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पारसी जोराष्ट्रीयन एवं ईरानी समाज को नौरोज मुबारक

Vichar Manthan
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भारत एक धर्मनिरपेक्ष , पन्थ निरपेक्ष देश है यहाँ हर धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं हर धर्मावलम्बी अपने त्यौहार ख़ुशी से मनाते हैं अपने मित्रों को आमंत्रित करते हैं जिससे हर संस्कृति को जाना जा सकता है| मुगल काल में अकबर के दरबार में नौरोज का जश्न बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था लेकिन बादशाह औरंगजेब की धर्मान्धता ने हँसी ख़ुशी से मनाये जाने वाले पर्व को बंद करा दिया | जौराष्ट्रीयन मूलतः ईरान के बाशिंदे थे लेकिन इस्लाम के प्रचार प्रसार के लिए अरबों ने 651 ई० में ईरान पर हमला कर दिया |पहले खलीफा हजरत अली लश्कर लेकर आये वह अधिक सख्त नहीं थे लौट गये फिर खलीफा हजरत उमर ने पहले इराक ,फिर ईरान पर कब्जा कर लिया जोराष्ट्रीयन के लिए धर्म संकट का समय था यहाँ के मूल बाशिंदे लोग अग्नि पूजक हैं यहाँ तीन प्रकार की पवित्र अग्नि मानी जाती आज भी ईरान के ‘यज्द ‘ शहर में फायर टेम्पलेट है| उस समय के फायर टेम्पल जिनमे पवित्र अग्नि जलती रहती थी नष्ट कर दिए धार्मिक ग्रन्थ जला दिए गये ईरान के राजवंश ने इस्लाम धर्म कबूल लिया था अत :हर बाशिंदे को धर्म बदलने के लिए मजबूर किया गया यह लोग भाग कर रेगिस्तानों और पहाड़ों में छुप गये काफी लोग भाग कर हर्मोंज की खाड़ी (शतल हार्मोंज )और प्राचीन राज्य पर्शिया में छुप गये| हर्मोंज की खाड़ी में रहने वालों ने 100 बर्षों की मेहनत से पालदार जहाज तैयार किया जिससे अपने वतन से पलायन कर गुजरात के तट पर उतर कर काठियावाड़ ( गुजरात ) में बस गये यहाँ यह पारसी कहलाये |पारसी शब्द का अर्थ पर्शिया से आया बाशिंदा हैं |यह भारत में ऐसे घुल मिल गये जैसे पानी में दूध | कुछ 20% जौराष्ट्रीयन ईरान में रह गये उन्होंने अपना धर्म बचा कर रखा लेकिन इस्लामिक क्रान्ति और इस्लामिक सरकार के बाद उनके धर्म पर फिर से संकट के बादल मंडराने लगे वह फिर से अपनी सरजमीं से पलायन करने के लिए विवश हो गये कई कहते थे मर जायेंगे पर धर्म नहीं बदलेंगे| विश्व में जितनी पारसियों की संख्या हैं उनमें आधे भारत में रहते हैं |
पारसी समाज के कई महापुरुषों ने भारत की आजादी की जंग में हिस्सा लिया जैसे दादा भाई नोरोजी, फिरोज शाह मेहता ,और दिन्शां वाचा |उद्योग जगत का प्रसिद्ध नाम जमशेदजी नौशेरवानजी टाटा हैं ,होमी जहांगीर भामा अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त परमाणु वैज्ञानिक टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च और भारतीय परमाणु आयोग के संस्थापक थे | यही नहीं दाराशां भूगर्भ शास्त्र के जाने माने नाम हैं | दिल्ली में श्राफ आँखों का प्रसिद्ध अस्पताल नेत्र रोग विज्ञान के विशेषज्ञ जमशेदजी नौसेरवानजी ने बनवाया था| जरनल मानिक शाह को कौन नहीं जानता समाज में घुले मिले और भी कई महानुभाव हैं |पारसी समाज के अपने लोगों को कभी गलत राह नहीं दिखाई सबको एक सूत्र में बाँध कर रखा | नोरोज और अपने अन्य धार्मिक पर्वों पर पारसी धर्मशाला में इकठ्ठे हो कर पूजा करते हैं | यह धर्म परिवर्तन में विश्वास नहीं करते लेकिन अपने धर्म के प्रति आस्थावान हैं तभी उन्होंने अपनी मात्र भूमि को छोड़ा था |जोराष्ट्रीयन के प्रॉफिट जरस्थुर के जन्म दिन 24 अगस्त पर पूजन एवम् अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है यह इनका विशेष पर्व है नववर्ष को पारसी समुदाय बड़े हर्ष से मनाते हैं धार्मिक रूप से इसे खौरदाद साल के नाम से जाना जाता है | इनके धर्म में वर्ष में 360 दिन माने जाते हैं शेष पांच दिन वर्ष के समाप्त होने पर अपने पूर्वजों को स्मरण किया जाता हैं | नौरोज को उस धूमधाम से नहीं मना पाते जितना उनके मूल स्थान ईरान की पर्शियन संस्कृति में मनाया जाता है |
पारसियों का नव वर्ष सोलर हिजरी कलंडर के अनुसार बहार (बसंत ) का पहला दिन है जिसे 21 मार्च को पारसी समाज एवं और भी कई देशों में नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है | टर्की ,इराक सीरिया और ईरान और खुर्द समाज नौरोज मनाते हैं केवल खुर्दों का नौरोज मनाने का तरीका कुछ अलग है , खुर्द नोरोज से एक दिन पहले गोरूब ( शाम के ) के समय अग्नि जलाते थे उनके अनुसार एक दिन पहले आग जलाना अंधकार पर विजय प्राप्त करना है , आग के चारो तरफ हाथो में रंग बिरंगे रूमाल लहरा -लहरा कर रक्स (डांस )करते थे ईरान में इस्लामी सरकार आने के बाद इस प्रथा पर बैन लग गया है आग जलाना और रक्स करना धर्म के विरूद्ध माना जाता है फिर भी दूर किसी पहाड़ी पर नौरोज से पहले दिन आग जलती दिखायी देती थी वह आग पर से दूसरी तरफ कूद कर निकल जाते थे |नौरोज में होली का उल्लास लोहड़ी और होलिका का अग्नि पूजन दिखाई देता हैं साथ ही चैत्र मास के नवरात्रों और नये वर्ष का आभास होता है|
मैं कई वर्ष तक ईरान में रही हूँ अत: वहाँ के लोगों के साथ धूमधाम से नौरोज मना करनौरोज की शुभ कामनाओं का आदान प्रदान किया था | बहार अर्थात बसंत आते ही यहाँ पूरी घाटियां फूलों से भर जाती है जमीन पर मुख्यतया लाल फूल (टरुलिप )और उनके बीच में हर रंग के फूलों का गलीचा बिछ जाता है प्रकति की ऐसी छटा देखने लायक होती है| घाटियों में चारो तरफ हरियाली ही हरियाली नजर आती है , पेड़ फूलों से लद जाते हैं फल दार पेंड़ो पर लगा हर फूल, फल होता है ऐसा लगता है जैसे प्रकृति भी नये वर्ष का स्वागत कर रही है | यह त्यौहार सुबह शुरू हो जाता है | हर घर के मेहमान खाने में एक स्थान को विशेष रूप सजाया जाता है , नौरोज से दो हफ्ता पहले चीनी मिट्टी के खूबसूत फूल पत्तियो की नक्काशी वाले कटोरों में गोन्दुम(गेहूं ) या जौ बोया जाता है नौरोज के आते -आते हरी -हरी बालें उग आती है | घर के बीचो बीच रक्खी मेज पर खूबसूरत मेज पोश बिछाया जाता उस पर अंकुरित कटोरे को रख दिया जाता है यह कटोरा और उगी बालों को पौधों एवं वनस्पतियों का प्रतीक माना जाता है |मेज पर पूरी सात वस्तुएं सजाई जाती हैं | एक फ्रेम दार शीशा ,जिसे आकाश का प्रतीक माना जाता है , सीब (सेब)धरती का प्रतीक है हरे कांच के पात्र में मोम बत्तियां सजाई जाती हैं जिन्हें अग्नि का प्रतीक माना जाता है | पात्र में गुलाब जल भर कर रक्खा जाता है यह पानी का प्रतीक है, गोल्ड फिश को पतले कांच के जार में रक्खा जाता है जो पशु का प्रतीक हैं, बड़ीं खूबसूरती से अंडे पेंट कर उन पर चित्र बनाये जाते हैं यह इंसानी जीवन एवं परिवार की वृद्धि की शुभ कामना का प्रतीक हैं |जीवन के पांचो तत्व आकाश ,अग्नि वायू ,जल ,पृथ्वी सब को महत्व दिया जाता है | पूरे परिवार के लोग मेज के चारो तरफ खड़े हो जाते हैं | पवित्र पुस्तक को सम्मान दे कर एक दूसरे के सुखद जीवन की दुआ मांगते हैं और नये वर्ष की शुभ कामना करते हैं ,घर का बुजुर्ग सब को उपहार देते हैं आज भी वहाँ सोने के सिक्के भेंट किये जाते हैं , एक दूसरे को शीरीन ईरानी मिठाई खिलाई जाती है लेकिन वह अपनी प्राचीन परम्परा को भी कभी नहीं भूले थे अत : सब्जे (अंकुरित गेहूं और जो की हरी हरी कोमल बालो की मिठाई ) ,जिसे वहाँ पुनर्जन्म का प्रतीक माना जाता है बनाते हैं | इस्लाम में पुनर्जन्म की धारणा नहीं है परन्तु परम्परा इसी प्रकार से चल रही है गेहूं का मीठा दलिया भी जरुर बनता है | त्यौहार में लोग एक दूसरे के घर मुबारक बाद देने जाते हैं घर आये मेहमानों का स्वागत सत्कार बड़े प्रेम से करते हैं खुशी का माहौल होता है लोग दूसरे शहरो में घूमने भी जाते हैं शाह के समय धनवान लोग विदेश भ्रमण करने जाते थे |
नोरोज का तेरवां दिन सीसदा बदर कहलाता है यह पूरा दिन वह घर से बाहर गुजारते थे अपने घर में कटोरे में बोई हुई खेती को वह प्रवाहित करने नदी के किनारे जाते अपने साथ पूरा पिकनिक का सामान ले कर जाते वे नदी को रूद खाना कहते हैं वहाँ कालीन बिछाई जाती चाय का अलादीन (मिट्टी के तेल से जलने वाला स्टोप ) उसमें चाय की पानी खोलता रहता था हर वक्त चाय हाजिर थी बेहतरीन खाना वह घर से पका कर लाते थे जिसमे हरी सब्जी में पकी मछली ,आब गोश्त ( हरी सब्जी और सफेद चने ड़ाल कर पकाया गोश्त) ,ईरानी जाफरानी चावल लेकिन दलिया और अंकुरित बालों से बनी मिठाई जरूर बनती थी , सूखे फल मेवे और बहुत सी वस्तुये खाने में सजाई जाती थी हर मेहमान को बिफ़रमा (खाने के लिए आपका स्वागत हैं ) कह कर खाने का न्योता दिया जाता था |एक भी व्यक्ति अपने घर पर नहीं रहता था | उनका मानना था नौरोज खुशी से मनाने का दिन है|हँसी ख़ुशी से नौरोज मना कर शाम को अपने घर लौट आते थे भारत और विश्व में पारसियों और जोराष्ट्रीयन को प्रधान मंत्री जी ने अपनी शुभकामनाएं दी तथा अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय तथा संस्कृति मंत्रालय की और से अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जिससे देश की जनता जोराष्ट्रीयन संस्कृति को जान सके |
डॉ शोभा भारद्वाज

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