्लिम देशों में इस्लामिक कानून या डिक्टेटर शिप है अभिव्यक्ति की आजादी शाह साहब भूल जाएँ| वहाँ वर्क परमिट मिलता है काम कीजिये लेकिन नागरिकता कभी नहीं | भारत ही ऐसा देश है यहाँ कुछ भी बोल कर सरकार के विरुद्ध जनमत बनाने की कोशिश की जा सकती है |योरोपियन देश है | इटली, स्पेन फ्रांस में बेरोजगारी से नौजवान तंग हैं | योरोप के दरवाजे पर सीरिया ईराक अफगानिस्तान के बेहाल शरणार्थी खड़ें हैं |योरोप अन्य देश अब वहाँ धीरे धीरे इस्लामिक स्टेट के विरोध में दक्षिणी पंथी विचार धारा जोर मार रही है सलमान खुर्शीद विदेश मंत्री काल थे चीन गये थे उन्हें बीजिंग रहने के लिए बहुत पसंद आया था |वहाँ पर जरा जिन्गियान प्रांत का हाल जान लें मुस्लिम को सिर नहीं उठाने देतें | कनाडा भी अब सशंकित हो गया है , यू .एस ट्रम्प को ब्रेन चाहिए जो उनके देश के उत्थान में योगदान दे |कुछ देशों में इस्लामिक कानून हैं इनकी पत्नी को जाते ही हिजाब में रहना पड़ेगा | वहाँ इस्लामिक कानून है सुरक्षा की गारंटी है परन्तु देश की धरती पर पैर रखते ही हिजाब या काली चादर पड़ेगी जिससे पूरा शरीर ढका रहता है | नसीर साहब के बच्चों के बच्चों का क्या होगा अभिव्यक्ति की आजादी न नागरिकता हाँ बिलकुल सुरक्षित मुल्क | बाकी और भी देश हैं | सिंघापुर सुरक्षित अच्छा देश लेकिन कोंई भी देश आपको उस देश की निंदा करने की इजाजत नहीं देगा वहीं के होकर रहना पड़ता है | भारत ही ऐसा देश है अभिव्यक्ति के नाम पर कुछ भी कहो | आस्ट्रेलिया भी अब आतंकवाद के डर से सशंकित हो गया है |
सबसे बड़ी बात आप कहीं भी रह सकते हैं लेकिन कमाने के लिए यहीं आना पड़ेगा |यही प्रसिद्धी है यहाँ करोड़ो की आय है ,यहीं फिल्म हिट या फ्लाप होती हैं |यहाँ फ़िल्मी बाजार के लिए हालीवुड तक लालायित रहता है| फिल्मों का इतना बड़ा बाजार यहाँ कहानियों की कमी नहीं है यदि हिन्दू धर्म के विषयों का मजाक उडाओ आप सैक्युलर माने जायेंगे ,पूरे बुद्धिजीवी वर्ग का समर्थन मिलेगा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की दुहाई दी जायेगी यदि हिन्दू धर्म की प्रशंसा कर दी कट्टरता का तगमा भी लग सकता है हाँ आप ईसाई समाज और हिन्दू समाज के विरुद्ध कुछ भी कह सकते हैं आप आजाद है|
जहां भी मोब लिंचिंग की घटनाएँ हुई रही घेर कर मारने की बात अनेक घटनायें हुई है निंदा की गयी गिरफ्तारियां हुई बहुमत की सरकार है संसद में अल्प मत होने पर ही अविश्वास प्रस्ताव के पास होने के बाद ही सरकार हट सकती है | आलोचकों का काम है आलोचना करना यह देश विभिन्नता के बाद भी एक है| दुःख होता है परन्तु हमारी सहिष्णुता की प्रवृति सब कुछ भुला देती है |फिल्मों में स्क्रिप्ट मे लिखे डायलोग कलाकार पढ़ते रहे हैं किसी लेखक से मनचाहा लिखवा कर आप अपनी ही बात का समर्थन कर सकते हैं जबकि आप ऊंचा मुकाम हासिल कर चुके हैं उसी पायदान पर खड़े हैं जिस देश में आप कहाँ से कहाँ पहुंच गये वही की सहिष्णुता पर आप प्रश्न लगा रहें हैं बड़ा दुःख हुआ दुःख क्या आत्मिक कष्ट हुआ |

 

 

 

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