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ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे स्‍वामी विवेकानंद के सामने भेजी गई वेश्‍या तो माफी मांगने पहुंचे राजा

दुनियाभर में युवाओं के प्रेरणास्रोत स्‍वामी विवेकानंद को महापुरुष का दर्जा हासिल है। उनके विचारों को हर भारतीय अपने आचरण में शामिल करने के लिए प्रयासरत है। स्‍वामी विवेकानंद ने अमेरिका में भाषण देकर बता दिया था भारत विश्‍व गुरु है। अपनी युवावस्‍था में ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे स्‍वामी विवेकानंद के समक्ष वेश्‍या भेजे जाने की भूल होने के बाद स्‍वयं राजा माफी मांगने पहुंचे थे।

Rizwan Noor Khan
Rizwan Noor Khan11 Jan, 2020

 

 

 

 

सांसारिक सुखों को त्‍याग अध्‍यात्‍म की ओर
भारत के महापुरुष स्‍वामी विवेकानंद का जन्‍म 12 जनवरी 1863 में कोलकाता में हुआ था। स्‍वामी विवेकानंद के जन्‍मदिन को राष्‍ट्रीय युवा दिवस के तौर मनाया जाता है। आध्‍यात्मिक शक्तियों वाले स्‍वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था। ज्ञान का भंडार रखने वाले विवेकानंद ने किशोरावस्‍था में ही दुनिया की कई भाषाएं सीख ली थीं। उन्‍होंने अपने आध्‍यात्‍म की रुचि को सही दिशा देने के लिए स्‍वामी रामकृष्‍ण परमहंस के सानिध्‍य में चले गए। इस दौरान उन्‍होंने सांसारिक सुखों को त्‍यागकर जीवन की सही दिशा और उसके उद्देश्‍य प्राप्ति में जुट गए।

 

 

 

ब्रह्मचर्य का पालन और सन्‍यास
स्‍वामी बनने से पहले विवेकानंद ने किशोरावस्‍था में ब्रह्मचर्य का पालन शुरु कर दिया। इस दौरान उन्‍होंने खूब ख्‍याति हासिल की। वह घूम घूमकर लोगों को शिक्षित करने लगे। इसी क्रम में वह जयपुर पहुंचे तो वहां के राजा ने उन्‍हें सत्‍कार करने का सौभाग्‍य देने की विनती की। राजा की विनती को स्‍वीकार कर वह महल जा पहुंचे और एक कमरे में विश्राम करने लगे। यहां पर उन्‍होंने राजा की तमाम चिंताओं की मुक्ति का रास्‍ता बताया और राजपरिवार के लोगों को जीवन का सही रास्‍ता और उद्देश्‍य समझाया।

 

 

 

 

वेश्‍या मिलने की जिद पर अड़ी
सन्‍यासी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित राजा के करीबी सलाहकारों ने विवेकानंद को खुश करने के लिए राज्‍य की सबसे खूबसूरत वेश्‍या को उनके कमरे के दरवाजे पर भेज दिया। वेश्‍या के आने पर सन्‍यासी विवेकानंद अचंभित हो गए और वेश्‍या के निवेदन पर भी उन्‍होंने दरवाजा नहीं खोला। विवेकानंद अभी युवावस्‍था में पहुंचे ही थे और वह अपनी इंद्रियों को पूरी तरह वश में करना नहीं सीखे थे। ब्रह्मचर्य टूट न जाए इसलिए उन्‍होंने वेश्‍या को कमरे के अंदर नहीं आने दिया।

 

 

 

 

राजा ने माफी मांगी
इस घटना का जब राजा को पता चला तो वह परिवार समेत दौड़ता हुआ सन्‍यासी विवेकानंद के कमरे पर पहुंचा। राजा ने विवेकानंद से क्षमा मांगते हुए उसे माफ करने की विनती की। विवेकानंद से मिलने की जिद लेकर वहां ठहरी वेश्‍या से मिलने के लिए राजा ने विवेकानंद से विनती की। राजा और वेश्‍या की याचना पर करुणा दिखाते हुए विवेकानंद वेश्‍या के सामने आए और उसे सही मार्ग अपनाने का उपदेश दिया। बाद में वह वेश्‍या सन्‍यासी बनकर भगवान की भक्ति में लीन हो गई। जानकारों के मुताबिक स्‍वामी विवेकानंद ने अपनी डायरी में इस घटना का जिक्र किया है।

 

 

 

 

अमेरिका समेत दुनियाभर में विख्‍यात हुए
स्‍वामी विवेकानंद ने 1897 में रामकृष्‍ण मठ की स्‍थापना की और रामकृष्‍ण मिशन में जुट गए। विवेकानंद ने अमेरिका के न्‍यूयार्क में वेदांता सोसाइटी का गठन भी किया। उनके अथाह ज्ञान के चलते उन्‍हें वेदांत का अद्वेता भी कहा गया। विवेकानंद ने राज योग, कर्म योग, भक्ति योग, जनना योग, माई मास्‍टर, लेक्‍चर्स फ्रॉम कोलंबो टू अल्‍मोड़ा जैसी कई प्रसिद्ध पुस्‍तकों को भी लिखा। बंगाल के बेलुर मठ में 4 जुलाई 1902 को स्‍वामी विवेकानंद का निधन हो गया।…NEXT

 

 

 

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