एक लड़का हमेशा भागता-दौड़ता रहता था. कभी कहीं नौकरी करता था और कभी कहीं. उसकी जिन्दगी में एक पल भी ऐसा नहीं होता था जब वो राहत की सांस ले सके पर उसे एक ऐसी लड़की की तलाश थी कि जब उस लड़के के पास समय हो तो उसके साथ डिस्को जा सके और प्यार भरी बातें कर सके. बड़ा नसीब वाला था वो लड़का उसे ऐसी लड़की मिल भी गई पर फिर अचानक…… यह कहानी जरूर पूरी होगी बस एक इंतजार !!
भागती दौड़ती जिन्दगी में…..
जिन्दगी हमेशा भागती-दौड़ती रहती है पर शायद ही इस जिन्दगी की रफ्तार कभी रुकती है. क्यों ऐसा होता है कि जिन्दगी की रफ्तार को रोकने के लिए हम वो सब कुछ चाहने लगते हैं जो हमें भले ही सुकून न दे पर मौज-मस्ती दे सके.
मौज-मस्ती की लालसा हमें ऐसे रिश्ते बनाने पर मजबूर कर देती है जो हमारे साथ मौज-मस्ती तो करते हैं पर जब हमें साथ की जरूरत होती है तो ऐसे रिश्ते टूट जाते हैं. मौज-मस्ती वाले रिश्ते केवल मौज-मस्ती की दुनिया तक सीमित होते हैं और हमसे मौज-मस्ती ना मिलने पर किसी और से जुड़ जाते हैं जहां उन्हें मौज-मस्ती मिल सके.
खुद के साथ यह खेल क्यों ?
व्यक्ति को शायद पता भी नहीं होता है पर सच तो यह है कि वो खुद के साथ ही खेल रहा होता है. उसे दिल के किसी कोने से आहट होती है कि ‘यह जो तुझे प्यार भरे रिश्ते नजर आ रहे हैं यह बस कुछ समय के हैं क्योंकि तेरे दिल को पता है कि जब तू अकेला होगा तो तेरे बनाए हुए इन झूठे रिश्तों में से एक भी रिश्ता तेरे पास नहीं होगा’. यह सब कुछ जानने के बाद भी पता नहीं क्यों फिर व्यक्ति अपने साथ किसी और को यह खेल खेलने देता है या फिर खुद ही वह झूठे रिश्तों का खेल खेलता है. बहुत बार ऐसा लगता है कि व्यक्ति के पास जैसे हजारों खिलौने हों झूठे रिश्तों के और वह उनमें से एक-एक खिलौने उठाता हो फिर झूठे रिश्तों का खेल खेलता हो.
झूठे रिश्तों की अंतहीन गहराइयों पर चमक-दमक, चकाचौंध और भ्रम का ऐसा जाल पड़ता है जिससे जिन्दगी नर्क से भी बदतर बन जाती है. अपनी उलझनों को सुलझाते हुए लोग इस उधेड़बुन के साथ ही अपनी इहलीला समाप्त कर लेते हैं. ‘क्या जीवन की यही सच्चाई है और क्या अपनी अनमोल जिन्दगी के साथ खिलवाड़ करना सही है’? इन बातों पर चर्चा जारी रहेगी…………………. ऊपर लिखी कहानी को पूरा जानने के लिए पढ़े ‘जागरण जनशन’ का 14 अगस्त 2012 का सोशल इश्यू ब्लॉग.
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