हमारे जमाने में काफी पहले से त्योहार की तैयारियां शुरू हो जाती थीं। चाहे होली हो या दीवाली पहले पूरे माहौल में अलग ही रौनक दिखाई देती थी। पहले संयुक्त परिवार होते थे और ज्य़ादातर स्त्रियां घर पर रहती थीं। इसलिए वे कई तरह की मिठाइयां और पकवान बनाती थीं, लेकिन बदलती जीवनशैली में सभी के पास समय की कमी होती जा रही है। उनके पास इतना समय नहीं होता कि वे पहले से त्योहार की तैयारियां कर सकें। अब सारे पकवान बाज़ार से खरीदकर आ जाते हैं और लोग अपने घरों में अकेले ही त्योहार मना लेते हैं। अब लोगों के दिलों में पहले जैसा अपनापन नहीं रह गया है।
यह सच है कि अब त्योहारों की रंगत थोड़ी फीकी पड़ने लगी है, पर इसके लिए युवा पीढ़ी को जि़म्मेदार ठहराना अनुचित है। समय के साथ लोगों की जीवनशैली काफी बदल चुकी है। रोजगार के बढ़ते अवसरों की वजह से महानगरों में एकल परिवारों की तादाद तेज़ी से बढ़ रही है। ऐसे में कभी-कभी लोग त्योहार मनाने अपने माता-पिता के पास चले जाते हैं, पर बढ़ती व्यस्तता और महंगाई की वजह से हमेशा ऐसा नहीं हो पाता। इसलिए अकेले त्योहार मनाना उनकी मजबूरी है। जीवन की इसी एकरसता को दूर करने के लिए आजकल महानगरों के अपार्टमेंट्स में पड़ोसियों के साथ मिलकर सामूहिक रूप से त्योहार मनाने का चलन बढ़ रहा है।
त्योहार के बहाने ही लोगों को एक-दूसरे से मिलने-जुलने का अवसर मिलता है। नई पीढ़ी इसकी अहमियत भी समझती है। इस व्यस्त जीवनशैली में त्योहार से जुड़े सभी नियमों का अक्षरश: पालन संभव नहीं है, इसलिए अब लोगों ने त्योहार मनाने के तरीके को थोड़ा आसान बना लिया है। वहीं मंहगाई के चलते अब पहली जितनी मांग नहीं रही है, लोग अपनी जरुरतों को प्राथमिकता देते हैं, ऐसे में संभव है कि त्योहार इन प्राथमिकताओं में शामिल नहीं है। ऐसे में बाजार में 80-90 दशक जितनी रौनक नहीं दिखाई देती।…Next
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