भारतीय रेलगाड़ियों की एक विशिष्ट पहचान है कि यह पूरे भारत को जोड़ती है. लेकिन इससे इतर इसकी लेटलतीफी भी इसकी विशिष्ट पहचान बन चुकी है. यात्रा के दौरान रेलगाड़ियों में कई कहानियों का जन्म वहीं होता है जिनमें से कुछ किस्से अल्पकालिक सीख का कारण बनती है तो कुछ जीवन में महत्तवपूर्ण बदलाव का वाहक. ऐसी ही एक कहानी मुकेश की है. मुकेश ने रेल में यात्रा के दौरान एक ऐसा वाकया देखा जिसने उसकी सोच और ज़िंदगी को ही बदल कर रख दिया. पढ़िए मुकेश की दिल को छू लेने वाली सच्ची कहानी……
मुकेश पहली बार छह महीने बाद पटना से घर जा रहा था. पटना जंक्शन पर सीमांचल एक्सप्रेस 10:40 पर आती थी. आठ बजकर तीस मिनट पर वो घर से सामान लेकर पास के होटल में पहुँच गया. खाना खाने के बाद पैसा चुकाकर वो टैम्पो से पटना जंक्शन पहुँच गया. वहाँ जब उसने उद्घोषणा सुनी तो पता चला कि उसकी रेलगाड़ी रात्रि के एक बजे तक प्लेटफॉर्म पर आ सकती है और उसका मार्ग भी बदल दिया गया था.
Read: ना उड़ाया मजाक, ना दिया एक-दो का सिक्का, सीधे बना दिया भिखारी से टॉफी मैन
यूँ ही स्टेशन पर घूमते हुए उसने पूछताछ केंद्र पर गाड़ी के लेट होने का कारण पूछा तो पता चला कि खगड़िया स्टेशन की पटरी पर कुछ समस्या के कारण इस गाड़ी को मालदा होते हुए कटिहार ले जाया जाएगा. इसका मतलब था कि अपने घर पहुँचने में तकरीबन नौ से दस घंटे अधिक लग जाएँगे. निराशा तो हुई लेकिन जाना तो इसी गाड़ी से था. तीन-चार घंटों के इंतज़ार के बाद रेलगाड़ी आई. अपनी सीट खोज कर मुकेश उस पर बैग को एक तरफ रख पैर फैला कर लेट गया. निचली खिड़की वाली सीट पर लेटे-लेटे उसकी आँख लग गई और जब वो जगा तो गाड़ी फरक्का नदी को पार कर रही थी.
कुछ घंटों बाद गाड़ी मालदा स्टेशन पहुँच गई. मुकेश को भूख लगी थी सो उसने आस-पास नज़रें दौड़ाई. गाड़ी के मालदा स्टेशन पर पहुँचने से पहले ही एक मूँगफली बेचने वाला वहाँ से गुजर चुका था. जिन लोगों ने मूँगफली खाई थी उनमें से बहुतों ने उसके छिलके सीट के नीचे ही फेंक दिए थे. फटे-पुराने कपड़े पहने एक आठ-नौ साल का लड़के ने उसे अपनी झाड़ू से साफ कर शौचालय के पास सरका दिया था. मुकेश ने पास से अमरूद लेकर गुजर रहे एक हॉकर को आवाज़ दी. झटपट से अमरूद वाले ने अमरूद काट कर दिये और उसके कटे हुए ऊपरी काले हिस्से को शौचालय के पास वहीं फेंक दिया, जहाँ पर पहले से मूँगफली के छिलके पड़े हुए थे. अपने बीस रूपए लेकर अमरूद वाला दूसरे डिब्बे में चला गया.
अभी मुकेश ने अपना अमरूद खत्म किया ही थी कि उसकी नज़र शौचालय के पास पड़ी. उसने देखा एक गंदा-सा आदमी जिसकी हड्डियों को नंगी आँखों से गिना जा सकता था, वहाँ पड़े उन छिलकों के ढ़ेर में से कुछ चुन कर खा रहा था. शायद वो छिलकों में से मूँगफली के दाने ढ़ूँढ़ कर खा रहा था. मुकेश ने एक नज़र आस-पास दौड़ाई. वहाँ बैठे सभी लोग खा रहे थे लेकिन उस गंदे दिखने वाले आदमी ने किसी से कुछ नहीं माँगा और न ही किसी की नज़रों में वह आया. मुकेश से वो दृश्य देखा नहीं गया. पहले वो यह मान कर चलता था कि ऐसे लोग आलसी होते हैं और जानबूझ कर भीख माँगने का नाटक करते हैं. इसलिए वह राह में मिलने वाले भिखारियों को कभी कुछ नहीं देता था.
Read: देखा है कहीं आदमी ऐसा!
लेकिन उस भिखारी को देख कर उसकी आँखें नम हो गई. वह कुछ सोचकर प्लेटफॉर्म पर उतर गया. आस-पास देखा तो उसे एक रोटी-सब्जी बेचने वाला दिखाई दिया. मुकेश ने उसे आवाज़ देकर पास बुलाया और दस रूपये की रोटी-सब्जी खरीद कर उस गंदे-से दिखने वाले आदमी को दिया. उस आदमी ने जल्दी से रोटी-सब्जी लेकर खाना शुरू कर दिया. मुकेश उसे खाते देखता रहा. रोटी-सब्जी खाते समय उस गंदे-से आदमी के चेहरे पर तृप्ति के जो भाव उभरे उसने मुकेश को अंदर तक झकझोर दिया. अचानक उसे महसूस हुआ कि उसके विचार कितने तुच्छ थे! उस दिन के बाद से वह ऐसे भिखारियों को कुछ न कुछ खरीद कर खाने को जरूर देता है. Next……
Read more:
Read Comments