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जुर्म की दुनियां में नए चेहरों की बाढ़

यह मान लेना कि लड़की या प्यार ही युवाओं के अपराध की ओर प्रवृत्त होने की मुख्य जड़ हैं बिलकुल गलत है. दरअसल प्यार की गलत परिभाषा समझना और प्यार को सेक्स की भूख पूरी करने वाला टॉनिक मानने के कारण ही युवा वर्ग आपराधिक घटनाओं में शामिल हो रहा है. युवाओं के साथ छोटे बच्चे भी अक्सर चोरी जैसे अपराधों में शामिल होते हैं जो एक गंभीर समस्या की ओर इशारा करती है.

लगता है वो दिन ढ़ल गए जब लोग कहते थे कि किसी नामी चोर या अपराधी ने कोई जुर्म किया हो या पुलिस आसपास हुई किसी चोरी के मामले में एरिया के नामी बदमाश को पकड़ती है और मामला खत्म हो जाता है. आजकल तो हालात बदल गए हैं. सब कहते हैं युवाओं का जमाना है. वाकई आजकल युवाओं का ही जमाना है. जुर्म की दुनियां में भी नए सितारों और युवा चेहरों की भरमार पड़ी है.

BPPA10_largeमसला हमारे समाज के एक ऐसे वर्ग की तरफ इंगित है जो आने वाले कल को प्रभावित करेगी. समाज में आजकल आपराधिक घटनाओं की संख्या बढ़ती जा रही है. समाज में होने वाले बदलाव, बेरोजगारी और जल्दी अमीर बनने की वजह से इन आपराधिक घटनाओं की संख्या बढ़ रही है, यह तो समझ में आता है पर इन घटनाओं को अंजाम तक पहुचाने में युवाओं और किशोरों की संख्या बेहद गंभीर समस्या है.

अभी कुछ दिन पहले की ही बात है कि राजधानी दिल्ली के एक पॉश कालॉनी से कार चोर और पर्समारों का एक ऐसा गैंग पकड़ा गया जिसके सभी सदस्य बीसीए और अन्य डिग्री प्राप्त थे. यानि एक समझदार और पढ़ा लिखा वर्ग इन घटानाओं को अंजाम दे रहा था. ऐसा करने के पीछे इन लोगों की वजह गरीबी या कोई आर्थिक समस्या नहीं बल्कि अपने शौक पूरे करने और अय्याशी पूरा करना था. और यह कोई पहली घटना नहीं जिसमें युवाओं की इस कदर भागीदारी हो बल्कि बीते दिनों हुए अधिकतर मामलों में ऐसे अपराधियों की भरमार रही जो इस जुर्म की दुनियां में नए चेहरे हैं. कभी ऐय्याशी तो कभी मौज मस्ती तो कभी गर्लफ्रेंड पर खर्च करने के लिए नौजवान पीढ़ी जल्दी पैसा बनाने के इन असमाजिक हथकंडों का इस्तेमाल कर रही है.

violent_crimeलेकिन इनकी शुरुआत होती कहां से है? जानकर बहुत हैरत होगी कि जुर्म की दुनिया में कदम रखने के लिए नौनिहालों के इस रवैये के जिम्मेदार मां बाप ही होते हैं. बचपन में दी जाने वाली पॉकेट मनी और जेब खर्च की आदत जब आगे जाकर बढ़ जाती है तब खर्चे तो कम होते नहीं पर जरुरतें बढ़ जाती हैं. ऐसे में इन जरुरतों को पूरा करने के लिए बच्चे हर काम करने को तैयार हो जाते हैं. बचपन में मां-बाप बच्चों को बड़े अरमानों से पॉकेट मनी देते हैं कि उनका बच्चा इसका सही इस्तेमाल करेगा पर अभिभावक बच्चे को यह सीखा नहीं पाते कि इसका इस्तेमाल करना कहां है. और जब बच्चा थोड़ा बड़ा होता है और आजकल के माहौल के हिसाब से कभी प्रेम प्रसंग या अधिक खर्चा करने वाले बच्चों की संगति में जाता है तब वह अपने दुनियावीं शौकों को पूरा करने के लिए जुर्म का सहारा लेता है.

कहीं न कहीं आज का युवा वर्ग इजी मनी पाने का आदी हो गया है. बचपन में मां-बाप से पॉकेटमनी ले ली, बड़े हुए तो कॉलसेंटर आदि में काम करके गुजारा हो गया यानि जिंदगी में मेहनत कम से कम. इजी मनी की चाह में कई बार दिमाग मनुष्य को सही और गलत के बीच की खाई को नजरअदांज करने पर विवश कर देता है.

अक्सर देखा गया है कि चोरी-डकैती या हत्या के नए मामलों में युवा अपराधियों के शामिल होने की वजह प्रेम प्रसंग या लड़की होती है. प्रेमिका को खुश करने के चक्कर में रोज नए आशिक जुर्म की गलियों के बादशाह बनने को तैयार रहते हैं. अब जब महीने की कमाई है पांच हजार और गर्लफ्रेंड पर एक ही दिन में हजार रुपए का खर्चा करने की आदत पड़ जाए तो बाकी का पैसा जुटाने के लिए हर कोशिश को जायज मानते हैं आज के युवा.

लेकिन यह मान लेना कि लड़की या प्यार ही इस सब की मुख्य जड़ है बिलकुल गलत है. दरअसल प्यार की गलत परिभाषा समझना और प्यार को सेक्स की भूख पूरी करने वाला टॉनिक मानने के कारण ही युवा वर्ग आपराधिक घटनाओं में शामिल हो रहा है. युवाओं के साथ छोटे बच्चे भी अक्सर चोरी जैसे अपराधों में शामिल होते हैं जो एक गंभीर समस्या की ओर इशारा करती है.

इन सब के साथ बेरोजगरी तो एक कारण है ही. आजकल तो हालात यह है कि अच्छी शिक्षा के बाद भी बेहतर रोजगार मिल पाना मुश्किल है. अच्छे कॅरियर की चाह में युवा कई बार ऐसे लोगों की संगत में पड़ जाते हैं जो जल्दी पैसा बनाने के सपने दिखा इन्हें भटका देते हैं.

जुर्म के यह नए चेहरे खुद को बहुत काबिल मानते हैं इन्हें लगता है इन्हें कोई पकड़ नही पाएगा. लेकिन जब यह पकड़े जाते हैं तो इनके मासूम से चेहरों को देख हर कोई कहता है कि यह तो जुर्म कर ही नहीं सकते. इन नए जुर्म के खिलाडियों को पहचान पाना बिलकुल भी आसान  नहीं क्यूंकि यह कोई भी हो सकता है. क्या पता हमारे और आपके ही अपने न जाने कब इस सिस्टम का हिस्सा बन जाएं और हमें पता ही न चले.

इस परेशानी से बचने और समाज को बचाने के लिए कोशिश छोटे स्तर से ही होनी चाहिए जैसे घर से ही शुरुआत करें. बच्चों को समझाएं कि पॉकेटमनी या जेबखर्च का किस तरह उपयोग करना है, बच्चों की हर गतिविधि पर ध्यान रखें, अपने बच्चों को प्यार की असली परिभाषा समझाइए.

समाज को अपराध मुक्त करने और अपने बच्चों को जुर्म की दुनियां में जाने से रोकने के लिए अगर आपके पास भी कुछ सुझाव हैं तो हमें जरुर बताइए.

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