परंपरागत रूप में पत्नी के लिए पति परमेश्ववर समान रहा है. उसकी आज्ञा का पालन करना उसका सबसे बड़ा धर्म माना जाता है. अपने पूरे जीवन काल में पत्नी पति की हरेक बात को एक विश्वास के साथ ग्रहण करती है. लेकिन “गुड हाउसकीपिंग” पत्रिका द्वारा करवाए गए सर्वे के मुताबिक तीन में से एक महिला वित्तीय मामलों में अपने पति पर भरोसा नहीं करतीं. उनका मानना है कि ऐसे किसी भी लेन-देन में वह पति की बजाय खुद पर भरोसा करना पसंद करेंगी.
आज कल की महिलाएं खुद अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं. पुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाने वाली यह महिलाएं वित्तीय मामले में निर्णय के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र हैं. पढ़ी-लिखी होने की वजह से बडी-बडी कंपनियों में ऊंचे पदों पर काम करके अच्छे पैसे कमा रही हैं. अपने आप को पति से बढकर समझने वाली यह महिलाएं पति की बातों को ज्यादा ध्यान नहीं देतीं. इस तरह की प्रथा एकल परिवार के उस भाग में देखी गई है, जहां पत्नियां ही घर के खर्चे को चलाती हैं और पति घर के कामों को देखते हैं.
इस मामले को यदि हम भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो भारतीय समाज में पत्नियों की स्थिति बहुत बेहतर नहीं रही है. भारत का यह इतिहास रहा है कि पति को अपना सब कुछ मानने वाली प्रत्येक नारी पति के कार्यो से विरोध प्रकट न करके उस पर विश्वास करती है. उन्हें ही अपना तन-मन-धन सौंप देती है. जीवन के हरेक पग पर उनका साथ देती है पति के सारे दुखों को हर कर उसे सुख में परिवर्तित करने की कोशिश करती है.
आज भी भारत के अधिकांश क्षेत्रों में पति पर विश्वास करना पत्नी के लिये सबसे बडा धर्म है. घर-परिवार को बढ़ाने, घर को चलाने से संबधित समस्याएं पति सुलझाते हैं और पत्नियां उनके निर्णय को अनायास ही मान लेती हैं. लेकिन शहरी क्षेत्रों में स्थिति बदलती जा रही है. नए आर्थिक ढांचे ने जमाने की तमाम रीतियों और विश्वासों को बदला है और इसका सबसे बड़ा असर पारिवारिक ढांचे पर पड़ा. आज महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होती जा रही हैं फलतः परिवार पर पुरुष के एकाधिकार में काफी कमी आ चुकी है. यहॉ भी सर्वे के निष्कर्षों से काफी साम्यता पायी जानी लगी है यानि पति पर निर्णय छोड़ने की बजाय स्वयं ही पत्नियों के फैसला कर लेने की प्रवृत्ति में बढ़ोत्तरी.
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