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गहरे कुंए में लटकाए जाते हैं यहां बच्चे…आखिर क्यों?


जिनके गले बोतल बंद पानी से तर होते हैं उन्हें शायद ही पानी की असली कीमत का पता हो. आप बोतलबंद पानी 15-20 रूपए लीटर खरीद लें पर देश के कुछ हिस्सों में कुछ लीटर पानी की कीमत किसी मासूम की जान भी हो सकती है. महाराष्ट्र का बीड जिला पहले भी पानी की भयंकर किल्लत के चलते सुर्खियों में रह चुका है पर यह खबर और तस्वीर कई सवाल खड़े करती है.


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गर्मियां अभी दूर है पर जिले के कुंए लगभग-लगभग सूख चुके हैं. कुंए की तलहटी में जमा चंद इंच पानी फिलहाल गांव वालों की प्यास बुझाने का एक मात्र जरिया है. पर पानी का स्तर इतना नीचा है कि कोई भी बर्तन इसमें डूबता नहीं इसलिए रस्सी के सहारे कुंए से पानी खींचना असंभव है. आपको यह दृश्य देखकर शायद बचपन की वह कहानी याद आ जाए जब एक कौआ घड़े में कंकड़ डाल-डालकर पानी के स्तर को उपर लाता है और अपनी प्यास बुझाता है. पर यहां पानी किसी छोटे घड़े की तलहटी में नहीं बल्कि 60 फीट गहरे कुंए की तलहटी में जमा है.


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खैर गांववालों ने पताल सरीखे गहरे कुंए से पानी निकालने की एक अनोखी तकनीक खोज निकाली है. कुंए में बर्तन पहुंचाने से पहले वे रस्सी के सहारे छोटे बच्चों को 60 फीट गहरे कुंए में उतारते हैं. इन बच्चों का काम होता है छोटे मग से पानी के बर्तनों को भरना. जिन्हें फिर रस्सी के सहारे ही ऊपर खींचा जाता है.


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12  साल की प्रियंका के लिए पानी उसकी पढ़ाई से ज्यादा महत्व रखती है. मुरकुटवादी गांव की प्रियंका को अक्सर पानी भरने के लिए स्कूल से अनुपस्थित रहना पड़ता है. गहरे कुंए में उतरना अब उसके लिए जैसे एक खेल बन चुका है. हर बार जब वह कुंए में उतरती है तो 10-12 पानी के बर्तन भरती है. प्रियंका को कुंएं में उतारने के लिए उसी साधारण रस्सी का प्रयोग किया जाता है जो पानी के बर्तन खींचने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. कुंए की चलहटी पथरीली है. रस्सी टूटी तो जान भी जा सकती है. सौभाग्य से अभी तक ऐसी कोई अनहोनी हुई नहीं है पर इसकी संभावना हमेशा बनी रहती है.


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अत्याधिक दोहन के कारण मराठवाड़ा क्षेत्र के कई ईलाकों में भूमिजल का स्तर 300 फीट से नीचे पहुंच चुका है और इसका सबसे अधिक प्रियंका जैसे बच्चों को उठाना पड़ रहा है. प्रियंका बताती है कि, “मैं तीन सालों से इसी तरह कुंए में उतर रहीं हूं. यह कुआं ही हमारे लिए पानी का एकमात्र स्रोत है.” Next…


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