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तेज रफ्तार का कहर जवान बेटा खोया जीवन संस्कृत गीता प्रचार प्रसार को समर्पित

Vichar Manthan
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“ तेज रफ्तार का कहर “ क्या खोया था क्या पाया है
आये दिन तेज रफ्तार के कहर से अनेक लोग अपना जीवन गवाते हैं एक ऐसे ही अपने जवान बेटे को खोने वाले श्री बसंत वल्लभ पन्त जी से हमारा परिचय नोएडा जलवायु विहार के 25 सेक्टर में हुआ था पन्त जी वायु सेना से रिटायर होने के बाद अपने निजी मकान में रहते थे | हम वहाँ किरायेदार थे अत्यंत सौम्य शांत व्यक्तित्व उनसे जब भी नमस्ते होती थी बड़े प्रेम से मिलते थे धीर- धीरे परिचय पारिवारिक घनिष्टता में बदल गया पन्त जी का बड़ा बेटा स्कालर शिप ले कर यू. एस .ए. में पढने के लिए गया था उसका वहाँ बसने का कोई इरादा नहीं था परन्तु मेरा अपना अनुभव है हम अपने दिन रात मेहनत से बनाये बच्चे अमेरिका के लिए ही तैयार करते हैं| उसने वहाँ अमेरिकन लडकी से प्रेम विवाह कर लिया अब अपने देश लौटने का सवाल ही नहीं था वह वहीं का हो गया | दूसरा बेटा जल्दी ही पैरों पर खड़ा हो गया वह बहुत ही मिलनसार हरेक के काम आने वाला हर दिल अजीज था सभी उसे बब्लू के नाम से जानते थे | बेटी की शादी हो चुकी थी |कुछ समय बाद हम अपने घर में शिफ्ट हो गये लेकिन पन्त जी से सम्बन्ध कभी नहीं टूटा | एक दिन अचानक हमारे घर के नजदीक चौराहे पर ओवर टेक करती तेज रफ्तार से आती स्कूल बस ने पीछे से बाईक सवार को टक्कर मार कर एक नौजवान लड़के को कुचल दिया कड़ियल जवान लडका वहीं समाप्त हो गया सडक पर चारो और खून फैला था हमने सुना ,लम्बी साँस ली मन बहुत दुखी हुआ | जवान जिसे हम अजनबी समझ रहे थे पन्त जी का शादी शुदा छोटा बेटा, छह माह के बेटे का बाप था |घर में परिवार उसके आने का इंतजार कर रहा था इस समय वह खाना खाने घर आता था | पन्त जी सुन्न हो गये थे पत्नी को होश ही नहीं था जवान बच्चे की अर्थी को कंधा देना इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता हैं पति पत्नी बिलकुल आटे का लोंदा बन गये थे नसों में खून जम गया था किसी तरह अपने मन को समझा नहीं पा रहे थे | मन को शांत करने के लिए दोनों हरिद्वार के शांति कुंज आश्रम में रहने लगे | गंगा स्नान करते सत्संग सुनते छह माह बीत गये बड़े बेटे बहू ने उन्हें वीजा भेज कर अमेरिका बुला उनके मन का संताप दूर करने की हर कोशिश की उनमें जीने की इच्छा जगाई छह माह बाद वह भारत लौट आये | विदेशी बहू ने उनके आंसूं पोछें थे लेकिन उनकी देशी बहू जिसे वह स्वयम ब्याह कर लाये थे उन्हें तीन वर्ष तक मानसिक संताप ही दिया | पन्त जी को लगने लगा उनका जीवन निरर्थक जीने के लिए नहीं है केवल साँस लेना जिन्दगी नहीं हैं |वह स्वदेश लौट आये |
उन्होंने दिल्ली स्थित संस्कृत भारती से सम्पर्क किया जो राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संस्कृत भाषा का प्रचार प्रसार विगत 25 वर्षों से कर रही है यह सरकारी संस्था है जगह – जगह उनके वालंटियर संस्कृत में वार्तालाप करना और सही ढंग से गीता पढ़ाना सिखाते हैं पन्त जी ने पहले संस्कृत बोलना सीखा इसके के बाद पत्राचार द्वारा प्रारम्भिक योग्यता प्राप्त कर संस्कृत का प्रचार प्रसार करने का संकल्प लिया | वह कहते हैं संस्कृत मात्र भाषा ही नहीं यह सम्पूर्ण जीवन पद्धति है |पढ़ना पढ़ाना ब्राह्मण का धर्म है | सेक्टर 25 के समीप एक विद्यालय में रविवार एक घंटे के लिए संस्कृत पढाने का निश्चय किया साथ ही नोएडा के सेक्टर 62 में स्थित अरविंदो आश्रम में गरीब बच्चों को पढ़ाने लगे |शुरू में लोग संस्कृत पढ़ने के लिए आकर्षित नहीं हुए लोग अंग्रेजी पढना चाहते हैं बूढ़े पार्क में बैठ कर अपने जीवन को कोस सकते हैं परन्तु संस्कृत पढना उनकी समझ में नहीं आता तब भी वह धैर्य पूर्वक आंधी हो या बरसात नियमित रूप से शिक्षण के लिए जाते और विद्यार्थियों का इंतजार करते | मुझे पता चला नोएडा में संस्कृत शिविर लगा है यहाँ संस्कृत बोलना उच्चारण करना सिखाया जाएगा विद्यार्थी जीवन में बड़ी मजबूरी में संस्कृत पढ़ सकी थी रूप और धातु याद करना सबसे मुश्किल काम था | मैं उत्सुकता वश सेंटर देखने गयी देखा पन्त जी संस्कृत शिक्षक हैं इस तरह मैं उस सेंटर की पहली विद्यार्थी थी धीरे – धीरे अनेक महिलाओं रिटायर्ड अधिकारियों से कक्षा भर गई बच्चों की भी अलग क्लासें लगती थी |
पठत संस्कृत , वदत संस्कृत , लसतु संस्कृत चिरं गृहे गृहे च पुनरपि
के गायन से संस्कृत शिक्षा प्रारम्भ हुई पन्त जी की टेबल पर कई खिलोने सजे थे वह एक – एक कर उनका नाम बताते इसके बाद संस्कृत बोलने की शिक्षा शुरू हुई |बड़ी हैरानी हुई संस्कृत से हम क्यों बचते थे अब पढ़ने और अटक-अटक कर बोलने भी लगे| पन्त जी ने बताया संस्कृत हमारे जीवन से जुडी हुई है हर संस्कार में हम संस्कृत के श्लोक सुनते हैं गीता पाठ में अनुवाद ही पढ़ते हैं फिर भी मूल श्लोक पढ़ने की सभी कोशिश करते हैं जो श्लोक हम अटक – अटक कर बोलते थे अब स्पष्ट होने लगे पन्त जी ने हमें संस्कृत के प्रति गर्व का अहसास कराया हंसते हंसते संस्कृत बोलना भी सीख गये मैं अपनी आने वाली पीढ़ी को भी शुरूआती संस्कृत पढाने में समर्थ हो गयी |विवाह आदि पर जैसे ही पंडित जी गलत श्लोक का उच्चारण करते हैं समझ जाती बाद में उन्हें सही उच्चारण सिखाती चाहूँ तो अपना सदियों पुराना व्यवसाय पंडिताई भी कर सकती हूँ | इसी बीच सेक्टर 25 के शिव शक्ति मन्दिर के आग्रह से अब एक बड़ा कमरा मन्दिर में संस्कृत शिक्षण के लिए उपलब्ध था यहाँ शनिवार और रविवार के दिन सायं 5.30 से 7.30 तक निशुल्क कक्षायें चलती हैं |यह कार्य क्रम सात वर्ष से चल रहा है और अनवरत रूप से चलता रहेगा |
संस्कृत अध्ययन समाप्त हुआ लेकिन जब भी हम संस्कृत के सहपाठी मिलते संस्कृत में बात करते |भगनी या भवान कुत्र गच्छति | जब भी पन्त जी की संस्कृत शाला का समापन समारोह होता सभी सदैव् अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं |अबकी बार जब मुझे संस्कृत शाला के समापन समारोह की सूचना मिली मैं हैरान रह गयी पंडाल में अनेक गणमान्य व्यक्ति बैठे थे मंच पर हर उम्र के लोग संस्कृत में अपनी प्रस्तुतियां दे रहे थे सरलता से गीता पाठ उसका अंग्रेजी और हिंदी में अनुवाद , शक्ति स्तोत्र गणपति वन्दना सुन कर सभी भाव विभोर हो रहे थे | पन्त जी वैसे के वैसे अपने दायित्व के प्रति जागरूक हंसते मुस्कराते हुए अनगिनत लोग उनके द्वारा संस्कृत अध्ययन कर चुके हैं| उनका जन्म 31 जुलाई 1936 में हुआ था वह शास्त्री की परीक्षा पास कर चुके हैं अब आचार्य कक्षा की पढाई कर रहे हैं इस “ वय “ में सम्पर्क कक्षा के लिए नोएडा से जनकपुरी जाते हैं संस्कृत भाषा की वैज्ञानिकता तथा इसमें सन्निहित ज्ञान के लिए वे उन प्राचीन नि:स्वार्थ आचार्यों के प्रति सदैव आभार प्रकट करते हैं इतने विद्यार्थियों को संस्कृत शिक्षा देकर आज भी अपने को भित्ति प्रचार्य कहते हैं तथा हर समय शिक्षण के लिए तत्पर |
डॉ शोभा भारद्वाज

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