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गलती बनी गुनाह, मुकर्रर हुई सजा ए मौत !

ऐसी महिलाएं जिन्होंने अपनी इच्छाएं तो पूरी कीं पर फिर अपने आप को तबाह भी कर लिया !!


deathकुछ बातें सुनने में बहुत आसान लगती हैं पर समझने में नहीं. आज का समय ऐसा है कि व्यक्ति अपनी हर इच्छा को पूरा करना चाहता है, चाहे शर्त जो भी हो. इच्छाओं की अचानक याद इसलिए आई है क्योंकि हमारे सामने कुछ ऐसी घटनाओं की सूचनाएं आई हैं जिन्होंने इस बात पर सोच-विचार करने को विवश कर दिया है कि आखिरकार व्यक्ति की इच्छाओं की सीमाएं क्या हैं और क्यों व्यक्ति कुछ इच्छाओं को पूरा करने के लिए किसी भी हद को पार करने के लिए तैयार हो जाता है. यहां तक कि उसे अपने भविष्य के बारे में भी एक बार ख्याल नहीं आता है कि कहीं जो कदम वो इच्छाओं की पूर्ति की लालसा में उठा रहा है वो भविष्य में उसकी जिन्दगी तो बर्बाद नहीं कर देगा.


अनुराधा बाली की संदेहास्पद हालत में मौत और दिल्ली की एयरहोस्टेस गीतिका की मौत ने आज समाज को फिर से सवालों के घेरे में घेर लिया है कि क्या महिलाएं आज भी समाज में केवल उपभोग की नजर से देखी जाती हैं. शायद हां, क्योंकि पहले महिला को उपभोग की नजर से देखा जाता है और फिर उपभोग किया जाता है. अंत में उपभोग हो जाने पर वस्तु के समान फेंक दिया जाता है. इस बात को आज नकारा नहीं जा सकता है कि कुछ महिलाएं अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए किसी भी हद को पार करने के लिए तैयार हैं पर यदि वो गलती करती हैं तो यह हक किसने पुरुषों को दिया कि वो समाज का प्रधान बनकर महिलाओं की गलती की सजा तय करें.


रंगीनी है छाई….फिर भी है तन्हाई


हमारा समाज आज भी पुरुष प्रधान ही है. यदि पुरुष अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए हर हद को पार करता है तो वो सिर्फ गलती है, वो भी ऐसी गलती जिसकी सजा नहीं है पर यदि यही हद महिलाएं पार करती हैं तो वो गलती नहीं गुनाह है जिसकी सजा पुरुष प्रधान समाज देता ही है. हमारे पुरुष प्रधान समाज में मर्द पहले महिला के जिस्म का उपभोग करते हैं और फिर अपनी इच्छाओं की प्राप्ति होने पर उसकी जिन्दगी को ही तबाह कर देते हैं. इस सच के साथ जो एक सच जुड़ा है वो यह है कि महिलाएं अपनी इच्छाओं की हद इतनी क्यों पार कर लेती हैं कि वो अपने जिस्म को एक उपभोग की वस्तु बना देती हैं. आखिरकार महिलाओं को यह सोचना होगा कि कुछ महिलाओं के ऐसा करने के चलते समाज में सभी महिलाओं को उपभोग की नजर से देखा जाने लगता है.


आज मनुष्य ने रिश्तों को वो बाजार बना दिया है जिसमें अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए रिश्ते जोड़े जाते हैं और इच्छाओं की पूर्ति होने पर रिश्ते तोड़े भी जाते हैं. हां, एक बात और….यदि रिश्ते टूट नहीं पाए तो उन्हें मिटाया भी जाता है. ये बस रिश्तों का एक बाजार है, जहां रिश्ते समानों की तरह खरीदे तो जाते हैं पर कीमत अदा होने पर जिन्दगी से बाहर निकाल दिए जाते हैं.



बेवफाई का दर्द सहन नहीं कर पाईं सुनंदा पुष्कर


शायद सुनंदा पुष्कर की कहानी भी कुछ ऐसी ही है

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