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‘ भारत ईरान सम्बन्ध ‘ पर्शियन संस्कृति के रंग में रंगे प्रवासी भारतीय

Vichar Manthan
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ईरान के साथ भारत के सम्बन्ध सदैव मधुर रहे हैं | ईरान में सत्ता परिवर्तन के उपरान्त राजनीतिक उथल पुथल के बाद आगा इमाम खुमैनी के निर्देश पर इस्लामिक सरकार ने सत्ता पर कब्जा कर लिया लेकिन कुछ समय के बाद इराक की सद्दाम हुसेन के नेतृत्व वाली सरकार ने ईरान पर हमला कर दिया |ईरान इराक का आपसी युद्ध 1980 से 1988 तक टुकड़ों में चला कई कभी ईरान कुछ इंच आगे बढ़ जाता कभी ईराक जम कर जन हानि हुई लेकिन भारत के दोंनो देशों के साथ सम्बन्ध नही बिगड़े | चीन के इस्लामिक ईरान के साथ व्यापारिक नजदीकियां कभी कम नहीं हुई बढती ही रहीं ,चीन सदैव से अरब की खाड़ी में अपना प्रभाव जमाना चाहता था | पाकिस्तान की विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य भारत विरोध रहा है चीन भी भारत को घेरना चाहता है अत : दोनों देशों ने आपसी सम्बन्ध बढ़ाये ,पाकिस्तान ने 30 वर्ष के लिए ग्वादर का बन्दरगाह चीन को सौंप दिया जिसे चीन ने 46 बिलियन डालर का निवेश कर विकसित किया |इसके लिए पाकिस्तान के आधीन कश्मीर (पीओके) से सडक मार्ग बनाया और रेल मार्ग पर भी काम चल रहा है अब अरब की खाड़ी से सीधा सम्बन्ध है जिससे चीन का सामान कम खर्च में आ जा सकेगा | भारत ने भी कूटनीति का परिचय देते हुए ग्वादर से कुल 72 किलोमीटर की दूरी पर पाकिस्तान के समीप स्थित ईरान के चाबहार पोर्ट के विकास के लिए ईरान से समझौता ही नहीं 1000 करोड़ रूपये का निवेश भी किया | चाबहार प्रोजेक्ट का काम ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर प्रतिबन्ध लगने के कारण बेहद धीमी गति से चल रहा था अमेरिका की लीडर शिप में लगाये गये प्रतिबंधों के बावजूद दोनों देशों के सम्बन्धों में फर्क नहीं आया |ईरान को प्रतिबंधों से काफी परेशानी हुई लेकिन वहाँ की सरकार जनता को कम खर्च में जीवन चलाना सिखाना जानती हैं | दक्षिण पूर्व ईरान में स्थित चाबहार से भारत को समुद्री मार्ग से अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक सामान भेजने का सुरक्षित मार्ग मिल जाएगा | पाकिस्तान अफगानिस्तान को स्वयम माल सप्लाई करना चाहता है | समुद्र के नीचे से गैस की पाईप लाइन जुड़ जाने से भारत को तुर्कमिस्तान ओमान से भी गैस सप्लाई होने लगेगी |चाबहार ऐसा पहला विदेशी बन्दरगाह है जिसके विकास से भारत सीधा जुड़ा हैं विदेश मंत्री सुषमा ईरान के दौरे पर गयी वहाँ उन्होंने ईरान के राष्ट्रपति आगा हसन रूहानी से वार्ता करते समय ईरानी दस्तूर के अनुसार हिजाब का पालन करते हुए साढ़ी पर शाल ओढ़ कर वहां के कानून को पूरा सम्मान दिया भारत और ईरान दोनों की प्राचीन सभ्यतायें हैं |संयुक्त भारत के विभाजन से पूर्व दोनों पड़ोसी मुल्क थे | ईरान में कई भारतीय परिवार रहते थे जो 1920 से ईरान में बस रहे थे उनमे सबसे बड़ी संख्या सिख और गुजरातियों की थी यह 1950 से ईरान की राजधानी ईरान में आकर बसने लगे | ईरान प्राचीन सिल्क रूट का मार्ग भी है जो योरोप तक जाता हैं | गुरु नानक देव इसी मार्ग से मक्का गये थे सिख इस स्थान का बहुत सम्मान करते हैं कहते हैं जब संयुक्त भारत का बटवारा हुआ सन 1947 में जाह्दान के आसपास रहने वाले पंजाब के बाशिंदे यह नहीं जानते थे हिन्दोस्तान किधर है ईरान की सीमा उनके क्षेत्र से जुडी थी इसलिए वह वहीं बस गये और वहीं के हो गये | कहते हैं ईरान और पाकिस्तान की सीमावर्ती शहर जाह्दान का नाम एक सिख के नाम पर रक्खा गया था पहले इस शहर का नाम दूजद आब था ( दूजद आब का फ़ारसी में अर्थ चोर डकैत आब का अर्थ पानी ) पानी के पास बसे चोरों की बस्ती | जाह्दान एक सूखा क्षेत्र है |एक बार ईरान के शाह दुज्द आब प्रदेश गये वहाँ उन्हें एक नेक दिल सरदार जी को सबके साथ रहते देख कर हैरानी हुई उन्होंने इस प्रदेश का नाम उस सिख के नाम पर रख दिया जिन्हें वहाँ के बाशिंदे जहेदस –दा पायस कह कर पुकारते थे अत: प्रदेश का नाम ही जाह्दान हो गया |1925 में यहाँ 180 सिख परिवार बसे हुए थे यह अधितर ट्रांसपोर्टर और ड्राइवर थे | ईरानी क्रान्ति के बाद यहाँ 35 परिवार रह गये | ईरान के के मशहूर ऐतिहासिक शहर इस्फहान में दो परिवार ही रह गये हैं लेकिन तेहरान में 250 परिवार रहते हैं यह अधिकांशतया सिख हैं | 1960 और 70 से 10,ooo भारतीय परिवार र्ईरान में रहते थे जिनमें अधिकतर डाक्टर ,इंजीनियर और टीचर थे जो नौकरी के लिए आये थे |शाह अपने देश वासियों अच्छी स्वास्थ्य सेवा देना चाहते थे अत: जो भी डाक्टर ईरान आये उन्हें सम्मान और सुख सुविधायें दी गयीं लेकिन क्रान्ति के बाद जीवन की रक्षा के लिए अधिकतर परिवार अपने देश लौट गये |
ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी , पहलवी डायनेस्टी के आखिरी शाह थे उन्होंने आर्य मिहिर की उपाधि धारण की थी वह प्रगति शील थे और धार्मिक सम भाव में विश्वास करते थे लेकिन शाह के खिलाफ क्रान्ति का माहौल बना |क्रान्ति को वहाँ के लोग आजादी की लड़ाई कहते थे |शाह के समय ईरान के बड़े शहरों की तरक्की हुई लेकिन गावों की तरह ध्यान नहीं दिया गया अत: शाह के खिलाफ असंतोष बढ़ने लगा अंत में शाह ने अपने वतन की मिट्टी को माथे से लगा कर वतन अलविदा कहा उन्हें मरणोपरान्त वतन में कब्र भी नसीब नहीं हुई उनके साथ ही पहलवी डायनेस्टी समाप्त हो गयी |काफी खून खराबे के बाद इस्लामिक सरकार सत्ता में अब ईरान में डाक्टरों की जरूरत थी ईराक के साथ युद्ध भी हो रहा था अत : मुख्यतया भारत पाकिस्तान और बंगला देश से डाक्टर ईरान में काम करने आये | यह नये सिरे से बदलाव का समय था शाह के समय की संस्कृति के स्थान पर कट्टर पंथियों द्वारा संस्कृति थोपी गयी अचानक वहाँ सब कुछ बदल गया सबसे अधिक महिलाओं के अधिकारों का हनन हुआ वहाँ की महिलाये प्रगतिशील थीं उन पर किसी भी तरह की पाबंदी नहीं थी वह योरोपियन लिवास पहनती थी अब उनको चादर में अपने आप को लपेटना पड़ा हिजाब की पाबंदी को विदेशियों पर भी लागू किया गया | ईरान की बहुसंख्यक जनता शिया है | सुन्नी मात्र 9% हैं खुर्दिस्तान में खुर्द रहते हैं | ईरानी स्वभाव से मेहमान नवाज हैं उन्होंने कभी सोचा नहीं था उन्हें ऐसी आजादी मिलेगी सब कुछ बदल जाएगा हर ईरानी के हाथ में माला दिखायी देती थी जिसके मनकों से वह खेलते रहते थे |तेहरान में सिखों का गुरुद्वारा है यहीं एम्बेसी का स्कूल हैं यहाँ भारतीय बच्चे पढ़ते हैं | ईरान में सात वर्ष का बच्चा स्कूल जाता है भारतीयों के बच्चों के लिए एम्बेसी के स्कूल के स्थान गुरूद्वारे में क्लासे लगती हैं | स्कूल में सी.बीएस.सी का पाठ्क्रम पढाया जाता है लेकिन पेपर हिन्दुस्तान से आते हैं जो लोग तेहरान में नहीं रहते वह घर में बच्चों को पढाते हैं इम्तहान के लिए तेहरान ले जाते हैं पाकिस्तानी बच्चे इंग्लिश और उर्दू माध्यम से पढ़ते हैं |वह भी अपने बच्चों को ईरानी मदरसों में पढाना पसंद नही करते | सिख समुदाय के लोग यहाँ अपने देश की तरह रहते हैं उनमें आपस में विवाह सम्बन्ध भी हुये शायद आनन्द काज | एक बार एक सिख परिवार में जाने का अवसर मिला परिवार का मुखिया केवल रंगरूप में भारतीय था बाकी सब कुछ ईरानी तहजीब में रंगा हुआ सुषमा जी तेहरान यात्रा के दौरान गुरूद्वारे भी गयीं |इस समय प्रवासियों की चौथी और पाँचवी पीढ़ी रहती है लेकिन अभी तक वह भारतीय नागरिक हैं जिससे ईरानियों को मिलने वाले अधिकारों से वंचित हैं वह ईरान की नागरिकता चाहते हैं |वहाँ प्रवासियों को सम्पत्ति खरीदने का अधिकार नहीं है व्यापार में भी निवेश करने के लिए ईरानी पार्टनर चाहिए | पूर्व प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह के ईरान की यात्रा के दौरान प्रवासियों ने उनके सामने अपनी समस्या को रखा था | भारतीय कम्पनियां ईरान में कोल , गैस, रेल की पटरियां बिछाने ,शिपिंग और खेती बाड़ी के काम में .निवेश की इच्छुक है जिसके अवसर भी कम नहीं हैं |तेल की कीमते घटने के बाद ईरान अन्य क्षेत्रों में विकास के अवसर ढूंड रहा हैं साथ ही अपने क्षेत्र की शिया शक्ति बनना चाह रहा है | सुन्नी सद्दाम के पतन के बाद इराक में शान्ति नहीं है फिर भी शियाओं की सरकार है|
डॉ शोभा भारद्वाज

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