जीवन और मृत्य के बीच साँसों के चलने-रूकने का अंतर होता है. साँसों का थम जाना जीवन और मृत्यु के फासले को कम कर देता है. इसे मृत्यु का द्योतक माना जाता है. लेकिन एक महिला की कहानी इसमें थोड़ी संशय पैदा कर रही है. वो महिला जिसकी साँसों ने उसके हृदय का साथ अनेकों बार छोड़ा है लेकिन हर बार वह मौत को मात देकर जीवन पथ पर वापस लौट आती है. क्या मृत्यु को मात देना उसकी जीवटता है या कुछ और….
सारा ब्रॉटिगम की साँसें एक वर्ष में 36 बार उसके हृदय का साथ छोड़ देती है. चिकित्सक उसे मृत घोषित कर देते हैं लेकिन वो जीवित हो उठती है. ये कोई जादू का खेल नहीं और ना ही किसी कहानी का अंश है. ये सच्चाई है 21 वर्षीया सारा ब्रॉटिगम की जो हृदय की अत्यंत गम्भीर बीमारी से बीते कई महीनों से जूझ रही है.
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चार वर्ष पहले सारा को पता चला कि वह पोस्टुरल आर्थोस्टेटिक टैचीकार्डिया सिंड्रोम से पीड़ित है. इस सिंड्रोम के कारण उसकी साँसें थम जाती है. घबराहट के साथ उसकी रक्तचाप घट जाती है. चिकित्सीय क्षेत्र में किसी व्यक्ति के ऐसी स्थिति में आने पर उसे मृत घोषित कर दिया जाता है.
दक्षिणी यॉर्कशायर के शेफील्ड में स्थित नॉर्थन जनरल हॉस्पिटल में उपचार करा चुकी सारा को एक वर्ष में 36 बार ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा. हमेशा उसकी रक्तचाप न्यून और साँसें चलनी बंद हो जाती थी. उसके उपचार के लिये चिकित्सीय समूह उसके साँसों को गति प्रदान करने के लिये प्रयासरत हो जाते और फिर कुछ समय बाद उसकी साँसें चलने लगती. इस तरह से सारा हृदय की गम्भीर बीमारी से जूझती रही है फिर भी वह जिंदगी के प्रति आशावान है.Next…
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