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बच्चों को आक्रामक बनाता है वीडियो गेम

violent video gamesटेलीविजन, इंटरनेट जैसी नई तकनीकों ने मनुष्य जीवन की जटिलता और निरसता को बहुत हद तक समाप्त कर दिया है. इतना ही नहीं जरूरी सूचनाओं के प्रसार और प्रचार में भी टी.वी. और इंटरनेट अपनी उपयोगी भूमिका का निर्वाह बहुत प्रभावी रूप में कर रहे हैं. देश-विदेश से संबंधित कोई जानकारी लेनी हो या दूर परदेश में बैठे अपने दोस्त या रिश्तेदार से संपर्क साधना हो, अब इंटरनेट के माध्यम से यह सभी जरूरतें चुटकियों में पूरी की जा सकती हैं. वहीं टेलीविजन पर आने वाले विभिन्न कार्यक्रम मनोरंजन का जरिया होने के साथ-साथ ज्ञानवर्धक भी होते हैं, जो लगभग सभी वर्गों के लोगों के सामान्य ज्ञान को बढ़ाने का कार्य करते हैं.


हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, यह कथन इन तकनीकों और इनके प्रभावों पर भी शत-प्रतिशत लागू होता हैं. क्योंकि जहां एक ओर टी.वी. और इंटरनेट जैसी सुविधाएं मनुष्य के लिए ज्ञानवर्धक होती हैं, वहीं दूसरी ओर यह व्यक्ति के चारित्रिक पतन का कारण भी बनती हैं.


आपने में से कई अभिभावकों ने बच्चों को इंटरनेट पर हिंसक वीडियो-गेम्स खेलते देखा होगा. यह भी हो सकता है कि अपने बच्चों की जिद के आगे घुटने टेकते हुए आपने उन्हें ऐसी विडियो गेम्स खुद लाकर भी दी हों. लेकिन एक सर्वेक्षण के अनुसार आपकी यह प्रवृत्ति भले ही कुछ समय के लिए आपके बच्चे के चेहरे पर मुस्कान ले आए लेकिन पारिवारिक और सामाजिक तौर पर इसके दीर्घकालिक परिणाम बहुत हद तक घातक सिद्ध हो सकते हैं.


उटाह ब्रघिम यंग यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए इस शोध में यह बात सामने आई है कि टेलीविजन पर दिखाई जाने वाली गाली-गलौच और हिंसक वीडियो गेम्स में होने वाली मारधाड़ बच्चों के कोमल मन पर नकारात्मक प्रभाव डालती है. इन वीडियो गेम्स की लोकप्रियता और जरूरत से ज्यादा इनका प्रयोग बच्चों के भीतर आक्रामक प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के साथ-साथ उनके नैतिक आचरण में भी गिरावट लाता है.


260 बच्चों के आचरण पर किए गए परीक्षण के आधार पर वैज्ञानिकों का कहना है कि वे बच्चे जो गाली-गलौच और अभद्र भाषा के संपर्क में ज्यादा रहते हैं, वह अभद्र और गलत व्यवहार करने में आगे रहते हैं. उनका यही अभद्र व्यवहार आगे चलकर आक्रामक स्वभाव में परिवर्तित हो जाता है. वह बिना सोचे-समझे दूसरों के साथ मारपीट करना शुरू कर देते हैं.

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इस सर्वेक्षण के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि हिंसक दृश्यों और व्यक्ति के स्वभाव का सीधा संबंध है.


भारतीय परिवेश में भी हम अकसर यह देखते आए हैं कि बच्चे जो अपने आसपास के वातावरण में देखते और सीखते हैं वैसा ही व्यवहार करने की कोशिश करते हैं. विशेषकर युवाओं और किशोरों के विषय में तो हम सभी यह जानते हैं कि वह टी.वी और इंटरनेट के दुनियां से बहुत जल्दी प्रभावित हो जाते हैं और जल्द से जल्द अपने फिल्मी हीरो के जैसे बनने की कोशिश करते हैं. उसकी तरह बातें करना, कपड़े पहनना और कूल दिखना उन्हें बहुत पसंद होता है. कूल कहलाने के चक्कर में वह बिना सोचे समझे कुछ भी करने को उतारू रहते हैं. यहां तक की वह फिल्मी दुनियां और असल जीवन के बीच के अंतर को भी भूल जाते हैं. फिल्म बनाने वाले लोगों का एक मात्र उद्देश्य अधिकाधिक धन कमाना होता है, उन्हें इस बात से कोई लेना-देना नहीं होता कि फिल्म में दिखाए जाने वाले दृश्य और संवाद देखने लायक हैं या नहीं. लेकिन बच्चे उस आभासी किरदार की जीवनशैली को ही आदर्श मानने लगते हैं. अगर उनका हीरो अभद्र भाषा का प्रयोग करता है तो बच्चे उसे मॉडर्न स्टाइल समझते हैं और अपने दोस्तों के साथ उस भाषा का प्रयोग करने लगते हैं. उनका यहीं स्वभाव आगे चलकर उनके भीतर उग्रता का प्रचार करता है.


इंटरनेट जैसी सुविधाओं के आने से पहले जहां बच्चे अपने मित्रों और परिवार के साथ समय बिताते थे, वहीं आज वह एक कमरे में बंद अपनी दुनियां को टी.वी. और इंटरनेट तक की सीमित किए हुए हैं. पहले जो खेल प्रमुखता से खेले जाते थे आज वह बोरिंग और आउटडेटेड माने जाते हैं. आजकल के बच्चों को वीडियो गेम ज्यादा पसंद आते हैं. इसके प्रभावों को बिना जाने-समझे वह इन्हें खेलते हैं. हद तो तब हो जाती है जब अभिभावक उनकी इस पसंद को अपनी स्वीकृति दे देते हैं. बच्चे उस गेम में होने वाले लड़ाई-झगड़े को रोमांचक समझते हैं और उस रोमांच को अपने जीवन में लाने की कोशिश करते हैं. वह भूल जाते हैं कि गेम की समाप्ति में हीरो सब ठीक कर देता है लेकिन अगर वह गलती वास्तविक जीवन में हो जाए तो इसे सुधारा जाना लगभग असंभव ही हो जाता है.

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ऐसे हालातों में अभिभावकों का यह कर्तव्य बन जाता है कि वह अपने बच्चों को सही मार्गदर्शन दें. बच्चों को ऐसे खेलों और कार्यक्रमों से दूर रखें जो उनके मस्तिष्क को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं. बच्चों को एक उज्जवल भविष्य देने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी माता-पिता की होती है. युवाओं को हम देश का भविष्य मानते हैं तो निःसंदेह समाज में अपनी और परिवार की पहचान निर्धारित करना भी उनकी एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है. अभिभावकों को चाहिए कि वह अपने कर्तव्यों के मोल को समझें और बच्चों के भविष्य को एक मजबूत आधार प्रदान करें.

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