Menu
blogid : 316 postid : 1389279

जब उस्‍ताद बिस्मिल्‍लाह खां को ‘बाबा’ ने दिया दर्शन, मंदिर में कर रहे थे रियाज

बिस्मिल्‍लाह खां का नाम आते ही शहनाई की मधुर धुन याद आ जाती है और शहनाई का नाम लेते ही बिस्मिल्लाह खां साहब का अक्स उभरता है। वे शहनाई का पर्याय थे। पिछले करीब सात दशक में जब भी शहनाई गूंजी, बिस्मिल्लाह खां ही याद आए। वे आगे भी याद आएंगे और हमेशा याद आएंगे, क्योंकि बिस्मिल्लाह खां जैसे फनकार सदियों में होते हैं। उनमें बनारसी ठसक और मस्‍ती पूरी तरह भरी थी। मुस्लिम समुदाय में जन्‍मे बिस्मिल्‍लाह खां मंदिर में रियाज करते थे और सरस्‍वती मां की पूजा करते थे। आज इस महान फनकार का जन्‍मदिवस है। आइये इस मौके पर आपको उनके मंदिर में रियाज का एक किस्‍सा बताते हैं, जब ‘बाबा’ ने उन्‍हें दर्शन दिया था।

 

 

खुद बताते थे एक दिलचस्‍प किस्‍सा

उस्‍ताद बिस्मिल्‍लाह खां का जन्‍म 21 मार्च को बिहार के डुमरांव में एक पारंपरिक मुस्लिम परिवार में हुआ था। हालांकि, उनके जन्‍म के वर्ष के बारे में मतभेद है। कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्‍म 1913 में हुआ था और कुछ 1916 मानते हैं। उनका नाम कमरुद्दीन खान था। वे ईद मनाने मामू के घर बनारस गए थे और उसी के बाद बनारस उनकी कर्मस्थली बन गई। उनके मामू और गुरु अली बख्श साहब बालाजी मंदिर में शहनाई बजाते थे और वहीं रियाज भी करते थे। यहीं पर उन्‍होंने बिस्मिल्‍लाह खां को शहनाई सिखानी शुरू की थी। बिस्मिल्‍लाह खां अपने एक दिलचस्‍प सपने के बारे में बताते थे, जो इसी मंदिर में उनके रियाज करने से जुड़ा है। एक किताब में उनकी जुबानी ये किस्सा है। इसके मुताबिक, उनके मामू मंदिर में रियाज के लिए कहते थे और कहा था कि अगर यहां कुछ हो, तो किसी को बताना मत।

 

 

उस्‍ताद को इस तरह ‘बाबा’ ने दिया दर्शन

बिस्मिल्लाह साहब के मुताबिक, ‘एक रात मुझे कुछ महक आई। महक बढ़ती गई। मैं आंख बंद करके रियाज कर रहा था। मेरी आंख खुली, तो देखा हाथ में कमंडल लेकर ‘बाबा’ खड़े हैं। दरवाजा अंदर से बंद था, तो किसी के कमरे में आने का मतलब ही नहीं था। मैं रुक गया। उन्होंने (बाबा) कहा बेटा बजाओ, लेकिन मैं पसीना-पसीना था। वे हंसे, बोले खूब बजाओ… खूब मौज करो और गायब हो गए। मुझे लगा कि कोई फकीर घुस आया होगा, लेकिन आसपास सब खाली था।’ बिस्मिल्लाह साहब घर गए। उन्‍होंने अपने मामू को इसके बारे में बताया। उनके मुताबिक, मामू समझ गए थे कि क्या हुआ है। यह वाकया बताने के बाद बिस्मिल्‍लाह साहब को थप्पड़ मिला, क्योंकि मामू ने कुछ भी होने पर किसी को बताने से मना किया था। बता दें कि बनारस में ‘बाबा’ विश्‍वनाथ जी को कहते हैं।

 

 

हमेशा मां सरस्वती को पूजते थे

बिस्मिल्लाह साहब की इस कहानी की सच्चाई सिर्फ वही जानते होंगे, लेकिन जिस संस्कृति को वो मानते थे, उसे बताने का काम यह किस्सा करता है। शिया मुस्लिम होने के बावजूद वे हमेशा मां सरस्वती को पूजते थे। उनका मानना था कि वे जो कुछ हैं, वो मां सरस्वती की कृपा है। करीब 70 साल तक बिस्मिल्लाह साहब अपनी शहनाई के साथ संगीत की दुनिया पर राज करते रहे। आजादी के दिन लाल किले से और पहले गणतंत्र दिवस पर शहनाई बजाने से लेकर उन्होंने हर बड़ी महफिल में तान छेड़ी। उन्होंने एक हिंदी फिल्म ‘गूंज उठी शहनाई’ में भी शहनाई बजाई, लेकिन उन्हें फिल्म का माहौल पसंद नहीं आया। बाद में एक कन्नड़ फिल्म में भी शहनाई बजाई। ज्यादातर बनारसियों की तरह वे इसी शहर में आखिरी सांस लेना चाहते थे। 17 अगस्त 2006 को वे बीमार पड़े। उन्हें वाराणसी के हेरिटेज अस्पताल में भर्ती कराया गया। दिल का दौरा पड़ने की वजह से वे 21 अगस्त को दुनिया से रुखसत हो गए…Next

 

Read More:

2019 के लिए ऐसी होगी भाजपा की रणनीति, मुश्किल में पड़ सकती है सपा-बसपा की दोस्ती

घर में लगाई है मेड, तो खुलवाना पड़ेगा सोशल सिक्‍योरिटी अकाउंट!

बॉलीवुड की लाइमलाइट से दूर रहने वाले 5 स्टार किड्स, जिन्‍हें शायद ही जानते हों आप

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh