किसी के बिना इस दुनिया में आए हम कैसे यह फैसला कर सकते हैं कि उसका जीवन कठिन होगा या उसके आने से उसे ही मुसीबत होगी. क्या भगवान द्वारा दिए गए इस खूबसूरत तोहफे को अपने हाथों से मार देना सही है ? क्या मां की कोख में ही अपाहिज बच्चों की कब्र बनाना सही है ? आज एक ऐसे विषय पर हम आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं जिसको न सिर्फ मानवता से जोड़ कर देखें बल्कि उसके लिए ममता,जीवन, बचपन व दुनियां हर पहलू को ध्यान में रखकर सोचें. यह स्थिति हममें से किसी के भी सामने आ सकती है और ऐसी परिस्थिति में आपका एक कदम किसी को काफी प्रभावित कर सकता है.
कभी भी जिंदगी के दो पहलू होते हैं. एक तो आपको पता न हो कि जिंदगी किस मोड़ पर जाएगी और दूसरा आपको पहले ही पता हो कि आने वाली जिंदगी सिर्फ परेशानियों से भरी है. पहली स्थिति तो ठीक है लेकिन दूसरी स्थिति में इंसान असमंजस में होता है.
पहले तो लोगों ने लड़कियों की जिंदगी को मां के पेट में कब्र का रुप दिया और इसका परिणाम यह हुआ कि देश में लड़कियों का अनुपात ऐसा गिरा कि विदेशों में भी हमारी बदनामी हुई. अब नया किस्सा सुनने को मिल रहा है कि लोग अपाहिज बच्चों को यानी अपने खुद के खून को पेट में ही मृत्यु दे रहे हैं.
अपाहिज भ्रूण-हत्या आखिर क्यों ?
आज समाज में इज्जत के लिए और आने वाले समय में दिक्कत न हो इसलिए, कुछ मां बाप अपने बच्चों की बलि भ्रूण में ही दे देते हैं. इसकी साफ वजह है वह नहीं चाहते कि आने वाला बच्चा परेशानियों से घिरा हो या उसे यातनाएं मिलें. यह एक नजरिए से सही भी है कि जब उसे इतनी परेशानियां होंगी तो वह खुद आत्महत्या पर ऊतारु हो जाएगा, इससे तो अच्छा है कि उसे पेट में ही मार दें. इस दुनिया में वैसे भी अपाहिजों को तो सिर्फ दया और घृणा का पात्र माना जाता है. समाज में अपाहिजों को घृणित माना जाता है, हर कदम पर उन्हें समाज उपेक्षित करता है. एक अपाहिज अपनी पूरी जिंदगी खुद से ही लड़ने में ही बिता देता है, हर दिन उसके लिए एक जंग होती है. इतनी यातनाएं कि जिसके लिए शब्दों की सीमा तय कर पाना मुश्किल है. अब इससे तो अच्छा है कि बच्चे को गर्भ में ही मार दो न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी .
एक नजर में बिलकुल सही है
अगर मानवता को दरकिनार कर प्रेक्टिक्ली सोचें तो अपाहिज बच्चे को गर्भ में मारना सही है. इस दुनिया में आने के बाद उसके सामने जो समस्याएं आएंगी उसको देखते हुए अगर माता-पिता यह करें या डॉक्टर इसकी सलाह दें तो यही सही है. अक्सर देखा गया है कि अपाहिज या विकलांग अपनी जिंदगी में इतना संघर्ष करते हैं कि आत्महत्या भी कर बैठते हैं.
आखिर किस मानवता के हित में है यह
वेद-पुराणों से लेकर आधुनिक कलयुग तक सब यही मानते है कि दुनियां में अगर कोई ऐसा है जो अपने खून को किसी भी हालत में मरते नहीं देख सकता तो वह है मां. लेकिन क्या वह मांएं जो अपने अपाहिज-विकलांग बच्चों को जीवन की जगह मौत देती हैं उनमें ममता नहीं होती या वे इस ग्रह की नहीं हैं.
आखिर कैसे हम भगवान के तोहफे को सिर्फ इसलिए नष्ट कर दें क्योंकि उसमें कमी है , क्या जो शारीरिक तौर से कमजोर है उनके लिए जीवन नहीं के बराबर है , आखिर सिर्फ समाज में रुतबे और सम्मान के लिए एक ऐसी जान को खत्म करना सही है जिसने इस दुनिया में अभी कदम भी न रखा हो.
पर सबसे बड़ा सवाल है जो डॉक्टर जीवन देने के लिए भगवान का स्थान रखता है वह कैसे यह सलाह दे देता है कि अपाहिज बच्चों को भ्रूण में ही मार दो.
एक चीज याद रखिए भ्रूण हत्या कत्ल है और एक जुर्म भी अगर बच्चा नहीं चाहते तो पहले क्यों नहीं सोचते. मनुष्य की तो यह फितरत रही है कि जब आग लगे तभी कुआं खोदो.
कानून की नज़र में
दुनियां के ज्यादातर देशों में तो यह कानूनी तौर से मान्यता-प्राप्त है. लेकिन सुनकर हैरानी भी होगी कि हमारे अपने भारत में जहां आजकल गे-कानून से लेकर लिव-इन-रिलेशन हर चीज पर कानून बन रहे हैं वही यह विषय अभी तक अछूता है और संविधान की किताब में इसकी मान्यता या गैर मान्यता जैसी कोई बात सम्मिलित नही हैं. हां, भ्रूण हत्या भारत में कानूनी तौर से मान्यता प्राप्त है बशर्तें वह एक सुरक्षित तरीके से और मान्यता प्राप्त डॉक्टर से करवाया जाए.
अब ऐसे यह मामला और ही गंभीर हो जाता है जब माता या पिता दोनों के विचार अलग हो.
एक अपील
चूंकि कानून तो यह फैसला मां-बाप पर छोड़ देता है लेकिन हम अपने पाठकों से जानना चाहते हैं कि वह क्या सोचते हैं?
क्या आपकी नजर में विकलांग भ्रूण हत्या पाप है? या परेशानियों और घृणा से भरी जिंदगी से अच्छा है ऐसे फूलों को पनपने से पहले ही तोड़ देना?
आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाओं से कई लोगों को फैसला लेने में सहायता मिलेगी.
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