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हमेशा सही नहीं होता ‘सॉरी’ बोलना! इन मौकों पर सॉरी कहने से करें परहेज

हर बात के लिए खुद को दोषी मानते हुए बार-बार सॉरी बोलने की आदत आपके व्यक्तित्व और रिश्तों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है।
यह कार आपकी है? सॉरी, मैं इसे यहां से हटा लेता हूं…अरे ! मैं तो बस, यूं ही पूछ रहा था…। आपने भी महसूस किया होगा कि कुछ लोगों की अतिशय विनम्रता की वजह से दूसरों को बड़ी उलझन होती है। ऐसे लोगों को खुद भी अंदाज़ा नहीं होता कि इससे उनके व्यक्तित्व और रिश्तों पर कितना गलत असर पड़ता है।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal10 Sep, 2019

 

 

कमज़ोर पड़ता मनोबल
हमेशा स्वयं को दोषी समझने की आदत व्यक्ति के मनोबल को कमज़ोर बना देती है और वह आत्महीनता का शिकार हो जाता है। बचपन में जिन लोगों के साथ बहुत ज्य़ादा सख्ती बरती जाती है या जिनके पेरेंट्स ओवर प्रोटेक्टिव होते हैं, बड़े होने के बाद ऐसे लोगों का आत्मविश्वास कमज़ोर पड़ जाता है। ऐसे लोगों के मन में हमेशा इस बात की आशंका बनी रहती है कि मेरी इस बात से दूसरा व्यक्ति नाराज़ न हो जाए। किसी विषय पर निर्णय लेने से पहले ऐसे लोग अपनी प्राथमिकताओं के बजाय दूसरों की प्रतिक्रिया के बारे में ज्य़ादा सोचते हैं। इसी वजह से ये जीवन में कोई भी जोखिम उठाने को तैयार नहीं होते और हमेशा सुरक्षित रास्ते पर चलना चाहते हैं। इससे इनका आत्मविश्वास कमज़ोर हो जाता है।

 

 

रिश्तों के लिए घातक
रोज़मर्रा के व्यवहार में लोगों के बीच कई तरह की बातें होती हैं। ऐसे में दूसरों से थोड़ी शिकायत, असहमति, रोक-टोक और हंसी-मज़ाक का होना स्वाभाविक है। बातचीत के बाद अकसर लोग यह सब भूल कर अपने रोज़मर्रा के कामकाज में व्यस्त हो जाते हैं लेकिन जो व्यक्ति अति संवेदनशील होता है उसे छोटी-छोटी बातों पर घंटों सोचने की आदत होती है। ऐसे लोग पूरी बातचीत खत्म होने के बाद भी दूसरे को किसी पुराने प्रसंग की याद दिलाकर उससे माफी मांगने लगते हैं। इससे जो व्यक्ति अच्छे मूड में होता है, उसे भी बहुत झल्लाहट होती है, फिर  संबंध खराब हो जाते हैं। ऐसी आदत लोगों के दांपत्य जीवन के लिए भी नुकसानदेह होती है। इससे पति-पत्नी के आपसी रिश्ते की सहजता खत्म हो जाती है क्योंकि ऐसे लोग अपने लाइफ पार्टनर से भी यही उम्मीद रखते हैं कि वह भी छोटी-छोटी बातों के लिए उनसे माफी मांगे।

 

अपनी खुशी है अहम
अपने आसपास के लोगों को खुश रखने और उनसे प्रशंसा पाने की चाह में ऐसे लोग हमेशा दूसरों के बारे में ही सोच रहे होते हैं। वक्त बीतने के बाद इनके जीवन में एक दौर ऐसा भी आता है, जब इन्हें यह एहसास होता है कि ‘मैं ही सबके लिए इतना कुछ करता/करती हूं लेकिन किसी को मेरी ज़रा भी परवाह नहीं, सब हमेशा खुश रहते हैं, केवल मैं ही दुखी हूं। ऐसी नकारात्मक सोच व्यक्ति को डिप्रेशन और एंग्ज़ायटी डिसॉर्डर जैसी गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्याओं की ओर भी ले जाती है। इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि आप अपने लिए भी थोड़ा वक्त जरूर निकालें और अपनी खुशियों के लिए जीना सीखें।…Next 

 

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