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कहीं आपका बच्चा भी तो किसी हैवान का शिकार नहीं बन रहा?

बच्चों के साथ बढ़ रही यौन वारदातों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. आए दिन कोई ना कोई वहशी दरिंदा मासूम बच्चों को अपनी हवस का शिकार बना रहा है. हैवानियत की सारी हदें तोड़कर कोई सिर्फ अपनी शारीरिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए कैसे उन मासूम बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर सकता है? क्या उन बच्चों, जिन्हें सेक्स जैसे शब्दों का मतलब भी नहीं पता, के साथ क्रूरता के साथ अपनी मानसिक विकृति को अंजाम देने से पहले किसी का दिल नहीं कांपता?


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वर्तमान में हो रही ऐसी बेहद अमानवीय घटनाओं के बारे में जानकर आपके और हमारे दिल में यह सवाल जरूर कौंधते होंगे, लेकिन वे लोग जिन्हें इंसान कहा ही नहीं जा सकता, जो जानवरों से बदतर सलूक करने पर उतारू रहते हैं उनके बारे में ऐसे विचार अपने दिल में लाना ही बेकार है. हम ऐसे लोगों की फितरत तो नहीं बदल सकते, कड़ी से कड़ी सजा देने के बाद भी हम उनके या उनके जैसे अन्य लोगों के सुधरने की उम्मीद तो नहीं कर सकते लेकिन हम अपने बच्चों को तो सही-गलत के बारे में बता सकते हैं ताकि वह खुद इस बात का निर्णय कर सकें कि कौन उन्हें किस तरह छू रहा है.


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मनोचिकित्सकों और बाल मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चे इस योग्य नहीं होते कि वह इंसानी छुअन की पहचान कर पाएं जिसकी वजह से वह आसानी से किसी के भी बहकावे में आ जाते हैं. इसीलिए अभिभावकों का यह दायित्व बनता है कि वे अपने बच्चे को पहले से सब कुछ समझा दें ताकि वह सेक्सुअल टच की पहचान कर पाने में सक्षम हो जाएं.



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बच्चों को सिखाएं बैड टच और गुड टच के बीच का फर्क

मनोवैज्ञानिकों की मानें तो बैड टच का अर्थ सिर्फ बच्चे के गुप्तांगों को छूना नहीं होता बल्कि हर वह टच गलत है जो बच्चे को असहज बना दे. अगर आपका बच्चा गाल खींचे जाने या गाल पर किस करने जैसे व्यवहार से भी खुद को असहज महसूस करता है तो भी उसे यह सिखाएं कि कैसे वह नम्रता के साथ इन सब के लिए मना कर सकता है. इसके अलावा उसे यह भी समझाया जाना चाहिए कि अगर उसके साथ किसी भी तरह का असहज व्यवहार होता है तो बिना किसी हिचक और शर्म के वह अपने अभिभावक और स्कूल प्रशासन को इसकी सूचना दे. इसके अलावा सामाजिक स्वीकृत नियम कि अजनबियों से बात नहीं करनी से अपने बच्चे को जरूर अवगत कराएं.

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यौन अपराधों के विषय में समझाएं

यह बात सबसे पहले अभिभावकों को समझनी चाहिए कि सेक्सुअल एक्टिविटी का अर्थ बच्चे के प्राइवेट पार्ट्स को छूना या उसके साथ शारीरिक होने से ही संबंधित नहीं है बल्कि यौन अपराधों का दायरा इससे भी कहीं अधिक है. अगर कोई आपके बच्चे को पोर्न वीडियो या फोटो देखने के लिए बाध्य करता है या जबरदस्ती उसे यह सब दिखाता है तो भी यह सेक्सुअल असॉल्ट के दायरे में आएगा.



संभालें उस बच्चे को जिसके साथ यह सब हुआ

अगर तमाम सावधानियां बरते जाने के बाद या इन सावधानियों में किसी चूक के बाद आपका बच्चा किसी दरिंदे की हैवानियत का शिकार बन जाता है तो उसे बार-बार वह सब याद ना दिलाएं बल्कि उसे उस अवसादग्रस्त माहौल से बाहर निकालने की कोशिश करें. अगर आपका बच्चा रोता है तो उसे चुप कराने की बजाय उसे रोने दें. रोकर उसे अपना दिल हल्का करने का एक मौका जरूर दें. उसे दोस्तों के साथ खेलने दें, उसे खिलौने लाकर दें और उसके लिए घर का माहौल हल्का रखें.


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नजदीकी रिश्तेदारों पर भी रखें निगरानी

2007 में चाइल्ड एब्यूज पर हुए पहले राष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार लगभग 53.2 प्रतिशत बच्चों ने यह स्वीकार किया है कि उनके साथ एक से ज्यादा तरीके का सेक्सुअल असॉल्ट हुआ है. वहीं दूसरी ओर 50 प्रतिशत बच्चों का यह कहना था कि उनके साथ ‘गंदी हरकत’ करने वाला व्यक्ति उन्हीं का जानकार था, जिसके संबंध उनके परिवार के साथ बहुत अच्छे थे. इसीलिए माता-पिता को यह खास ध्यान रखना चाहिए कि उनका बच्चा किसी भी व्यक्ति, भले ही यह वह आपका करीबी रिश्तेदार या दोस्त क्यों ना हो, के साथ अकेला ना हो. विश्लेषकों और बाल मनोवैज्ञानिकों का भी यह साफ कहना है कि एक बच्चा सिर्फ माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी और मामा के साथ ही सुरक्षित है. अगर इनके अलावा वह किसी और के साथ अकेला है तो यह चिंता का विषय है. इसीलिए बिना अपनी निगरानी के माता-पिता को अपने बच्चे को किसी के भी साथ अकेला नहीं छोड़ना चाहिए.



बचपन में हुए ऐसे शारीरिक असॉल्ट व्यक्ति के जीवन में एक ऐसा दाग छोड़ जाते हैं जो उम्र बीतने के साथ भरता नहीं बल्कि एक नासूर बनकर हमेशा उसके साथ चलता है. इसीलिए जब आपका बच्चा स्कूल जाने लगे या दो वर्ष की उम्र पार ले तो उसके हर कदम पर नजर रखें, उसके तौर-तरीकों और व्यवहार में अगर जरा सा भी फर्क आपको दिखाई दे उसे बिल्कुल भी नजरअंदाज ना करें.


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