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दूरदर्शी डॉ अम्बेडकर के विचार पार्ट – 2

Vichar Manthan
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। डॉ अम्बेडकर ने देश को चेतावनी दी थी |हमारा देश प्रजातांत्रिक गणतन्त्र हैं बहुमत का शासन है ,विरोध का अधिकार है लेकिन किसी भी तरह के विरोध में खूनी क्रान्ति की तरफ देश को नहीं ले जाना चाहिए| देश को आजादी ब्रिटिश सरकार से प्लेट पर नहीं मिली थी | गांधी जी के तरीके के अहिंसात्मक आन्दोलन और सत्याग्रह के भी वह समर्थक नहीं थे अब हम ब्रिटिश सरकार के गुलाम नहीं हैं हमारी अपनी सरकार है सहयोग से देश का निर्माण होता है नहीं तो भयंकर परिणाम भुगतने पड़ेंगे आज हम देख रहें हैं अपनी मांगों को मनवाने के लिए सार्वजनिक सम्पत्ति को नष्ट किया जाता है यहाँ तक यातायात में रेल भी रोक देते हैं देश को रोक देते हैं| छात्रों को क्रांति का नारा देकर भड़काया जाता है | यहाँ तक दीवारों पर लिखा मिलता है सत्ता का जन्म बंदूक की गोली से होता है | किसी भी किस्म की तानाशाही सही नहीं है संविधान के तरीके से देश चलना चाहिए |
भारत में व्यक्ति पूजा का चलन है किसी को भी महान नायक समझ कर अपनी स्वतन्त्रता और अधिकार उसके चरणों में नही डालना चाहिये | सामान्य व्यक्ति का देवीयकरण कर अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी उसे सौंप देते हैं जिससे निर्भरता की आदत उस पर डाल कर कर्तव्यों के प्रति तटस्थ हो जायेंगे इससे व्यक्ति प्रमुख हो जाएगा संविधान की सर्वोच्चत कम हो जाएगी लेकिन व्यक्ति पूजा राजनीति में नहीं चलती किसी को ऊँचा उठाने के लिए आप नीचे गिरते हो |देश ने इंदिरा इज इंडिया के नारे सुने हैं थोपी गयी आपतकालीन स्थिति भी देखी है धर्म में भक्ति चलती है राजनीति में इसकी जगह नही है|
संविधान ने सबको वोट देने का अधिकार दिया है अमीर और गरीब दोनों के वोट का मूल्य एक है लेकिन सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से हम समान नहीं हैं यह केवल राजनीतिक प्रजातंत्र है, आर्थिक और सामाजिक विषमता से गरीब के वोट का महत्व समाप्त हो जाता है प्रजातंत्र भी खतरे में पड़ जाता है लेकिन अब उलटा हो रहा है चुनाव के समय बड़े – बड़े प्रलोभन दिए जाते हैं धन बल से वोट खरीदे जाते हैं संसद में बल और धन से वोट खरीद कर बाहुबली और सम्पन्न लोग संसद में बैठे हैं दलितों को भी वोट बैंक ही समझा जा रहा है| आज बाबा साहब का नाम हर राजनीतिक दल को अजीज है इसलिए नहीं वह महान विचारक थे दलित समाज के उद्धारक थे उनके नाम के साथ वोट बैंक है इसीलिए उनकी 125 जन्म शताब्दी सबको याद है भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विचारक कहते हैं बाबा साहेब उनके हैं वह वर्ग संघर्ष में विश्वास रखते थे जबकि बाबा साहब कम्युनिज्म में लेबर की ताना शाही के कभी समर्थक नहीं थे वास्तव में यह ताना शाही कम्युनिस्टों के लीडर की तानाशाही बन जाती है | संविधान भी उन्हीं के अनुसार गढ़ा जाएगा |
समाजवादी भी उन पर अपना हक जमाने की कोशिश करते हैं लेकिन समाजवादी निजी सम्पति का भी राष्ट्रीयकरण या समाज में उसे बाटने के समर्थक है जबकि बाबा साहेब औद्योगिक करण के समर्थक थे उन्होंने पूरी तरह कृषि आधारित इकोनोमी का समर्थन नहीं किया | उन्होंने संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का समर्थन किया ,राज्य के नीति निर्देशक तत्वों द्वारा अधिकारों की सीमा निर्धारित की | आज के उभरते नेता अधिकारों के विस्तार की बात करते हैं यहाँ तक आजादी – आजादी के नारे लगाये जाते हैं उनके हाथ में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के रूप में देश की निंदा करने की आजादी आ जाए राजनीति चमकाने के किये व्यवस्था परिवर्तन की बात करते हैं |कुछ तो अपने आप को अराजकता वादी कहते हैं | 15 अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार बनी | डॉ अम्बेडकर को देश के पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। ।
भारत में महिलाओं की स्थिति बहुत खराब थी उनकी हालत में सुधार करने के लिये 1951 मे संसद में उन्होंने हिन्दू कोड बिल पेश किया जिससे कानूनी रूप से महिलाओं को अधिकार दिए जायें | इसमें विवाह की आयु , विवाह का टूटना , विरासत , तलाक के बाद गुजारा भत्ता ,पत्नी के जीते जी दूसरी शादी पर प्रतिबन्ध और उत्तराधिकार सम्बन्धी कानून थे हालांकि प्रधानमंत्री नेहरू, कैबिनेट और कई अन्य कांग्रेसी नेताओं ने इसका समर्थन किया पर संसद सदस्यों की एक बड़ी संख्या इसके खिलाफ़ थी |डॉ अम्बेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया बाद में महिलाओं की हालत सुधारने के लिए अनेक कानून बने इसका श्रेय बाबा साहेब को जाता है । ।डॉ अम्बेडकर 1952 में हुये लोक सभा चुनाव उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ा वह हार गये लेकिन मार्च 1952 मे उन्हें राज्य सभा के लिए नियुक्त किया गया और इसके बाद उनकी मृत्यु तक वो इस सदन के सदस्य रहे।
1935 में दिये अपने भाषण में बाबा साहब ने कहा था मैं हिन्दू जन्मा था लेकिन मरुंगा नहीं| उन्हें इस्लाम धर्म में लेने के लिये हैदराबाद के निजाम ने प्रयत्न किया पोप भी उन्हें समझाने आये लेकिन उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली| तथागत ने सभी सुखों का त्याग कर मानव के दुखों का निवारण करने का प्रयत्न किया था अत: गौतम बुद्ध उनके हृदय के समीप थे | डा अम्बेडकर ने 14 अक्तूबर 1956 को 800000 के जन समूह के साथ नागपुर, में बौद्ध धर्मं की दीक्षा ली | बाबासाहेब को सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब देश में सामाजिक चेतना जगेगी सभी एक समान समझे जायेंगे और हम उनके विचारों के मर्म को समझेंगे |
डॉ शोभा भारद्वाज

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