‘गुजरात के वेरावल में भागवत कथा के आयोजन पर नोटों की बारिश हुई. इस कार्यक्रम में सांसद पूनम बेन की मौजूदगी में करीब 3 करोड़ रूपये लुटाये गये.’ ये पंक्तियाँ बीते दिनों मीडिया के तीनों रूपों अख़बारों, टेलीविज़न और ऑनलाइन पर पढ़ी और देखी-सुनी गयी. दस, पचास, सौ, पाँच सौ, हजार के नोटों की जब गिनती हुई तो आँकड़ा तीन करोड़ तक पहुँच गया. हालांकि यह मुद्दा सासंद पूनम बेन पर जाकर टिक गयी और भारतीय समाज एक बार फिर अपनी गली-मोहल्लों की करतूतों को छुपाने में कामयाब हो गया.
जिस देश में किसानों को फसल नष्ट हो जाने पर एक रूपये तक के मुआवज़े दिये जा रहे हैं उस देश में भागवत कथा के आयोजन में गायकों पर लुटाये गये तीन करोड़ रूपयों से भारतीय समाज की स्थिति का आकलन किया जा सकता है. यह वर्तमान भारतीय समाज का सच्चा चरित्र है. भारत देश में तथाकथित धार्मिक कहे जाने वाले आयोजनों में जो होता है उनसे हम मुँह फेर सकते हैं, उसे अनदेखा कर सकते हैं, लेकिन उससे इंकार बिल्कुल नहीं.
Read: ‘उन चार सांसदों में से एक थे’:-अटल बिहारी वाजपेयी
पाठक जानते हैं कि उनके गली-मोहल्लों में किसी पर्व-विशेष को सामूहिक रूप से मनाने के लिये तरह-तरह के यत्न किये जाते हैं. लेकिन इन यत्नों से आस्था अब गायब होती जा रही है. शराब, नोट, सिक्कों, डीजे ने अब आस्था को दरकिनार कर धार्मिक कार्यक्रमों पर अपनी जकड़न मज़बूत कर ली है. विसर्जन माँ सरस्वती की मूर्ति का हो या माँ दुर्गा की ट्रकों, ट्रैक्टरों पर मूर्तियों को ले जा रहे युवाओं की टोली को देख पाठक अंगुलि पर शराब के नशे में धुत्त लोगों की गिनती कर सकते हैं. इन जकड़नों ने धार्मिक उत्सवों पर इतनी मज़बूत पकड़ बना ली है कि आस्थावानों की आस्था दरक रही है.
अगर गौर किया जाये तो दिल्ली जैसे महानगरों में धार्मिक आयोजनों के दौरान रात-रात भर कर्णभेदी ध्वनियाँ आपको सुनायी दे जायेगी. ये ध्वनियाँ कानून की बंदिशों से बेपरवाह पाठकों के घरों की दीवारों की चीरती हुई उनके कानों के परदों को झकझोरने की कुव्वत रखते हैं. विसर्जन के दौरान या उससे पहले ‘कमर हिले ला हो, कमर हिले ला’ या ‘मुन्नी के बदनाम’ होने का ढिंढ़ोरा जोर-जोर से पीटा जाता है. हालांकि युवाओं की तेजी से बदलती रूचियों ने ‘हाई हील्स की गलतियों’ को स्वीकार उसे ‘टिक-टॉक’ करने का पूरा मौक़ा दिया है.
Read: जानिए भारत के इन बड़े नेताओं का ‘रिलेशनशिप स्टेटस’
ऐसे में अब इन धार्मिक आयोजनों को धार्मिक कहे जाने पर पुनर्विचार होना चाहिये. जहाँ तक गुजरात के उपर्युक्त आयोजन में सासंद पूनम बेन की मौजूदगी का सवाल है वहाँ भारतीयों को समझ लेना चाहिये कि ‘हाथ’ निष्प्राण हो चुका है, ‘कमल’ कीचड़ में ही खिलता है ‘हथौड़ा-हँसुया’ भोथरे हो चुके हैं और इन सबसे पहले हमारे समाज का एक बड़ा वर्ग मृतप्राय हो चुका है. प्राण अब भी शेष हैं!Next….
Read more:
Read Comments