वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करने की अंतिम तैयारियों में लग गई हैं। शानदार जीत के बाद यह मोदी सरकार 2.0 का पहला बजट है, इसलिए लोगों को इससे काफी उम्मीदें हैं। अब बजट आम लोगों की उम्मीदों पर कितना खरा उतरता है, इसका पता तो कल ही चलेगा। बहरहाल, बजट को समझना हर किसी के लिए आसान नहीं होता क्योंकि इससे जुड़े कई ऐसे कई शब्द होते हैं, जिसके बारे में ज्यादातर लोग नहीं जानते। ऐसे में अगर इन पहलुओं और शब्दों को समझ लिया जाए, तो बजट समझना आसान हो जाता है।
आम बजट और अंतरिम बजट
बजट सरकार के सालाना खर्च का ब्यौरा होता है। इसके जरिए सरकार की प्राप्तियों और खर्च का लेखा-जोखा पेश किया जाता है। चुनाव वाले साल के दौरान अंतरिम बजट पेश किया जाता है, अन्यथा केंद्र सरकार हर साल आम बजट पेश करती है।
सेंट्रल प्लान आउटले
यह बजटीय योजना का वह हिस्सा होता है, जिसके तहत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के लिए संसाधनों का बंटवारा किया जाता है।
डायरेक्ट टैक्स
डायरेक्ट टैक्स वह टैक्स होता है, जो व्यक्तियों और संगठनों की आमदनी पर लगाया जाता है, चाहे वह आमदनी किसी भी स्रोत से हुई हो, जैसे निवेश, वेतन, ब्याज आदि। इनकम टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स आदि डायरेक्ट टैक्स के तहत ही आते हैं।
इनडायरेक्ट टैक्स
ग्राहकों द्वारा सामान खरीदने और सेवाओं का इस्तेमाल करने के दौरान उन पर लगाया जाने वाला टैक्स इनडायरेक्ट टैक्स कहलाता है। जीएसटी, कस्टम्स ड्यूटी और एक्साइज ड्यूटी आदि इनडायरेक्ट टैक्स के तहत ही आते हैं।
कस्टम्स ड्यूटी
कस्टम्स ड्यूटी वह चार्ज होता है जो देश में आयात होने वाले सामानों पर लगाया जाता है।
एक्साइज ड्यूटी
एक्साइज ड्यूटी वह चार्ज होता है जो देश के भीतर बनाए जाने वाले सामानों पर लगाया जाता है।
अनुदान मांगें
बजट में शामिल सरकार के खर्चों के अनुमान को लोक सभा अनुदान की मांग के रूप में पारित करती है। हर मंत्रालय की अनुदान की मांगों को सिलसिलेवार तरीके से लोक सभा से पारित कराया जाता है।
लेखानुदान मांगें
बजट को संसद में पारित कराने में लंबा समय लगता है और ऐसे में सरकार एक अप्रैल से पहले पूरा बजट पारित नहीं करा पाती। इस स्थिति में अगले वित्त वर्ष के शुरुआती दिनों के खर्च के लिए सरकार संसद की मंजूरी लेती है। इन मांगों को लेखानुदान मांगें कहते हैं।
योजनागत व्यय
सरकारी व्यय को दो हिस्सों में बांटा जाता है- प्लान्ड एक्सपेंडिचर (योजनागत व्यय) और नॉन प्लान्ड एक्सपेंडिचर (गैर योजनागत व्यय)। इनमें से योजनागत व्यय का एस्टिमेट विभिन्न मंत्रालयों और योजना आयोग द्वारा मिल कर बनाया जाता है। इसमें मोटे तौर पर वे सभी व्यय आते हैं, जो विभिन्न विभागों द्वारा चलाई जा रही योजनाओं पर किया जाता है।
गैर योजनागत व्यय
गैर योजनागत व्यय के दो हिस्से होते हैं- गैर योजनागत राजस्व व्यय और गैर योजनागत पूंजीगत व्यय। गैर योजनागत राजस्व व्यय में जो व्यय आते हैं, उनमें शामिल हैं- ब्याज की अदायगी, सब्सिडी, सरकारी कर्मचारियों को वेतन की अदायगी, राज्य सरकारों को अनुदान, विदेशी सरकारों को दिए जाने वाले अनुदान आदि। गैर योजनागत पूंजीगत व्यय में शामिल हैं- रक्षा, पब्लिक इंटरप्राइजेज को दिया जाने वाला कर्ज, राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और विदेशी सरकारों को दिया जाने वाला कर्ज।
पूंजीगत व्यय
कैपिटल एक्सपेंडिचर या कैपेक्स (पूंजीगत व्यय) किसी सरकार द्वारा किया जाने वाला वह व्यय होता है, जो भविष्य के लिए लाभ का सृजन करता है। कैपेक्स का इस्तेमाल संपत्तियां या इक्विपमेंट आदि खरीदने के लिए किया जाता है। इसके अलावा विभिन्न इक्विपमेंट के अपग्रेडेशन के लिए भी इसका उपयोग होता है।
राजस्व व्यय
सरकार के रेवेन्यू अकाउंट से खर्च होने वाली राशि को रेवेन्यू एक्सपेंडिचर (राजस्व व्यय) कहा जाता है। इसमें सरकार के रोजमर्रा के खर्च शामिल होते हैं।
सब्सिडी
किसी सरकार द्वारा व्यक्तियों या समूहों को नकदी या कर से छूट के रूप में दिया जाने वाला लाभ सब्सिडी कहलाता है। भारत जैसे कल्याणकारी राज्य (वेलफेयर स्टेट) में इसका इस्तेमाल लोगों के हित को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। भारत सरकार ने आजादी के बाद से अब तक विभिन्न रूपों में लोगों को सब्सिडी दी है, चाहे वह डीजल सब्सिडी हो या फूड सब्सिडी।
कर राजस्व
कोई सरकार टैक्स लगा कर जो रेवेन्यू हासिल करती है, उसे टैक्स रेवेन्यू कहा जाता है। सरकार विभिन्न प्रकार के टैक्स लगाती है, ताकि वह योजनागत और गैर योजनागत व्यय के लिए धन एकत्र कर सके। यह सरकार की आय का प्राथमिक और प्रमुख स्रोत है।
गैर कर राजस्व
नॉन टैक्स रेवेन्यू वह राशि है, जो सरकार टैक्स के अतिरिक्त अन्य साधनों से एकत्र करती है। इसमें सरकारी कंपनियों के विनिवेश से मिली राशि, सरकारी कंपनियों से मिले लाभांश और सरकार द्वारा चलाई जाने वाली विभिन्न आर्थिक सेवाओं के बदले मिली राशि शामिल होती है।
चालू खाते का घाटा
चालू खाते का घाटा यानी करंट अकाउंट डेफिसिट देश में विदेशी मुद्रा की कुल आवक व निकासी का अंतर बताता है। विदेशी मुद्रा की आवक निर्यात, पूंजी बाजार में निवेश, प्रत्यसक्ष विदेशी निवेश और विदेश रह रहे लोगों द्वारा स्वकदेश भेजे गए पैसे यानी रेमिटेंस के जरिए होती है। जब विदेशी मुद्रा की निकासी आवक से ज्यावदा होती है, तो घाटा होता है…Next
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