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बाल यौन शोषण के बढ़ते मामलों को देखते हुए 2012 में बना था ‘पॉक्सो एक्ट’, एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते आप भी जरूर जानें

कहते हैं कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं। उनके मन की कोमलता को देखकर किसी के मन में भी सकरात्मकता का संचार हो सकता है। कई सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि अगर आप किसी बात से परेशान हैं या आपका मूड खराब है तो आप किसी बच्चे के साथ वक्त बीता सकते हैं इससे आपका तनाव दूर होता है। जरा सोचिए! बच्चे कितने सकरात्मक होते हैं लेकिन आज के दौर में तनाव को दूर करने वाले ये नन्हे फरिश्ते असुरक्षा और डर के वातावरण के बीच जीने को मजबूर हो चुके हैं। बढ़ते बाल यौन शोषण के मामलों को देखकर यह बात बिल्कुल सही लगती है। आप किसी भी न्यूज चैनल, पोर्टल या अखबार को उठा लीजिए, आपको कुछ महीनों के बच्चे से लेकर हर उम्र के बच्चों से यौन शोषण से जुड़ी घटनाएं पढ़ने को मिल जाएगी। ऐसे ही मामलों की बढ़ती संख्या देखकर सरकार ने वर्ष 2012 में एक विशेष कानून बनाया था- जो बच्चों को छेड़खानी, बलात्कार और कुकर्म जैसे मामलों से सुरक्षा प्रदान करता है।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal10 Jun, 2019

 

Image : abc.net.au

 

क्या है ‘पॉक्सो एक्ट’
पॉक्सो शब्द अंग्रेजी से लिया गया है। इसका पूर्णकालिक मतलब होता है प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 यानी लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012, इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है। यह एक्ट बच्चों को सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है।

 

 

क्या है सजा
वर्ष 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है। जिसका कड़ाई से पालन किया जाना भी सुनिश्चित किया गया है। इस अधिनियम की धारा 4 के तहत वो मामले शामिल किए जाते हैं जिनमें बच्चे के साथ दुष्कर्म या कुकर्म किया गया हो। इसमें सात साल सजा से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड भी लगाया जा सकता है।

 

 

‘पॉक्सो एक्ट’ में कौन से मामले होते हैं शामिल
पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के अधीन वे मामले लाए जाते हैं जिनमें बच्चों को दुष्कर्म या कुकर्म के बाद गम्भीर चोट पहुंचाई गई हो। इसमें दस साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इसी प्रकार पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है। इसके धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध हो जाने पर पांच से सात साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।

 

 

18 साल से कम उम्र में बच्चों के खिलाफ किया गया अपराध
पॉक्सो एक्ट की धारा 3 के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट को भी परिभाषित किया गया है। जिसमें बच्चे के शरीर के साथ किसी भी तरह की हरकत करने वाले शख्स को कड़ी सजा का प्रावधान है। 18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का यौन व्यवहार इस कानून के दायरे में आ जाता है। यह कानून लड़के और लड़की को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है। इस कानून के तहत पंजीकृत होने वाले मामलों की सुनवाई विशेष अदालत में होती है।…Next

 

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