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ईद मुबारक

Vichar Manthan
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घर की सीढियाँ उतर रही थी सामने से दो अजनबी नौजवान आ रहे थे उनके चेहरे  कई दिन रोजे रखने के बाद ईद की ख़ुशी में चमक  रहे थे मैने उनको ईद की मुबारक बाद देते हुए ईद मुबारक कहा उन्होंने प्रति उत्तर में हाथ जोड़ कर कहा  आंटी आपको भी ईद मुबारक जब भी ईद आती है मेरी स्मृति में कुछ यादें कौंध जाती हैं हम कई वर्ष विदेश में परिवार सहित रहे थे | इस्लामिक सरकार थी वह चाहते थे सभी रोजे रखें सरकारी दफ्तरों में निर्देश आता था किस – किस ने रोजे नहीं रक्खे रिपोर्ट कीजिये | पूछने पर सभी कहते थे हम रोजे से हैं लेकिन उनके चेहरे को देख कर लगता था वह सभी रोजे नहीं रखते |असली रोजेदारों के चेहरे सूख जाते थे ओठों पर पपड़ियाँ जम जाती थी यह हाल तब था जबकि वह ठंडा प्रदेश था | रोजों के बाद आने वाला खुशी का पर्व ‘ईद ‘, लेकिन जिस धूम धड़ाके से हमारे यहां ईद मनाई जाती है वैसा यहां मैने नहीं देखा | भारत में रोजे के दिनों में कई बाजरों में रात के वक्त खाने का बेहतरीन इंतजाम होता है अच्छा गोश्त एवं विरयानी खाने के शौकीन उनका धर्म क्या है पता नहीं बाजारों की रोनक बढ़ाते हैं खाने के दूसरे सामान भी कम नहीं होते | कई दिनों पहले बाजार सज जाते हैं नए-नए डिजाइन के कपड़े नकली एवं असली जेवर गिफ्ट आईटम खरीदने के लिए बाजरों में चहल पहल रहती है | ईद के दिन बेहतरीन नये कपड़े पहन कर अपने मिलने वाले घरों में स्वादिष्ट सेवइयां पहुँचना , एक दूसरे को ईद की मुबारक बाद देना और शाम को कहीं – कहीं कव्वालियों के प्रोग्राम होते हैं ,हर सिनेमा घर में नई फिल्म लगती है | यहां पर ईद की मुबारक बाद दी जाती है अच्छा गोश्त पकता है केक भी लाया जाता है पर सेवइयां वह लोग नहीं जानते |

 

 

ईद का मतलब हम सबके लिए टेलीविजन पर मजेदार प्रोग्राम और पूरी एक कार्टून फिल्म जिसे बच्चे क्या बड़े भी बड़े शौक से देखते थे |शाम को कभी – कभी हिंदी की डब की फिल्म भी दिखाते थे | एक ईद की सुबह – सुबह एक पाकिस्तानी परिवार हमारे यहाँ आया उन्होंने कहा हमने सोचा इस बार ईद आपके साथ मनाई जाये | डॉक्टर आहब का नाम था डॉ नसीर अख्तर वह पाकिस्तान के रावल पिंडी के रहने वाले थे लेकिन लाहौर मेडिकल से डाक्टरी की थी आगे की पढ़ाई के लिये वह वियाना पढ़ने गये थे उनके तीन बच्चे अपनी माँ के साथ छुट्टियों में अपने बाबा से मिलने आये थे बच्चे हमारे बच्चों के हम उम्र थे | पहले बच्चे शरमाये फिर आपस में मिल कर बहुत खुश हुए |मैं थोड़ा संकोच में पड़ गई यदि पहले पता होता मै हाथ से ही थोड़ी सेवईया बना लेती ,छोले या राजमा भिगो लेती कुछ अच्छी सी तैयारी कर लेती | उनकी पत्नी आबिदा समझ गई उसने कहा आप तकल्लुफ न करें हम मिल कर कुछ बना लेते है फिर गप्पें मारेंगे| हमारे पास के शहर में कई पाकिस्तानी परिवार रहते थे ईद का पर्व सब मिल कर मनाते थे उन सब को छोड़ कर डाक्टर साहब अपने परिवार को लेकर हमारे घर आये है अपना पर्व मनाने हमें बहुत अच्छा लगा|

मैने उनसे कहा आप हमारे एरिया की मस्जिद में नमाज के लिय चले जाईये परन्तु उनकी इसमें कोई रुचि नही थी | आप सोचेंगे कैसे मुसलमान थे ? जी हाँ मुस्लिम पर सबसे अलग, कभी नहीं सुना वह रोजे से हैं हाँ जितने रोजे दार डाक्टर थे उनकी इमरजेंसी ड्यूटी वह करते थे पूरे रमजान वह रात को घर पर नही थे अस्पताल में रहते थे सर्जरी को छोड़ कर रात के मरीजों को वह संभालते थे अपनी ड्यूटी फिर दूसरों की ड्यूटी आसान नहीं हैं | नमाज के बारे में हम नहीं जानते कभी पढ़ने मस्जिद गये हों लेकिन उन्हें अपने मुस्लिम होने पर गर्व था वह कहते थे हर कौम का ग्लोरियस पीरियड आता है औटोमान एम्पायर के समय हमारा ग्लोरियस पीरियड था हमारी कौम का ऐसा समय फिर से आएगा जरूरत बस आपसी झगड़े मिटाने की है उन्हें एतराज था मक्का पर केवल सुउदिया का अधिकार क्यों है जबकि मक्का सबका पवित्र स्थान है ?

 

उन्हें पढ़ने का बेहद शौक था हम उन्हें हंस कर प्रोफेसर नसीर कहते थे | मेरे पति से उनकी गहरी दोस्ती थी पर कभी भी दोनों ने राजनीतिक चर्चा नहीं की थी |दोनों परिवारों के बच्चे मिल कर खेल रहे थे |डॉ साहब के बच्चों ने आते ही हमसे एक रिश्ता जोड़ लिया वह इनको ताया जी और मुझे ताई जी कहने लगे हमें अंकल ,आंटी के बजाय यह सम्बोधन बहुत अच्छा लगा अब वह हमारे बच्चों के चाचा चाची जी थे |उनकी बेटी सलोमी और मेरी बेटी राजू हम उम्र थीं उनकी एक ही क्लास थी उसने सबसे पहले अपना पढ़ने का बस्ता खोल कर सलोमी को दिखाया सलोमी को अपनी हिंदी की किताब में एक कहानी पढ़ने को दी जो उसे बहूत पसंद थी सलोमी ने लाचारी से कहा मैं यह भाषा नहीं जानती मेरी लड़की बहूत हैरान हूई अरे तुम बोल सकती हो पढ़ नहीं सकती फिर तुम अपने बाबा को चिट्ठी कैसे लिखोगी हम सब हंस पड़े उसे समझाया उसकी भाषा उर्दू है हिंदी उर्दू बोलने में लगभग एक सी है लिखने में अलग हैं सलोमी का अगला सवाल था हमारे यहाँ पाँच जगह पैगम्बर और दीन पढाते हैं आपके पैगम्बर नहीं हैं उन्हें समझाया भारत में अलग-अलग धर्मों के लोग रहते हैं लेकिन सेक्यूलर देश है |उसे हैरानी थी उसके यहाँ पाकिस्तान का इतिहास पाकिस्तान निर्माण की घोषणा से पढ़ाया जाता है लेकिन आपका इतिहास बहुत बड़ा है उसे कैसे समझाये यह उनका भी इतिहास था |

 

 

मैने सोचा आज इन्हें बिना प्याज और लहसन का खाना जैसे हमारे मथुरा के घर में बनता है या हम खाते हैं वैसा तैयार करूगीं मैंने हरी सब्जियाँ खीर पूरी और रसदार मटर की सब्जी रायता बना कर सबका अलग – अलग प्लेटों में खाना परोसा उन्हें पहले इस बात की हैरानी थी की प्याज और लहसन के बिना भी खाना बन सकता है | मैं अच्छा खाना पकाना नहीं जानती थी पर उन्होंने बड़े स्वाद से खाना खाया और कहा प्याज और लहसून हरी सब्जी के स्वाद को दबा देता है हमने पहली बार समझा हर सब्जी में अपना एक स्वाद होता है |बच्चों को खीर वहुत पसंद आई उन्होंने झट से फरमाइश कर दी अब हम ईद पर यही पुडिंग बनवायेंगे |उनकी छोटी बेटी सहर दो साल की थी परन्तु दूध पीने के अलावा कुछ नहीं खाती थी वह कोशिश करते थे पर वह मुहँ ही नही खोलती थी | उसे इन्होने गोद में बिठा लिया उसे खीर खिलाने की कोशिश की उसने जरा सा मुँह खोला इन्होने उसके मूँह में खीर डाली उसे याद आ गया की उसने कुछ नहीं खाना है पर जुबान पर खीर का स्वाद लगा या अपने ताया जी का लिहाज किया निगल गई पर अब वह शौक से खाने लगी आबिदा ने कहा यह ईद हम कभी नहीं भूलेगें आज मेरी सहर भी खाने लगी |

 

उनका चार वर्ष का बेटा नया- नया स्कूल जाने लगा था वह ताया जी की गोद में बैठा इनके हाथ से खाना खा रहा था उसने जोश में भर कर कहा वह बड़ा होकर फाईटर प्लेन उड़ायेगा और दिल्ली को बूम करेगा मैने हँस कर पूछा बेटा वहाँ तुम्हारे ताया और ताई जी यानी मैं रहती हूँ वह परेशान हो गया उसने अपने गाल पर नन्हें हाथ मार कर कहा नहीं-नहीं अल्लाह तोबा मैं पायलेट नहीं बनूंगा | नसीर भाई ने दुखी होकर कहा नन्हें बच्चों के कोमल दिमाग पर हमारे स्कूलों में इस तरह का फितूर डाला जाता है |अब तो अपनी ही जेनरेशन को आतंक का पाठ पढ़ाया जा रहा है | बुद्धिजीवी हैरान परेशान हैं उन्हें भारत के समान तरक्की , चुनाव एवं स्थाई प्रजातंत्र चाहिए | बच्चे शाम को अपने घर जाने को तैयार ही नहीं हुए और मैने जाने भी नहीं दिया | सुबह – सुबह बड़े दुखी मन से खुदा हाफिज कह कर विदा हुए पीछे से सबको उदास कर गए | बच्चे जब तक रहे मौका मिलते ही हमारे पास आते थे | एक साल बाद डॉ नसीर अपने वतन चले गए उनके कुछ समय बाद हम भी स्वदेश लौट आये अब उनके परिवार और हमारे बीच एक लम्बी सरहद है हर ईद के मौके पर हम उन्हें याद करते हैं वह भी हमे नहीं भूले होंगे|

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